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रिश्ते का मान

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एक सन्त थे वे भगवान राम को बहुत मानते थे। कहते है यदि भगवान से निकट आना है तो उनसे कोई रिश्ता जोड़ लो। जहाँ जीवन में कमी है वही ठाकुर जी को बैठा दो, वे जरुर उस सम्बन्ध को निभायेगे। इसी तरह सन्त भी भगवान राम को अपना शिष्य मानते थे और शिष्य पुत्र के समान होता है इसलिए माता सीता को पुत्र वधु (बहू)के रूप में देखते थे। उनका नियम था रोज मन्दिर जाते और अपनी पहनी माला भगवान को पहनाते थे। उनकी यह बात मन्दिर के लोगो को अच्छी नहीं लगती थी। उन्होंने पुजारी से कहा – ये बाबा रोज मन्दिर आते हैं, और भगवान को अपनी उतारी हुई माला पहनाते हैं। कोई तो बाजार से खरीदकर भगवान को पहनाता है और ये अपनी पहनी हुई भगवान को पहनाते है।

पुजारी जी को सबने भडकाया कि बाबा की माला आज भगवान को मत पहनाना। अब जैसे ही बाबा मन्दिर आये और पुजारी जी को माला उतार कर दी, तो आज पुजारी जी ने माला भगवान को पहनाने से इन्कार कर दिया। और कहा यदि आपको माला पहनानी है तो बाजार से नाई माला लेकर आये ये पहनी हुई माला ठाकुर जी को नहीं पहनायेगे। वे बाजार गए और नई माला लेकर आये, आज सन्त मन में बड़े उदास थे, अब जैसे ही पुजारी जी ने वह नई माला भगवान श्री राम को पहनाई तुरन्त वह माला टूट कर नीचे गिर गई, उन्होंने फिर जोड़कर पहनाई, फिर टूटकर गिर पड़ी, ऐसा तीन-चार बार किया पर भगवान ने वह माला स्वीकार नहीं की। तब पुजारी जी समझ गए कि मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है। पुजारी जी ने बाबा से क्षमा माँगी।

सन्त सीता जी को बहू मानते थे इसलिए जब भी मन्दिर जाते पुजारी जी सीता जी के विग्रह के आगे पर्दा कर देते थे, भाव ये होता था कि बहू ससुर के सामने सीधे कैसे आये, और बाबा केवल राम जी का ही दर्शन करते थे जब भी बाबा मन्दिर आते तो बाहर से ही आवाज लगाते पुजारी जी हम आ गए और पुजारी जी झट से सीता जी के आगे पर्दा कर देते। एक दिन बाबा ने बाहर से आवाज लगायी पुजारी जी हम आ गए, उस समय पुजारी जी किसी दूसरे काम में लगे हुए थे, उन्होंने सुना नहीं, तब सीता जी ने तुरन्त अपने विग्रह से बाहर आई और अपने आगे पर्दा कर दिया।

जब बाबा मन्दिर में आये, और पुजारी ने उन्हें देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ और सीता जी के विग्रह की ओर देखा तो पर्दा लगा है। पुजारी बोले – बाबा ! आज आपने आवाज तो लगायी ही नहीं ?

बाबा बोले – पुजारी जी ! मैं तो रोज की तरह आवाज लगाने के बाद ही मन्दिर में आया। तब बाबा समझ गए कि सीता जी ने स्वयं कि आसन छोड़कर आई और उन्हें मेरे लिए इतना कष्ट उठना पड़ा। आज से हम मन्दिर में प्रवेश ही नही करेंगे।

अब बाबा रोज मन्दिर के सामने से निकलते और बाहर से ही आवाज लगाते अरे चेला राम तुम्हे आशीर्वाद है सुखी रहो और चले जाते।

सच है भक्त का भाव ठाकुर जी रखते है और उसे निभाते भी है..!!

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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