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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-19

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जय श्री राधे कृष्ण …….

बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं, नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रुप मुनि मन मोहहीं , कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं, नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं…..!!

भावार्थ:- वन ,बाग उपवन (बगीचे) फुलवाड़ी, तालाब, कुएं और बावलियां सुशोभित हैं। मनुष्य, नाग, देवताओं और गंन्धर्वों की कन्याएं अपने सौंदर्य से मुनियों के भी मनो को मोहे लेती हैं। कहीं पर्वत के समान विशाल शरीर वाले बड़े ही बलवान मल्ल (पहलवान) गरज रहे हैं। वे अनेकों अखाड़ों में बहुत प्रकार से भिड़ते और एक दूसरे को ललकारते हैं…!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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