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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-76

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जय श्री राधे कृष्ण …….

अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी,अनुज सहित सुख भवन खरारी, कोमलचित कृपाल रघुराई, कपि केहि हेतु धरी निठुराई……!!

भावार्थ:- मैं बलिहारी जाती हूँ। अब छोटे भाई लक्ष्मण जी सहित खर के शत्रु, सुख धाम प्रभु का कुशल-मंगल कहो। श्री रघुनाथ जी तो कोमल हृदय और कृपालु हैं। फिर हे हनुमान ! उन्होंने किस कारण यह निष्ठुरता धारण कर ली है ?….. ।।

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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