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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-4

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जय श्री राधे कृष्ण ……..

जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता , चलेउ सो गा पाताल तुरंता , जिमि अमोघ रघुपति कर बाना एही भांति चलेउ हनुमाना……!!

भावार्थ:- जिस पर्वत पर हनुमान जी पैर रखकर चले (जिस पर से वह उछले) वह तुरंत ही पाताल में धंस गया | जैसे श्री रघुनाथ जी का अमोघ बाण चलता है उसी तरह हनुमान जी चले

चौ0- जलनिधि रघुपति दूत बिचारी, तैं मैनाक होहि श्रमहारी…..!!

भावार्थ:- समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथ जी का दूत समझ कर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इन की थकावट दूर करने वाला हो (अर्थात अपने ऊपर इन्हें विश्राम दे)…. !!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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