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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-25

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जय श्री राधे कृष्ण …….

पुनि संभारि उठी सो लंका, जोरि पानि कर बिनय ससंका, जब रावनहिं ब्रम्ह बर दीन्हा, चलत बिरंची कहा मोहि चीन्हा…..!!

भावार्थ:- वह लंकिनी फिर अपने को संभाल कर उठी और डर के मारे हाथ जोड़कर विनती करने लगी। वह बोली, रावण को जब ब्रह्मा जी ने वर दिया था तब चलते समय उन्होंने मुझे राक्षसों के विनाश कि यह पहचान बता दी थी……!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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