जय श्री राधे कृष्ण …….
जानेहिं नहीं मरमु सठ मोरा, मोर अहार जहाँ लगि चोरा, मुठिका एक महा कपि हनी, रुधिर बमत धरनीं ढनमनी…..!!
भावार्थ:- हे मूर्ख! तूने मेरा भेद नहीं जाना ? जहां तक (जितने) चोर हैं, वह सब मेरे आहार हैं। महाकपि हनुमान जी ने उसे एक घूंसा मारा, जिससे वह खून की उल्टी करती हुई पृथ्वी पर लुढ़क पड़ी…!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
