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ऊंट किस करवट बैठे

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ऊंट किस करवट बैठे

एक मनिहारी थी चूड़ी बेचा करती थी और एक सब्जी वाला था। दोनों बाजार गए और दोनों ने अपना अपना सामान खरीदा। उन दिनों ऊंट पर सामान लादकर लोग ले जाया करते थेसब्जी वाला एक ऊंट वाले के पास पहुंचा कि मुझे सब्जी ले जानी है उसका सौदा किया। ऊंट वाले ने कहा कि तुम्हारे पास एक ऊंट का सामान तो है ही नही?
इतने में मनिहारी पहुंची। उसने ऊंट वाले से अपनी चूड़ियों को लादने की बात की। ऊंट वाले ने कहा कि तेरे पास भी पूरे ऊंट का सामान तो है नहीं।
तुम दोनों ऐसा करो कि एक ओर सब्जी लाद दूंगा, दूसरी ओर चूड़ी लादूंगा। अगर तुम दोनों तैयार हो जाओ तो तुम दोनों के सामान लादकर पहुंचा दूंगा। दोनों ने हामी भर दी।

उसने एक तरफ सब्जी वाले का सामान लादा, दूसरी तरफ चूड़ी लादी। दोनों अपने अपने सामान की रखवाली के लिए ऊंट पर बैठ गए। वह ऊंट लेकर चला।

ऊंट मुंह घुमाता तो सब्जी खींचकर खा लेता। इस पर मनिहारी हंस पड़ती। ऊंट वाले ने कहा कि अरी हंसती क्यों है। यह ऊंट है न जाने कब किस करवट बैठ जाय।

जब उनकी मंजिल आई तो ऊंट जिधर चूड़ियां रक्खी थीं उसी करवट बैठ गया। सारी चूड़ियां टूट गईं। मनिहारी रोने लगी।
कहने का मतलब यह है कि
किसी का नुकसान देखकर हंसो मत। समय कब किसका किस तरफ मुड़ जाय कोई नहीं जानता।
इस कहानी का तात्पर्य ये है कि समय का ऊंट किसका कब किस करवट बैठे यह कोई नहीं जानता। ये है कि इच्छा का विस्तार कर लिया इसलिए दुःख होता है।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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