धनतेरस –धन्वंतरी जयंती
प्राचीन कथाओं में ऐसा बताया जाता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया जा रहा था। उस समय कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य हुआ। भगवान धन्वंतरि आरोग्य और धन-धान्य देने वाले माने जाते हैं। इस विशेष दिन पर उनके प्रकट होने की वजह से ही इस दिन को धनतेरस कहा जाता है। जहां धन का अभिप्राय भगवान धन्वंतरी और तेरस का मतलब त्रयोदशी से है। ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन जो व्यक्ति सच्चे मन से भगवान धन्वंतरि, माता महालक्ष्मी और भगवान कुबेर की उपासना करता है उसके घर में हमेशा के लिए धन-धान्य की वर्षा होती है। माना जाता है कि ऐसे व्यक्ति के पास दूर-दूर तक दरिद्रता नहीं आती है। कहते हैं कि धनतेरस की पूजा करने वाला व्यक्ति जिस भी दिशा में जाता है चारों ओर उसे यश, वैभव और कीर्ति की प्राप्ति होती है।
धनतेरस पर कैसे करें पूजा और क्या है मान्यताएं, जानिये:- बताया जाता है कि जो लोग अक्सर बीमार रहते हैं उन्हें धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की उपासना जरूर करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि की आराधना करने से सभी रोग दूर हो जाते हैं और व्यक्ति आरोग्यता को प्राप्त करता है। प्राचीन कथाओं से लेकर वेद पुराणों में भी इस दिन की बहुत महिमा गाई गई है। बताते हैं कि जो व्यक्ति इस दिन भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न कर लेता है उसके जीवन में कभी पैसों का अभाव नहीं रहता है।
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोककथा है। कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी समय उनमें से एक ने यम देवता से विनती की- हे यमराज! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले, हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं, सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
जय श्रीराम
