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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-77

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जय श्री राधे कृष्ण …….

सहज बानि सेवक सुखदायक, कबहुँक सुरति करत रघुनायक, कबहुँ नयन मम सीतल ताता, होइहहिं निरखि स्याम मृदु गाता…..!!

भावार्थ:- सेवक को सुख देना उनकी स्वाभाविक बान है । वे श्री रघुनाथ जी क्या कभी मेरी भी याद करते हैं ? हे तात ! क्या कभी उन के कोमल सांवले अंगों को देख कर मेरे नेत्र शीतल होंगे ?…. ।।

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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