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भय का कारण विश्वास की कमी

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परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि सेठ जी कहते थे कि भगवान् हैं । ऐसा दृढ़ विश्वास । तो जनाना भगवान् की जिम्मेवारी हो जाती है । जिसे भगवान् जना देते हैं, वही जानते हैं । और तुलसीदास जी लिखते हैं -तुम्हारे को जानकर तुम्हारा ही हो जाता है । तो भगवान् को मान ले । तो कह मानते हैं ! तो जितना मानते हैं, उतना तो लाभ है ही, पर दृढ़ता से मानें । जैसे हम कहीं जाते हैं, लाठी होती है साथ में, तो उसका भी सहारा होता है । लालटेन होती है, तो उसका भी सहारा होता है । आदमी हो तो सहारा है ही । लाठी, लालटेन, आदमी न हो तो भय लगता है । तो परमात्मा को मान लें, तो भय लगेगा ? प्रह्लाद  जी महाराज को कितनी त्रास दी गई । समुद्र में फेंका, पहाड़ से गिरा दिया, हाथी छोड़ दिया, अग्नि में रख दिया । होली के साथ बिठा दिया, जल जायेगा । पर बात उल्टी हो गई । होली जल गई और प्रहलाद जी बच  गए । पूछा कि तू जलता नहीं ? तो बात क्या है , प्रह्लाद जी राम नाम जपते हैं । उनके  भय कहां से आए । संपूर्ण दोषों की अचूक दवाई राम नाम है । अग्नि ठंडा पानी हो गई । तो राम नाम लेता हूं मैं, ये विश्वास है पक्का तो भय किस बात का है । होली को वरदान था कि पुरुष को स्पर्श नहीं करे तो अग्नि में स्नान कर सकती है । पर, पुरुष को स्पर्श कर दिया (प्रह्लाद जी को गोद में बिठा लिया) तो जल गई । प्रह्लाद जी महाराज को राम नाम पर विश्वास था ।

ऐसे विश्वास होना चाहिए -मैं भगवान् का हूं, भगवान् मेरे हैं । मां की गोदी में भय नहीं लगता । मां का कपड़ा ओढ़ ले तो भय नहीं लगता । साक्षात् भगवान् का सहारा हो, तो भय लगे ? नहीं लगता । भगवान् ऐसे नहीं कि अमुक जगह हैं, अमुक जंगल में है । वह तो सब जगह हैं । भगवान् यहां भी है । भगवान् सबके मां-बाप हैं ।

 त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।

लव कुश ने राम जी की सेना के छक्के छुड़ा दिए महाराज । हनुमान जी महाराज को पकड़ लिया । हनुमान जी को घर में अंदर ले गए, मां से कहते हैं हम खेलने के लिए वानर को लाए हैं । तो सीता जी ने कहा जैसे तुम मेरे पुत्र हो, ऐसे यह हनुमान मेरा बड़ा पुत्र है । लव कुश के सीता जी ही मां है, पिता है । जो कुछ है माता है । युद्ध करते हैं तो मां को याद करते हैं । तुलसीदास जी रामचरितमानस में सीता जी के चरण कमल की वंदना करते हैं । कहते हैं, निर्मल मति पाऊं । लव कुश से युद्ध हुआ तो राम जी ने पूछा कौन हो ? लव कुश बोले कौन क्या ? सामने आओ ! धनुष उठाओ । भरोसा लव कुश के क्या था ? हमारी मां है । मां का भरोसा । सूरदास जी और तुलसीदास जी की भक्ति की मार्मिक बात कह रहे हैं । दोनों की भक्ति के भाव का वर्णन कर रहे हैं । बाल भी बांका नहीं हो सकता राम जी का भरोसा हो ! पूतना जहर देने आई, तो भगवान् ने प्राण खींचे तो बोली छोड़ दे, छोड़ दे । तो लाला बोले छोड़ दूं कैसे ? और पूतना को मुक्त कर दिया । वो पूरी घटना सुना रहे हैं । तो सेठ जी ने कहा है – भगवान् को मान लेना है । कैसी मौज की बात है ? मानते नहीं हो, भगवान तो है ही ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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