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जीवन की यात्रा का आनंद कैसे ले!

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कभी आपको किसी यात्रा के दौरान, बस की सबसे पीछे वाली सीट पर बैठने का अवसर मिला है ? यदि नही; तो कभी गौर करना और हाँ तो आपने महसूस किया होगा कि पीछे की सीट पर धक्के ज्यादा महसूस होते है। बेचैनी और हलचल भी ज्यादा होती है, जबकि चालक के साथ वाली सीटों पर नहीं होता! बल्कि मनमोहक नजारों का आनंद लेते हुए, सफर कब कट जाता है पता भी नहीं चलता !

देखा जाए तो, चालक तो सबके लिए एक ही है l बस की गति और सीट भी समान है। फिर ऐसा क्यों होता है ? उतर स्पष्ट है कि, साहब जिस बस में आप सफर कर रहे है, उसके चालक से आपकी दूरी जितनी ज्यादा होगी – आपकी यात्रा में धक्के और कष्ट भी उतने ही ज्यादा होंगे l

बस यही सब जिंदगी के सफर में भी है! आपकी जीवन यात्रा के सफर में भी जीवन की गाड़ी के चालक “परमात्मा” से आपकी दूरी जितनी ज्यादा होगी आपको ज़िन्दगी में “धक्के और कष्ट” भी उतने ही ज्यादा खाने पड़ेंगे l इसलिए, अपनी रोज़ की दिनचर्या में यथासंभव कुछ समय अपने आराध्य परमपिता परमात्मा के सानिध्य में बैठो और उनसे अपना संबंध बनाओ, किसी भी संबंध में वह आपकी मदद के लिए सदा तैयार है। उनसे अपने मन की बात एकदम साफ शब्दों में कहो l जब कुछ समझ ना आए अथवा कोई दुविधा हो तो उनकी शिक्षाओं के अनुसार चले, शीघ्र ही आप स्वयं एक अप्रत्याशित चमत्कार महसूस करेंगे। बस जरुरत है, मन की सच्चाई और सफाई की !!

कोशिश करके देखिए ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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