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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-81

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जय श्री राधे कृष्ण …….

कहेउ राम बियो तव सीता, मो कहु सकल भए बिपरीता, नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू, कालनिसा सम निसि ससि भानू…..!!

भावार्थ:- (हनुमान जी बोले), श्री रामचंद्र जी ने कहा है कि हे सीते! तुम्हारे वियोग में मेरे लिए सभी पदार्थ प्रतिकूल हो गए हैं। वृक्षों के नए-नए कोमल पत्ते मानो अग्नि के समान, रात्रि कालरात्रि के समान, चंद्रमा सूर्य के समान….!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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