पूरे चार महीने बाद वो शहर से कमाकर गाँव लौटा था। अम्मा उसे देखते ही चहकी…”आ गया मेरा लाल! कितना दुबला हो गया है रे! खाली पैसे बचाने के चक्कर में ढंग से खाता-पीता भी नहीं क्या!”
“बारह घंटे की ड्यूटी है अम्मा, बैठकर थोड़े खाना है! ये लो, तुम्हारी मनपसंद मिठाई!”–कहकर उसने मिठाई का डिब्बा माँ को थमा दी! “कितने की है?”
“साढ़े तीन सौ की!”
“इस पैसे का फल नहीं खा सकता था! अब तो अंगूर का सीजन भी आ गया है!”–अम्मा ने उलाहना दिया। पूरा दिन गाँव-घर से मिलने में बीत गया था! रात हुई, एकांत में उसने बैग खोलकर एक पैकेट निकाला और पत्नी की ओर बढ़ा दिया–
“क्या है ये?” “चॉकलेट का डिब्बा, खास तुम्हारे लिए!” “केवल मेरे लिए ही क्यों!” “अरे समझा करो। सबके लिए तो मिठाई लायी ही है!”
“कितने का है?” “आठ सौ का!”
“हांय!!” “विदेशी ब्रांड है!” “तो क्या हुआ!”
“तुम नहीं समझोगी! खाना, तब बताना!” “पर घर में और लोग भी हैं। अम्मा, बाबूजी, तीन तीन भौजाइयां, भतीजे। सब खा लेते तो क्या हर्ज था!”
“अरे पगली, बस चार पीस ही है इसमें, सबके लिए कहाँ से लाता!”
“तो तोड़कर खा लेते!” “और तुम!”
“बहुत मानते हैं मुझे?”
“ये भी कोई कहने की चीज है!”
“आह! कितनी भाग्यशाली हूँ मैं जो तुम मुझे मिले!” उसकी आँखें चमक उठी–“मेरे जैसा पति बहुत भाग्य से मिलता है!”
“सच है! लेकिन पता है, ये सौभाग्य मुझे किसने दिया है?” “किसने?”
“तुम्हारी अम्मा और बाबूजी ने! उन्होंने ही तुम्हारे जैसा हट्टा-कट्टा, सुंदर और प्यार करने वाला पति मुझे दिया है! सोचो, तुम्हारे जन्म पर खुशी मनाने के लिए मैं नहीं थी, एक अबोध शिशु से जवान बनने तक, पढ़ाने-लिखाने और नौकरी लायक बनाने तक मैं नहीं थी। मैं तुम्हारे जीवन में आऊं, इस लायक भी उन्होंने ही तुम्हें बनाया!”
“तुम आखिर कहना क्या चाहती हो?”
“यही कि ये पैकेट अब सुबह ही खुलेगा! एक माँ है, जो साढ़े तीन सौ की मिठाई पर भी इसलिए गुस्सा होती है कि उसके बेटे ने उन पैसों को अपने ऊपर खर्च नहीं किया! और वो बेटा आठ सौ का चॉकलेट चुपके से अपनी पत्नी को दे, ये ठीक लग रहा है तुम्हें!”
वो चुप हो गया! पत्नी ने बोलना जारी रखा…
“अम्मा-बाबूजी और लोग गाँव में रहते हैं! तुम ही एकमात्र शहरी हो। बहुत सारी चीजें ऐसी होंगी, जो उन्हें इस जनम में नसीब तो क्या, उनका नाम भी सुनने को नहीं मिलेगा! भगवान ने तुम्हें ये सौभाग्य दिया है कि तुम उन्हें ऐसी अनसुनी-अनदेखी खुशियां दो! वैसे कल को हमारे भी बेटे होंगे! अगर यही सब वे करेंगे तो…….!”
अचानक उसे झटका लगा। चॉकलेट का डिब्बा वापस बैग में रख वो बिस्तर पर करवट बदल सुबकने लगा! “क्या हुआ? बुरा लगा सुनकर!” खुशियां और प्रेम बाटने से बढ़ते है
खुशी वो इत्र है जो हम दूसरों पर छिड़कते हैं तो उसकी कुछ बुँदे हम पर भी गिरकर हमें महका देती है। जीवन में बाँटने जैसा कुछ है तो प्रेम है, खुशियां हैं। हमेशा रात को सोने से पहले इस बात का मुल्यांकन होना चाहिए कि कहीं आज हमारे द्वारा किसी का दिल तो नहीं दुखा..? कहीं आज मन से, वचन से और कर्म से हमारे द्वारा कोई ऐसा कर्म तो सम्पन्न नहीं हुआ जिससे किसी के भी हृदय को आघात पहुँचा हो…?
जो लोग दूसरों की खुशियों का ध्यान रखते हैं, उनकी खुशियों का ध्यान स्वयं प्रकृत्ति रखा करती है। ये बात भी याद रखी जानी चाहिए कि बाँटी हुई वस्तु ही लौटकर हमारे पास आती है, अब ये हम पर निर्भर करता है कि हमने बाँटा क्या था, खुशियाँ या और कुछ…?
खुश रखना और खुश रहना ये जीवन की दो महत्वपूर्ण कलाएं हैं। जिसे पहली कला आ जाती है उसकी दूसरी कला स्वयं परिपूर्ण हो जाती है। जो लोग अपने से ज्यादा दूसरों की खुशियों का ध्यान रखते हैं, वही लोग प्रकृत्ति की दृष्टि में सबसे बड़े पुरूस्कार के योग्य भी बन जाते हैं।
एक बात और खुशियाँ एक चमत्कारिक इत्र हैं। छिड़कते हम दूसरों के ऊपर हैं और महकता स्वयं का जीवन है। जितना जितना हम दूसरों के ऊपर छिड़कते जाते हैं, उसी अनुपात में हमारा स्वयं का जीवन भी महकने लगता है।
शिक्षा-मनुष्य जीवन मिला है तो खुशियाँ बाँटना सिखना चाहिए ताकि हम स्वयं भी खुश रह सकें।
जय श्रीराम
