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40 बसन्त के बाद अपना कोई शौक ज़िन्दा रखे।

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40 बसन्त के बाद अपना कोई शौक ज़िन्दा रखे।

आँखे बंद करके, फ़िल्म थ्री इडियट्स का हॉस्पिटल वाला वो  सीन देखने की कोशिश करे जिसमे वो संवाद है, की 50 साल बाद, बूढ़ा होकर किसी ऐसे ही हॉस्पिटल में तु पड़ा होगा और मरने का इन्तज़ार कर रहा होगा, और सोच रहा होगा कि लेटर हाथ मे था, टैक्सी गेट पर थी, उस दिन ज़रा सी हिम्मत कर लेता तो साली आज ज़िंदगी कुछ और होती।  मुझे यक़ीन है कि, सोचते सोचते हम मे से बहुत सारे लोग उसी फिल्मी-सीन में जम गए।  कुछ साथी सीन सोचने के बाद अपने आप को समझाने का असफ़ल प्रयास करते है, की फिल्मी बात है और फ़िर अपने वो हो पुराने ढर्रे पर लग जाते है। सही भी है, बाते तो फिल्मी  ही है, लेकिन हम सभी जानते है कि हम अपने आप से झूठ बोल रहे है, अपने आप को बहकाने का असफल प्रयास कर रहे है। मन के अँधेरे कमरे भी जिस पर  हमने अलीगढ़ का लॉक लगा दिया है । अगर आंख बंद करके झांकने की कोशिश करेंगे तो पायेंगे की उसमे अभी भी कुछ- कुछ दुंधले सपने वही  है, जो कभी मैं करना चाहता था ।

पहले पढ़ाई का प्रेशर, फिर  नौकरी माफ़ी चाहूंगा अच्छी नौकरी की चिंता के कारण नही कर पाए। पहले सोच रहे थे कि अच्छी नौकरी मिल जाये उसके बाद अपने सपनो पर काम करूंगा। हिंदी फिल्मों की तरह नौकरी के बाद, शादी हो गयी  फ़िर बच्चे……किन्तु समय की कमी और परिवार के भरण पौषण की ज़िम्मेदारी के कारण उन सपनों पर अभी तक काम नही कर पाया।

मेरे जैसे 40 बसन्त पार चुके लोगो के हालात अलबत्ता सभी के एक जैसी ही है की ये बात 15 साल पहले सोच सकते थे और मुझे विश्वास है कि सोच कर भी कोई फली नही फोड़ पाते????  ज़िन्दगी तो ऐसे ही जीते, क्योंकि हम लोग बहुत कमज़ोर, डरपोक और भाग्य के भरोसे वाले किस्म के इन्सान है, हमारे परिवार वाले भी हमे हमारे इन्ही गुणों को बढ़ाते है,  ऐसा हमे लगता है, जबकी कमी मुझ में रही,  निर्णय मैं ख़ुद नही ले पाया। अब ना ही वो 15 साल पुराना वाला समय वापस आ पायेगा और ना ही, मैं वो कुछ नही कर पाऊंगा, जो भी मुझे करना था, या मैं करना चाहता था।  सही भी है कि अब बहुत देर हो चुकी है । मैं अपने जीवन मे ये ही सोचते हुए वो ही पुरानी ज़िंदगी की भाग दौड़ में पुनः शामिल हो जाता हूं ।

मेरा विश्वास करो, अगर हम अपना पूरा मेडिकल चेकअप कराए तो रिपोर्ट बहुत ही डरावनी ही आयेगी, हम में से 70 फ़ीसदी से ज्यादा लोग गैर-संचारी रोगों जैसे मधुमेह, ब्लड प्रेशर, मोटापे, थकान की बीमारियों से ग्रसित होंगे। मेरी बातों पर यकीन ना हो तो एक बार मेडिकल कराके देख लेते है किन्तु सत्य तो ये है की मेडिकल कराते हुए भी डर लग रहा है, कही बताई बीमारी से ज्यादा आ गयी तो?……आज कल के जीवन मे हम ऑफिस के टारगेट वाले वातावरण के स्ट्रैस को तो कम नही कर सकते किन्तु उस से निपटने को अपने आप को थोड़ा बहुत मज़बूत बना सकते है।

सभी सलाह देते है कि सुबह शाम घूमने जाए, नियमित व्यायाम करें, पौष्ठिक और सन्तुलित भोजन करे। नियमित अंतराल पर डॉक्टर से मिलते रहे आदि आदि।

 मेरे विचार में हमे अपने किसी पुराने शौक़ को जिंदा करना चाहिए जैसे किसी को गाने का शौक़ रहा है, अपने जीवन मे सिंगर बनना चाहते हो, किन्तु किसी भी कारण से नही बन पाए। अब अपने शौक़ के लिए कुछ समय देना आरंभ करें, चाहे तो किसी उस्ताद या गुरु के पास हफ्ते में एक दो दिन जाकर कुछ ट्रेनिंग ले सकते है, यदि अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकाल पाते है , तो।

अब घर परिवार में गाना आरम्भ करे , देख ले कि धर्म पत्नि के पास बेलन ना हो । अकेले में भी गा सकते है , अपने द्वारा पसंदीदा गाये गए गाने को हैडफ़ोन लगा कर सुनने का मज़ा लेवे। अपने किसी खास दोस्त के घर जाए या उन्हें अपने घर बुलाये चाय ( खाने के लिए तो श्रीमती जी का अनुमोदन चाहिए) के साथ गाने का साथ निभाये। ऑफिस की किसी पार्टी में गाना गाए ,और मस्त होकर गाना गाये, बिना ये सोचे कि लोग क्या कहेंगे।  गाते समय ऐसा समझे की आप इंडियम आइडियल में ही गा रहे है, और उस नशे का मज़ा लेवे। ऐसे अपने जीवन मे किसी भी एक शौक को पाले और बड़ा करे।

किसी को बाँसुरी बाजने का शौक है, किसी को डांस का और हर किसी को किसी ना किसी का शौक है तो उन शौक को जियो मित्र।

अगर हमने मात्र 6 महीने ऐसा किया ,अब आप अपना फिर मेडिकल चेक कराए मेरा विश्वास करो, अब रिपोर्ट पहले के मुकाबले अच्छे आयंगे और हम अपने आप को अच्छा मेहसूस करेंगे। मेरे बॉस एक बात बोलते है कि अब आपको एंटरटेनमेंट के लिए बाहर जाने की आवश्यकता नही होगी आपको अपने आफिस के काम मे ही इंटरटेनमेंट होने लगेगा। घर परिवार और ऑफिस के स्ट्रेस में कमी आयेगी, हम ऑफिस के काम मे ज्यादा रिजल्ट दे पाएंगे  तथा घर परिवार में भी ख़ुश रहेंगे।

सबसे बड़ी बात, हम खुद खुश रहेंगे , फिर चाहे बाद मे किसी हॉस्पिटल में बिस्तर पर पड़े रहेंगे तो भी गाना गाएंगे, पछतावा तो बिल्कुल नही होगा कि मै बिना जिंदगी जी कर जा रहा हु ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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