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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-24

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जय श्री राधे कृष्ण …….

जानेहिं नहीं मरमु सठ मोरा, मोर अहार जहाँ लगि चोरा, मुठिका एक महा कपि हनी, रुधिर बमत धरनीं ढनमनी…..!!

भावार्थ:- हे मूर्ख! तूने मेरा भेद नहीं जाना ? जहां तक (जितने) चोर हैं, वह सब मेरे आहार हैं। महाकपि हनुमान जी ने उसे एक घूंसा मारा, जिससे वह खून की उल्टी करती हुई पृथ्वी पर लुढ़क पड़ी…!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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