राम रामायण और मैं
भारतीय समाज मे राम और रामायण का अपना महत्व है, हमारे बहुत सारे बड़े बड़े तीज त्यौहार राम और रामायण के कारण ही हमारे समाज और परिवार में है। चाहे दशहरा हो, या दीवाली हो। घर परिवार और देश मे जब भी खुशहाली और संपन्नता की की बात आती है, तो वास्तव में राम राज की ही बात होती है। रामायण ऐसा ग्रंथ है, जो जात पात, अमीरी गरीबी सबसे ऊपर है, प्रत्येक घर मे कुछ मिले या ना मिले किन्तु रामायण , दोहे और चौपाई अवश्य मिलेगी। प्रत्येक घर अपने घर को अयोध्या मानने का प्रयास करता है, किन्तु अयोध्या बनाने में उनका योगदान हमेशा से ही प्रश्न वाचक चिन्ह वाला ही रहा है।
रामायण के एक एक पात्र महाबली, वचनबद्ध, कर्तव्य का पालन करने वाले अद्बुध्य पात्र है। जब भी किसी कुमारिल को वृद्ध लोग आशीर्वाद देते है, तो हमेशा ये ही कहते है कि राम जैसा वर मिले और सीता जैसी वधु। जब उनका विवाह होता है तो शब्द निकलते है कि राम सीता कि जोड़ी है, माता पिता बनने का समय आता है, तो आशीर्वाद देते है कि राम जैसा पुत्र हो, यदि दो भाई हुए तो राम लखन परिवार में आये है,ऐसी मान्यता है। अब कही आप सोच रहे है कि कही, भरत, शत्रुघन को भी तो नही ला रहे ?, ग्रंथ के अनुसार होना तो ये ही चाहिए किन्तु नही लाएंगे, वर्ना सरकार के परिवार कल्याण कार्यक्रम की बैंड बज जाएगी।
वापस हम राम और रामायण पर ही आते है, शायद पुराने समय मे परिवार अयोध्या जैसा ही होता होगा, शायद परिवार के जन रामायण के पात्र जैसे ही होते होंगे। कई पुरानी बॉलीवुड मूवी में भी शायद ऐसा ही अयोध्या की फीलिंग वाला परिवार दिखाते है, वृद्ध माता पिता के बड़े राम स्वरूप पुत्र अपने कर्तव्यों को निर्वहन बड़ी तल्लीनता से करते है, चाहे माता पिता की दवा लानी हो, या छोटे भाई की कॉलेज की फीस अंतिम दिन जमा करानी हो, या छोटी बहन के विवाह की व्यबस्था के लिए लाला से कर्ज के लिए गहने या जमीन गिरवी रखनी हो। किन्तु अब द्रश्य बदल गया है, परिवार के समस्त जन, अब केवल अपना ही भला चाहते है, अपनो के भले को भावना कही गौण हो रही है।
जब अपनो के भले की जगह सिर्फ अपने भले कि भावना आ गयी है, तब से परिवारों में टकराव और बिखराव आरम्भ हो गया। सब दूसरों को कर्तव्य और ज़िम्मेदारी का पाठ सिखाने का प्रयास कर रहे है किंतु अपने कर्तव्य और ज़िम्मेदारी को भूल चुके है, किसी भी गलती के लिए परिवार के दुसरे सदस्य को दोषारोपण करना आम बात हो गयी है।
हमारी अयोध्या और रामायण में सब की एक बात कॉमन है कि समस्या का कारण हमेशा कोई और ही रहेगा और मेरी कभी भी कोई गलती नही रहेगी। अगर सास हु तो बहु गलत है, पुत्र को गुलाम बना लिया है, पुत्र वधु हु तो सास गलत है,। श्रवण कुमार पैदा किया है। (श्रवण कुमार का वर्णन रामायण में अल्प समय के लिये आता है, जब कैकयी के वरदान के कारण राम वनवास को प्रस्थान करते है, तो दशरथ को पुत्र वियोग में श्रवण कुमार नजर आता है, शायद उनके माता पिता के श्राप के कारण ही दशरथ को पुत्र वियोग मिला)। पति और पत्नी में तो किसी भी अनहोनी के लिए एक दुसरे को दोषी बनाने के लिए होड़ सी लगी रहती है, चाहे बारिश हो, तो भी कारण दोनों में से कोई एक अवश्य होगा।
ननद, देवरानी, जेठानी, इतियादी रिश्तों में भी बहुत कुछ ऐसा ही है। भाई तो श्रवण कुमार बने किन्तु पति के बनाने पर घोर निंदा की जाती है। सभी को ग़लत फ़हमी है कि मैं तो अपने रिश्तों में सचिन तेंदुलकर के क्लासिक शॉट की तर्ज परफ़ेक्ट हु, कमी दूसरे में ही है एक और बात रिश्ता मेरी वज़ह से ही चल रहा है कोई दूसरा या दूसरी होतो तो कब का खत्म हो चुका होता। मतलब परिवार के लिए शेषनाग स्वरूप वो ही है, जो अपने फन के बल पर परिवार का बोझ उठाये हुए है। परिवार के लिए अपने सींगों पर पृथ्वी की तरह परिवार लिया हुआ है। अगर वो हट गया/गयी तो परिवार ताश के पत्तो की तरह बिखर जाएगा।
बिखराव के लिए फिर दोष हमेशा की तरह दूसरे पर दिया जाता रहता है। जब भी बात होती है तो राम और रामायण का ज़िक्र आएगा और फ़िर क्या सही है? ये तो कही पीछे छूट जाता है, लोग अपने आप को सही साबित करना उद्देश्य ना होकर दूसरे को हर हाल में गलत साबित करना ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है।
अच्छा है कि हमारी परम्पराओ में होली दीवाली जैसी त्यौहार आते है, त्यौहार के बहाने से ही सही, परिवार के समस्त सदस्य साल में एक दिन साथ तो आते है, इसमे क्रेडिट फेसबुक को भी जाता है, क्योंकि फ़ोटो वहाँ भी अपलोड करनी होती है विद हैशटेग# एंजोयिंग दीवाली विद फॅमिली।
मेरा निवेदन है कि रामायण में इतने सारे पात्र है, चाहे सुबह राजा बनने वाले पात्र, पिता के वचन पर वनवास पर निकल जाने वाले राम हो, चाहे पति के साथ पति के रास्ते पर वनवास जाने वाली जनकदुलारी राजकुमारी जानकी हो, या अपने बड़े भाई और भाभी के साथ अयोध्या के कुमार लक्ष्मण हो, जो बिना सोचे वनवासी की पोशाक में वन में निकल गये , चाहे भरत कुमार हो, जो बड़े भैया राजा राम की चरण पादुका को सिँहासन पर बैठा कर 14 वर्षो तक उनके प्रतिनिधि सेवक बनकर, धरा पर बैठ कर उनकी आज्ञा से अयोध्या में राम राज चलाते रहे हो , और भी बहुत सारे पात्र है जिनमे से हम अपना आर्दश का चयन कर सकते है। रामायण के जो भी पात्र हमे पसंद आता है, हम मात्र उनके जैसा व्यवहार करने का प्रयास करे। जब भी परिवार में टकराव और बिखराव का वातावरण बने, आंखे बंद करके सोचे कि रामायण का वो मेरा आदर्श पात्र ऐसी स्थिति में कैसे व्यवहार करता, विश्वास करो, आपके व्यवहार से परिवार का वातावरण अपने आप सुखद हो जाएगा, बस थोड़ा सा धैर्य जरूरी है। हम अपने से पहले अपनो का सोचने लग जाये, देने की प्रवत्ति की परम्परा आरम्भ करे , अपनो के लिए भौतिक सामग्री थोड़ी सी छोड़ने की हठ हो और मन मे विश्वास रखे कि मेरे घर मे राम और रामायण हमेशा रहे उनके बीच मे मेरा मैं (अहम) कभी भी ना आने पाए।
सच मे प्रत्येक परिवार में राम राज आयेगा और देश राम राज बने। इन्ही कामनाओं के साथ समर्पित।
जय श्रीराम
