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Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-78

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जय श्री राधे कृष्ण …….

बचनु न आव नयन भरे बारी, अहह नाथ हौं निपट बिसारी, देखि परम बिरहाकुल सीता, बोला कपि मृदु बचन बिनीता…..!!

भावार्थ:- (मुंह से) वचन नहीं निकलता, नेत्रों में (विरह के आंसुओं का) जल भर आया । (बड़े दुख से वे बोलीं) हा नाथ !आपने मुझे बिल्कुल ही भुला दिया ! सीता जी को विरह से परम व्याकुल देखकर हनुमान जी कोमल और विनीत वचन बोले… ।।

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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