lalittripathi@rediffmail.com
Stories

अयोध्या आंदोलन के हनुमान-6 – कल्याण सिंह लोधी

144Views

कल्याण सिंह लोधी (5 जनवरी 1932 – 21 अगस्त 2021) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे वो राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रह चुके हैं। इससे पहले वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। वो दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। विवादित बाबरी ढांचा  विध्वंस होने के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह लोधी जी थे उत्तर प्रदेश के लोग कल्याण सिंह जी को प्यार से बाबूजी पुकारते थे और उन्हें 26 अगस्त 2014 को राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त किया गया।[1] उन्हें प्रखर राष्ट्रवादी राजनेता के रूप में जाना जाता था। उन्हें वर्ष 2022 में भारत का दूसरा सर्वोच्च पुरस्कार पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया है।

जीवन परिचय:- कल्याण सिंह का जन्म 6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में लोधी राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री तेजपाल सिंह लोधी और माता का नाम श्रीमती सीता देवी था! कल्याण सिंह लोधी 2 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और कई बार अतरौली के विधानसभा सदश्य के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं, और साथ ही रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। पहली बार कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वर्ष 1991 में बने और दूसरी बार यह वर्ष 1997 में मुख्यमंत्री बने थे। ये प्रदेश के प्रमुख राजनैतिक चेहरों में एक इसलिए माने जाते हैं, क्यूंकि इनके पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान ही बाबरी मस्जिद की घटना घटी थी। मृत्यु 21 अगस्त 2021 

लगभग तीन दशक पहले अयोध्या में बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह एक प्रमुख हिंदू नेता के तौर पर उभरे थे। हालांकि, उस घटना के बाद उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। कल्याण सिंह का शनिवार शाम लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्‍थान (एसजीपीजीआई) में निधन हो गया। वह 89 साल के थे।

हमेशा से ही सुर्खियों में रहे कल्याण सिंह  कल्‍याण सिंह अपने लंबे राजनीतिक जीवन में अक्सर सुर्खियों में रहे। मस्जिद विध्वंस मामले में अदालत में लंबी सुनवाई चली। इस बीच वह राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे। राजस्थान के राज्यपाल का कार्यकाल पूरा होने के बाद सितंबर 2019 में वह लखनऊ लौटे और फिर से भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये। इस दौरान उन्होंने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत के समक्ष मुकदमे का सामना किया और अदालत ने सितंबर 2020 में उनके समेत 31 आरोपियों को बरी कर दिया।

ऐसे हुई राजनीति की शुरूआत:- राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ से जुड़कर कल्‍याण सिंह ने समाजसेवा के क्षेत्र में कदम रखा और इसके बाद जनसंघ की राजनीति में सक्रिय हो गये। वह पहली बार 1967 में जनसंघ के टिकट पर अलीगढ़ जिले की अतरौली सीट से विधानसभा सदस्य चुने गये और इसके बाद 2002 तक दस बार विधायक बने।  इमरजेंसी में 20 महीने जेल में रहे…और फिर आया राम मंदिर आंदोलन:- आपातकाल में 20 माह जेल में रहे कल्‍याण सिंह 1977 में मुख्यमंत्री राम नरेश यादव के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने। 1990 के दशक में वह राम मंदिर आंदोलन के नायक के रूप में उभरे और 1991 का विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया। पूर्ण बहुमत की भारतीय जनता पार्टी की सरकार में वह जून 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने लेकिन छह दिसंबर 1992 को अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस के बाद उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया।
अयोध्या आंदोलन के स्तंभ: अयोध्या आंदोलन में मुख्यमंत्री पद की दे दी आहुति:  वो कल्याण सिंह ही थे जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन को सिरे चढ़ाने के लिए अपनी सालभर की सरकार को दांव पर रख दिया था। 6 दिसंबर, 1992 को बाबारी ढांचा का विवादित ढांचा कारसेवकों ने गिरा दिया तो मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इसकी जिम्मेदारी ली और तुरंत इस्तीफा दे दिया।  हम गोली नहीं चलाएंगे… दिल्ली में राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में जब उन्हें कारसेवकों के विरुद्ध कड़े कदम उठाने की सलाह दी गई तो उन्होंने बेहिचक यही बात कही। 30 अक्टूबर, 1990 को मुलायम सिंह यादव की सरकार ने आयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलवाई थीं। अगले वर्ष 1991 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में मुलायम को मुख्यमंत्री की कुर्सी खोनी पड़ी और पहली बार बीजेपी को प्रदेश में अपना मुख्यमंत्री बनाने का मौका मिला। भाजपा ने इस पद के लिए कल्याण सिंह को चुना तो वो सीधे अयोध्या गए, राम लला का दर्शन करने। वहां उन्होंने अपना प्रण दुहराया- राम लला आपका मंदिर बनकर रहेगा, चाहे कुछ भी  हो। कल्याण ने अपना संकल्प पूरा किया, भले ही उन्हें एक वर्ष में ही अपनी सरकार की आहुति देनी पड़ी। आज ‘राम मंदिर आंदोलन के स्तंभ’ की विशेष श्रृंखला में बात इन्हीं कल्याण सिंह की।

अयोध्या में तीर्थस्थल के लिए किया बड़ा काम:  कल्याण सिंह की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि बाबरी ढांचा को नुकसान नहीं पहुंचने दिया जाएगा। लेकिन राम मंदिर निर्माण का निश्चय पक्का था, इसलिए सरकार ने अयोध्या में राम जन्मभूमि के आसपास 2.27 एकड़ जमीन खरीद ली और पास में ही राम चबूतरा बनवा दिया। सरकार का मकसद साफ था- तीर्थस्थल में पर्याप्त सुविधाएं सुनिश्चित करना। विश्व हिंदू परिषद भी लोगों को समझा-बुझाकर तीर्थस्थल के आसपास के इलाके की जमीनें खरीदने लगी। कल्याण सरकार ने भी जो जमीनें खरीदीं, वो विश्व हिंदू परिषद के ट्रस्ट को सौंपती गई। उसने राम कथा पार्क के लिए आसपास की 42.09 एकड़ जमीन विहिप ट्रस्ट को ट्रांसफर कर दी।
बाबरी ढांचा  विध्वंस की ली नैतिक जिम्मेदारी:-  6 दिसंबर, 1992 को जब अयोध्या में कारसेवकों का जनसमुद्र उमड़ा तो आडवाणी समेत बीजेपी और आरएसएस के दिग्गज नेताओं ने उन्हें संभालने की भरपूर कोशिशें कीं। लेकिन रामभक्तों पर एक मानो एक जुनून सवार था- अत्याचार और अन्याय की सदियों पहले पड़ी नींव के प्रतीक रूप में बाबरी ढांचा का सफाया। एक-एक कर कारसेवक बाबरी मस्जिद की गुंबदों पर चढ़ने लगे और कुछ देर में ही गुंबद टूटकर गिरने लगे। दो साल पहले उत्तर प्रदेश की जिस पुलिस ने अयोध्या की भूमि कारसेवकों के खून से रंग दी थी, वो बाबरी विध्वंस को चुपचाप देख रही थी। कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे के मुताबिक बाबरी की सुरक्षा में असफल रहने की नैतिक जिम्मेदारी लेने में देर नहीं की। उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
24 घंटे जेल की सलाखों के पीछे रहे कल्याण हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अदालत की अवमानना के लिए 2,000 रुपये का जुर्माना लगाकर उन्हें 24 घंटे के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया। जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें उस समय पद खोने का कोई पछतावा है तो कल्याण सिंह ने जवाब दिया कि मुख्यमंत्री का पद भगवान राम के सामने कुछ भी नहीं है। वर्षों बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने ही राम जन्मभूमि पर ही भव्य मंदिर बनाने का रास्ता साफ कर दिया तो कल्याण सिंह ने लखनऊ में अपने आवास पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया।  इसमें उन्होंने कहा, ‘6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद गिरी थी, मैंने अयोध्या में हुई अराजकता की पूरी जिम्मेदारी ली थी। मैंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर और उसी दिन राज्यपाल को इस्तीफा सौंपकर उसकी कीमत चुकाई थी। मेरा विश्वास है कि 2022-23 तक अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर बनकर तैयार होगा, जिसके दर्शन देश-विदेश से लोग करेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘हर किसी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है और उसे स्वीकार कर लिया है, जो न्यायपूर्ण, वैध और सर्व-समावेशी है। इसने 500 साल पुराने विवाद को समाप्त कर दिया है।’

बीमारी और मृत्यु :- सिंह 3 जुलाई 2021 को मतली और सांस लेने में कठिनाई की शिकायत के बाद बीमार हो गए थे । उन्हें डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया , जहां डॉक्टरों को गुर्दे की समस्या का संदेह हुआ। बाद में, उनका रक्तचाप खतरनाक रूप से बढ़ गया, और उन्हें बेहतर उपचार और प्रबंधन के लिए संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में स्थानांतरित कर दिया गया। वह जीवन रक्षक वेंटिलेशन पर थे।  सेप्सिस और बहु-अंग विफलता से पीड़ित सिंह की 89 वर्ष की आयु में 21 अगस्त 2021 को एसजीपीजीआई में मृत्यु हो गई।

ऐसे रामभक्त हनुमान को नमन….

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply