जय श्री राधे कृष्ण …….
“सुन दसमुख खद्योत प्रकासा, कबहु कि नलिनी करइ बिकासा, अस मन समुझु कहति जानकी, खल सुधि नहिं रघुबीर बान की….!!
भावार्थ:- हे दसमुख! सुन, जुगुनू के प्रकाश से कभी कमलिनी खिल सकती है ? जानकी जी फिर कहतीं हैं – तू (अपने लिए भी) ऐसा ही मन में समझ ले। रे दुष्ट! तुझे श्री रघुवीर के बाण की खबर नहीं है…..!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..