जय श्री राधे कृष्ण …….
“बचनु न आव नयन भरे बारी, अहह नाथ हौं निपट बिसारी, देखि परम बिरहाकुल सीता, बोला कपि मृदु बचन बिनीता…..!!
भावार्थ:- (मुंह से) वचन नहीं निकलता, नेत्रों में (विरह के आंसुओं का) जल भर आया । (बड़े दुख से वे बोलीं) हा नाथ !आपने मुझे बिल्कुल ही भुला दिया ! सीता जी को विरह से परम व्याकुल देखकर हनुमान जी कोमल और विनीत वचन बोले… ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
