शबरी होना
यहाँ शबरी किसी नाम तक सीमित नहीं है, बल्कि एक अवस्था है। शबरी वह है जो प्रतीक्षा करना जानती है—बिना शिकायत, बिना अपेक्षा, बिना शर्त। सब्र यहाँ मजबूरी नहीं, बल्कि आंतरिक स्थिरता है।ऐसा सब्र जिसमें मन शांत रहता है, अहंकार नहीं होता और परिणाम की चिंता नहीं रहती।
“जो शबरी हो गया”….अर्थात जिसने अपने भीतर – अधीरता छोड़ दी– तुलना छोड़ दी– जल्दी पाने की चाह छोड़ दी और जीवन को ईश्वर की गति से स्वीकार कर लिया।ऐसा व्यक्ति बाहर नहीं भागता, भीतर ठहर जाता है।
जब मन शुद्ध, शांत और सब्र से भरा हो जाता है, तो वह स्वयं एक आमंत्रण बन जाता है। ईश्वर को आकर्षित करने के लिए कोई शब्द, कोई प्रदर्शन नहीं चाहिए—केवल सच्चा भाव और धैर्य पर्याप्त है। जैसे शबरी ने न कोई शास्त्र पढ़ा, न कोई बड़ा यज्ञ किया—बस प्रतीक्षा की, प्रेम रखा और विश्वास निभाया। और भगवान राम स्वयं उसके द्वार पर आए।
ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता दौड़ से नहीं, ठहराव से खुलता है। जहाँ सब्र है, वहाँ अहं नहीं। जहाँ अहं नहीं, वहाँ ईश्वर स्वयं प्रकट हो जाते हैं।
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जय श्रीराम