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मैं तुम्हें माफ करता हूं

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मैं तुम्हें माफ करता हूं

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर शहर में एक साधारण सी गली थी। जहां पुराने मकानों के बीच एक छोटा सा घर था। उसी घर में रहता था आरव, शांत स्वभाव का, जिम्मेदार और दूसरे की मदद करने में हमेशा आगे रहने वाला। उसके पिता नहीं थे। मां की तबीयत अक्सर खराब रहती थी और घर चलाने के लिए वह एक प्राइवेट दफ्तर में छोटा सा काम करता था। कमाई ज्यादा नहीं थी लेकिन दिल बड़ा था। इसी शहर में दूसरी तरफ रहती थी नेहा। तेज दिमाग, बड़ीत्वाकांक्षा और पुलिस में जाने का सपना। बचपन से ही नेहा के पिता कहते थे कि लड़की चाहे तो बहुत आगे जा सकती है। इसलिए वह पढ़ाई में हमेशा गंभीर रही। लेकिन घर की हालत कमजोर थी। रिश्तेदारों का दबाव भी था। इसलिए घर वालों ने उसकी शादी जल्दी कर दी।

आरव और नेहा की शादी एकदम साधारण तरीके से हुई। बारात में ज्यादा शोरशराबा नहीं था। लेकिन दोनों परिवार खुश थे। शुरू के कुछ महीनों में सब ठीक था। आरव सुबह दफ्तर जाता। शाम को नेहा के साथ बाजार घूम आता और रात को दोनों साथ बैठकर चाय पीते। उन दिनों में एक अजीब सी शांति थी। जैसे जिंदगी बहुत धीरे-धीरे चल रही हो। लेकिन धीरे-धीरे नेहा ने अपने पुराने सपने को फिर से पकड़ा। उसने कहा कि वह पुलिस की तैयारी करना चाहती है। आरव ने बिना एक पल सोचे कहा। करो नेहा। जितना मेरे बस में होगा मैं करूंगा। फिर वही हुआ। रातों को देर तक पढ़ना, किताबों का खर्चा, कोचिंग की फीस, फॉर्म भरने की बात सब संभाला आरव ने। कई दिन ऐसे भी आए जब आरव खुद भूखा रहा। लेकिन नेहा की कोचिंग फीस भर दी। उसकी मां पूछती, बेटा, इतना क्यों कर रहा है? आरव बस मुस्कुरा देता। इसकी मेहनत है मां। इसका सपना पूरा हो जाए। यही काफी है।

शुरुआत में उसकी इस मेहनत को समझती थी। वह अक्सर कहती तुम साथ हो ना इसलिए मैं संभल जाती हूं। लेकिन जैसे-जैसे परीक्षा पास आती गई नेहा के व्यवहार में बदलाव आने लगा। वो अब ज्यादा हुक्म देने लगी थी। कभी कहती तुम्हें कुछ समझ ही नहीं आता। कभी बोल देती अगर मैं अफसर बन गई ना तो मेरी दुनिया ही अलग होगी। आरव यह सब सुनता रहता क्योंकि उसके लिए नेहा की सफलता उसका अपना गर्व थी। परीक्षा का रिजल्ट आया। नेहा सब इंस्पेक्टर बन गई। घर में खुशी का माहौल था। मोहल्ले में लोग बधाई देने आए। नेहा की आंखों में चमक थी। लेकिन उसी चमक में एक हल्का सा घमंड भी था।

पोस्टिंग मिलते ही वो और भी बदली हुई लगने लगी। अब उसे लगता था कि वह आरव से ऊपर हो गई है। जब कभी घर में कोई छोटी बात होती वह ताने मार देती। तुमसे तो कुछ उम्मीद ही नहीं की जा सकती। मैं रोज पुलिस स्टेशन संभालती हूं। तुमसे अपना घर ही नहीं संभलता। आरव यह सब सुनता लेकिन चुप रहता। उसे लगता था कि शायद यह नई नौकरी का दबाव है। सब ठीक हो जाएगा। लेकिन एक दिन बाद हद से बढ़ गई। नेहा ने कमरे में बैठकर कहा, आरव, मुझे लगता है कि हमारी सोच अलग है। मैं अब बड़े लोगों से मिलती हूं। बड़े काम करती हूं। और तुम तुम वही के वहीं हो। आरव कुछ बोल पाता। उससे पहले नेहा ने तलाक के कागजात उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, “मुझे अकेले रहना है। मैं किसी ऐसे इंसान के साथ नहीं रह सकती। जो मेरे स्तर का ही ना हो।आरव ने जैसे अपनी सांसे रोक ली हो। एक पल को लगा कि यह मजाक है। लेकिन कागजात असली थे। उसने कागजात खोले। उस पर नेहा का हस्ताक्षर था। वो अपनी आंखों से ही यकीन नहीं कर पा रहा था। नेहा की आवाज तीखी थी। कृपया ड्रामा मत करो। यह फैसला मैंने सोच समझ कर लिया है। आरव की आंखों में दर्द था। लेकिन चेहरे पर अजीब सी शांति। उसने पूछा भी नहीं कि क्यों? नहीं उसने उसे रोकने की कोशिश की। बस पेन उठाया और साइन कर दिए। नेहा ने बैग उठाया। दरवाजे से बाहर निकलते हुए एक पल भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गली में निकलते ही वो नई दुनिया की तरफ बढ़ गई। और आरव उसी पुराने घर में अकेला रह गया।

उस रात चुपचाप उसने घर की सारी लाइटें बंद कर दी। दीवारों पर चल रही खामोशी भी उसे चुभ रही थी। उसकी मां ने धीरे से कहा, सब ठीक हो जाएगा बेटा। लेकिन आरव जानता था अब कुछ भी वैसा नहीं होगा। वो रात भर जागता रहा। तलाक का कागज हाथ में था। लेकिन दिल में एक आग जग चुकी थी। दर्द की, अपमान की और खुद को साबित करने की। सुबह होते ही उसने एक बैग पैक किया। मां के पैरों में बैठकर बोला, मां मैं लौट कर जरूर आऊंगा। लेकिन तब जब मैं तुम्हारा सिर गर्व से ऊंचा कर दूं।

मां ने उसके माथे पर हाथ रखा। उसकी आंखें पहली बार भर आई। आरव शाहजहांपुर छोड़कर लखनऊ की ओर निकल पड़ा। एक टूटा हुआ आदमी। लेकिन उसी टूटन में एक नया जम लेकर। और यहीं से उसकी असली कहानी शुरू होती है। एक ऐसी कहानी जहां हर चोट इंसान को और मजबूत बना देती है। लखनऊ पहुंचकर आरव ने सबसे पहले एक छोटा सा कमरा किराए पर लिया। कमरे में ना पंखा ठीक से चलता था ना रोशनी ढंग से आती थी। दीवारों में नमी थी और खिड़की इतनी पुरानी कि हवा आने पर चरमराती रहती। लेकिन आरव के लिए यह कमरा किसी महल से कम नहीं था। क्योंकि अब यह उसकी नई जिंदगी की शुरुआत थी। सुबह वह एक प्राइवेट ऑफिस में नौकरी करता। जहां दस्तावेजों की फाइलें उठानी पड़ती, चाय पानी बनाना पड़ता और कभी-कभी ऑफिस के बाहर तक काम दौड़कर करना पड़ता। शाम होते ही वह किताबें खोल लेता। भारतीय संविधान, कानून, अपराध विज्ञान, जनरल स्टडीज।

रात की सन्नाटा पढ़ते-पढ़ते उसका शरीर थक जाता लेकिन दिमाग जागता रहता। हर रात वह बस एक बात सोचता। नेहा ने मुझे कम आंका था। लेकिन मैं साबित करके दिखाऊंगा कि इंसान की कीमत उसके पद से नहीं। उसके इरादों से होती है। कई दिन ऐसे आए जब उसके पास खाने तक के पैसे नहीं होते। वह बस चाय और दो बिस्कुट खाकर पढ़ाई कर लेता। एक दिन तो भूख इतनी लगी कि वह सो ही नहीं पा रहा था। लेकिन उसी रात उसने निश्चय किया कि अब वह हार मानने वाला नहीं है। उसने भगवान से नहीं खुद से वादा किया। पद चाहिए, सम्मान चाहिए और जिंदगी से जवाब चाहिए।

उधर जिंदगी ने नेहा को भी अलग मोड़ पर पहुंचा दिया था। बरेली में उसकी पोस्टिंग थी। थाना बड़ा था। केस भारी थे और जिम्मेदारी उससे भी भारी। सब इंस्पेक्टर बनकर नेहा को लगा कि दुनिया बदल जाएगी। लेकिन असली दुनिया तो अब दिखनी शुरू हुई थी। सामने अपराधी, पीछे फाइलें, ऊपर अधिकारियों का दबाव और नीचे जनता की शिकायतें। उसके आसपास कोई अपना नहीं था।

सब लोग मैडम जी बोलते थे। लेकिन कोई नेहा कहकर हालचाल नहीं पूछता। काम की वजह से वह घर देर से लौटती। रात का खाना भी अक्सर अकेले खाती। दोस्त शुरुआत में बहुत थे। लेकिन धीरे-धीरे सब अपने रास्ते चले गए। नेहा के अंदर जो घमंड था, लोगों ने उसे दूरी बनाने का कारण बना लिया। कभी-कभी नेहा को अकेलेपन में आरव की याद आ जाती। कैसे वह रात को चाय बनाता था। कैसे किताबें लाकर टेबल पर रखता था। कैसे उसकी मां अपने दर्द वाले घुटनों के बावजूद उसके लिए पूरी सब्जी बना देती थी। कभी-कभी वह खुद से पूछती क्या मैंने बहुत जल्दी फैसला ले लिया? लेकिन फिर खुद को समझा लेती। नहीं, मेरा करियर बड़ा है। पर करियर कितना भी बड़ा हो। रात जब अकेलापन दबोचता है तो इंसान के अंदर की सारी दीवारें टूटने लगती है। नेहा को अब एहसास हुआ कि कॉलेज की दोस्ती, नौकरी की प्रशंसा और लोगों की बाहरी मुस्कान। यह सब तात्कालिक बातें हैं। जिंदगी का सच्चा आधार वह होता है जो आपके बुरे समय में भी आपके साथ खड़ा हो। और ऐसा तो कोई नहीं था सिवाय उस आरव के जिसे उसने खुद ही छोड़ दिया था।

दूसरी ओर आरव का संघर्ष अपने चरम पर था। वह हर महीने का थोड़ा हिस्सा मां को भेजता था क्योंकि उसने वादा किया था कि उसे कभी बोझ नहीं बनने देगा। मां उससे मिलने की जिदकरती। लेकिन वह हर बार यही कहता मां मैं अभी वापस नहीं आ सकता। मैं खाली हाथ नहीं लौटूंगा। समय ऐसे बीत रहा था जैसे हर दिन एक युद्ध हो। दिन नौकरी का युद्ध। रात पढ़ाई का युद्ध, मन में अकेलेपन का युद्ध और दिल में आगे बढ़ने का युद्ध। करीब 4 साल से ज्यादा बीत गए। और उन चार सालों में आरव ने अपने अंदर का हर शक, हर डर, हर कमजोरी जला दी थी। वो अब सिर्फ एक लक्ष्य था। आईपीएस एग्जाम के आखिरी दिन उसने अपनी मां की फोटो टेबल पर रखी और कहा, तुम्हारे बिना मैं कुछ नहीं हूं। कल अगर मैं पास हुआ ना तो मैं सिर्फ तुम्हारा बेटा नहीं रहूंगा। मैं तुम्हारागर्व बनूंगा। परिणाम आया और वो दिन आरव की जिंदगी का सबसे बड़ा दिन बन गया। वो आईपीएस बन चुका था। फाइल में उसका नाम देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए। लेकिन यह आंसू दुख के नहीं थे। यह उन 4 साल के संघर्ष, नींद रहित रातों और टूटे दिल की जीत के आंसू थे। उसने सबसे पहले मां को फोन लगाया। मां की आवाज कांप रही थी। बेटा सच में आरव की आवाज भर गई। हां मां तुम्हारा बेटा आईपीएस बन गया है। उधर नेहा की जिंदगी उसी धर्रे पर लगातार चल रही थी। काम, तनाव, अकेलापन और अधूरापन उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस इंसान को उसने अपने लायक नहीं कहकर छोड़ा था वो एकदिन आईपीएस बन जाएगा। लेकिन किस्मत जब जवाब देती है तो बड़े प्यार से नहीं। सीधे दिल पर चोट करके देती है। और अब वह समय ज्यादा दूर नहीं था। जब नेहा और आरव आमने-सामने आने वाले थे। एक बदले हुए रूप में, एक बदले हुए दर्जे में और एक ऐसी मुलाकात में जो दोनों की जिंदगी का सारा हिसाब बदलने वाली थी। खैर, आईपीएस बनने के बाद आरव की पोस्टिंग कुछ महीनों तक अलग-अलग ट्रेनिंग यूनिटों में होती रही। बैच के सभी अफसर उसके संघर्ष की कहानी नहीं जानते थे। लेकिन उसकी आंखों में जो गंभीरता, चेहरे पर जो सादगी और बर्ताव में जो ईमानदारी थी, उसने सबका दिल जीत लिया।

वो दूसरों से कम बोलता था। लेकिन जब बोलता था तो तुरंत एहसास हो जाता था कि यह आदमी दर्द से नहीं आग से निकला हुआ है। कुछ समय बाद उसकी पहली बड़ी पोस्टिंग आई। बरेली जिले में एसपी सिटी उसी बरेली में जहां नेहा सब इंस्पेक्टर के रूप में काम कर रही थी। आरव को यह बात उस दिन शाम को मिली जब वह अपनी फाइलों पर काम कर रहा था। एक अन्य अधिकारी ने धीरे से कहा सर आपकी एक टीम में एक सी मैडम है। नाम है नेहा बेहद सख्त है। लेकिन अकेली रहती है। आरव ने कानों से सुना दिल से नहीं। उसने बस इतना कहा ठीक है कल मीटिंग में देखा जाएगा लेकिन रात को नींद नहीं आई 7 साल में उसने नेहा को कभी फोन नहीं किया था ना किसी से उसके बारे में पूछताछ उसने खुद को पूरी तरह उसके अतीत से अलग कर लिया था पर अब किस्मत ने दोनों को एक ही शहर में ला खड़ा किया था एक को ऊपर दूसरे को नीचे लेकिन ऊपर नीचे की बात सिर्फ सिर्फ पद की थी। दिल का हिसाब अभी बाकी था। अगली सुबह थाना परिसर में उसकी पहली औपचारिक मीटिंग रखी गई। सभी अफसर, इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, एएसआई सब लाइन में खड़े होंगे। आरव की गाड़ी जैसे ही थाने के गेट पर पहुंची, स्टाफ लाइन में खड़ा हो गया। नया उस लाइन के बीच में थी। वर्दी एकदम फिट। बाल बंधे हुए।

चेहरा पहले से थोड़ा थका हुआ। लेकिन आंखों में अब वह चमक नहीं थी जो कभी आत्मविश्वास से भरी रहती थी। और फिर गाड़ी का दरवाजा खुला। आरव उतरा। आईपीएस की वर्दी में आत्मविश्वास से भरा शांत और संयमित। उसके कदमों में वो फर्मनेस थी जो सिर्फ संघर्ष झेलने वालों में होती है। नेहा ने उसे देखा। पहली नजर में ही उसकी सांस रुक गई। मानो उसके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई हो। वह जहां खड़ी थी वहीं जड़ हो गई। उसकी आंखें फैल गई। होंठ कांपने लगे। दिल जैसे एक पल को धड़कना भूल गया। ये आरव यह शब्द उसके दिल में उठा। लेकिन होठों से आवाज भी ना निकली।

आरव की नजर भी थाने के सभी अफसरों से गुजरते हुए अंत में नेहा पर आकर ठहर गई। बस एक पल के लिए। एक क्षण भर की खामोशी लेकिन उस एक नजर में 7 साल का दर्द 7 साल का संघर्ष और 7 साल की दूरी सब समा गया नेहा झटके से फॉर्मल मुद्रा में खड़ी हो गई उसने हाथ उठाकर सैल्यूट किया गुड मॉर्निंग सर सर वही आरव जिसे उसने कभी मेरे लायक नहीं कहा था आज वही उसके सामने खड़ा था और वह खुद उसे सर कह रही थी। आरव ने बस हल्का सा सिर हिलाया। औपचारिक बिल्कुल औपचारिक ना मुस्कान ना गुस्सा ना ताने बस एक शांत ठंडी सी स्वीकारोक्ति जैसे उसकी जिंदगी में नेहा अब सिर्फ एक अफसर हो। उससे ज्यादा कुछ नहीं। मीटिंग शुरू हुई। आरव काम पर बात करता रहा। फाइलें, केस, अंडर स्टाफ का मुद्दा, ट्रैफिक की परेशानी सब कुछ बहुत नियंत्रित तरीके से नया हर बात सुन रही थी। लेकिन उसका ध्यान हर शब्द पर नहीं। आरव के चेहरे पर था। वो सोच रही थी, क्या यह वही है? वही जिसे मैंने कभी ताने देकर छोड़ा था। मीटिंग के बाद अफसरों की बधाइयों का सिलसिला शुरू हुआ। सब ने कहा सर हमें गर्व है कि आप हमारे जिले में आए। सर आपके साथ काम करके सीखने को मिलेगा। नेहा भी लाइन में खड़ी थी। वो चाहती थी कि शायद आरव उससे कुछ बोले कुछ भी। लेकिन जब उसकी बारी आई आरव ने सिर्फ इतना कहा। गुड। कीप वर्किंग प्रोफेशनली और आगे बढ़ गया। नेहा के लिए यह एक घंसा था। इतना शांत। इतना संयमित लेकिन दिल पर सीधे लगा हुआ।

उस दिन पूरा थाना जान गया कि उन दोनों के बीच कुछ इतिहास है। लेकिन कोई भी पूछने की हिम्मत नहीं कर पाया। शाम को नेहा अपने कमरे में अकेली बैठी थी। वर्दी अलमारी में टंगी थी। कमरा बिखरा हुआ था। टेबल पर आधी बची चाय ठंडी पड़ी थी। वह चुपचाप दीवार को देख रही थी। इतनी देर तक देखती रही कि आंखों में पानी भर आया। 7 साल पहले जो लड़का उसके सामने चुपचाप तलाक के कागज पर साइन कर गया था। आज वही आईपीएस बनकर उसके सामने खड़ा था और वह वह सिर्फ एक सब इंस्पेक्टर ही रह गई थी। पहली बार उसे एहसास हुआ कि सपने पूरे करने से इंसान ऊंचा नहीं हो जाता। संघर्ष को सम्मान देकर आगे बढ़ने से इंसान बड़ा बनता है। उस रात नेहा ने करवटें बदल बदलकर नींद ढूंढी। लेकिन नींद क्या आती? जब दिल में पछतावे का बोझ बैठ चुका था। वो बार-बार सोचती हल्का सा साथ मिल जाता। तो क्या यह रिश्ता टूटता? काश मैंने उसे नीचा ना दिखाया होता। उस दिन मैंने वह शब्द क्यों कहे थे? लेकिन अब पछतावा करने से कुछ बदल नहीं सकता था। उधर आरव अपनी कुर्सी पर बैठा फाइलें देख रहा था। लेकिन मन कहीं और था। वह जानता था कि ऑफिस में उससे मिलने पर नेहा हिल गई है। लेकिन वह यह भी जानता था कि उसकी जिंदगी उस पन्ने को पलट चुकी है। जिस पर नेहा का नाम था। अब वह इंसाफ के लिए जी रहा था ना कि किसी पुराने रिश्ते के लिए और कहानी अब उस मोड़ पर पहुंच चुकी थी जहां दोनों आमने-सामने थे। लेकिन दिलों की दूरी पहले से भी ज्यादा बढ़ चुकी थी।

खैर अगले कुछ दिनों तक नेहा हर मीटिंग में चुपचाप खड़ी रहती रही। जहां बाकी अफसर नए एसपी की तारीफ करते थे। वहीं हर प्रशंसा ने उसके दिल में एक नई टीस छोड़ दी। उसे बार-बार लगता यह सम्मान कभी मेरी जिंदगी का हिस्सा भी हो सकता था। अगर मैंने अपने रिश्ते को समझा होता। लेकिन आरव का व्यवहार अनचेंज था। शांत, सख्त और पूरी तरह प्रोफेशनल। नेहा सैल्यूट करें या फाइल सौंपे। उसका जवाब हमेशा एक सा। ठीक है जाइए। बस इतना और कुछ नहीं।

एक दोपहर जब आरव थाने आया। नेहा की निगाहें अनगिनत बार उसकी तरफ उठी। पर हर बार डर उसे पीछे खींच लेता। मन में एक ही सवाल घूम रहा था। क्या अब भी वह इतना दूर है कि बात भी नहीं करेगा? जांच खत्म होते ही आरव बाहर निकलने लगा। नेहा ने हिम्मत जुटाई और पुकारा। सर दो मिनट बात करनी है। आरव रुक गया। एक पल के लिए उसे देखा और कहा हां बोलिए। नेहा की आवाज कांप रही थी।

मैं मतलब आरव तुमसे कुछ कहना चाहती हूं। 7 साल बाद उसने पहली बार उसका नाम लिया था। आरव शांत खड़ा रहा जैसे वह सुनने को तैयार हो। पर दिल के दरवाजे बंद रखे हो। नेहा बोली मैं स्वीकार करती हूं कि गलती मेरी थी। उस समय मैं खुद को लेकर इतना बदल गई थी कि तुम्हारी अच्छाइयों से ज्यादा अपने सपनों को देखने लगी। तुमने हर कदम पर साथ दिया और मैंने तुम्हें चोट, अपमान, दूरी दी। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। मैंने सोचा था कामयाबी मुझे सब कुछ दे देगी। पर आज महसूस होता है कि भीड़ में सबसे अकेला इंसान वही होता है। जिसने अपने सच्चे साथी को खो दिया हो। कुछ पल की खामोशी के बाद आरव ने बेहद धीमी आवाज में कहा नेहा अगर मैं तुम्हें माफ नहीं करता तो शायद आज यहां तक पहुंच ही ना पाता। माफ करना कभी मुश्किल नहीं था। नेहा की सांसे थम गई। वो उम्मीद से बोली तो क्या इसका मतलब हम फिर से आरव ने उसकी बात पूरी होने नहीं दी। नहीं मैं तुम्हें माफ करता हूं। लेकिन अपनी जिंदगी में वापस नहीं ला सकता क्योंकि हमारी शादी सपनों या प्यार पर नहीं टूटी थी। वह टूटी थी उस दिन जब तुमने मुझे नीचा समझा था और जिस रिश्ते की नींव सम्मान देखकर रखी जाती है उसे एक बार टूटने के बाद जोड़ा नहीं जाता। नेहा की आंखें भर आई। तो क्या मैं अब हमेशा अकेली रह जाऊंगी? आरव ने शांत लहजे में कहा, अकेलापन हर गलती की सजा नहीं होता। लेकिन कुछ फैसले ऐसे होते हैं जिनकी कीमत वक्त के साथ चुकानी ही पड़ती है। इतना कहकर वो मुड़ा और चला गया। ना गुस्सा ना कड़वाहट। बस एक साफ विराम देता हुआ कदम। नेहा वही खड़ी रह गई। नजरें झुकी हुई। दिल जैसे किसी ने मुट्ठी में भी लिया हो। उसी क्षण उसे समझ आ गया कि किसी इंसान को ऊंचा पद नहीं। उसका दिल और व्यवहार बड़ा बनाते हैं। आईपीएस आरव आगे बढ़ गया। संघर्ष की जीत, मां की दुआ और अपने सच्चे मेहनत के भरोसे वो उन लोगों में से था। जो दूसरों की गलती को दिल पर बोझ बनाकर नहीं रखते।

छोड़ देते हैं पर वापस मुड़कर नहीं देखते। पर नेहा उसकी रातें अब उतनी शांत नहीं रही। कभी थाने की कुर्सी पर फाइलें देखते हुए कभी अपनी बैरक की खिड़की से अंधेरा ताकते हुए कभी खाली कमरे में खुद से लड़ते हुए वो बार-बार एक ही बात सोचती क्या वर्दी सच में सब कुछ थी? क्या मैंने इंसानियत को पीछे छोड़ दिया था? अब उसके हर कदम में पछतावा था। हर सुबह में एक खालीपन, हर रात में घुटन, एक ऐसा दर्द जो किसी दवाई से नहीं, सिर्फ समय से भी नहीं भरता क्योंकि वह दर्द उस गलती का था जो खुद अपनी सोच से की गई थी। आरव ने उसे माफ कर दिया क्योंकि वह बदले से नहीं। सीख से जीने वाला इंसान था लेकिन अपनाया नहीं क्योंकि अपने दिल का सम्मान। उसने संघर्ष करके कमाया था और वह उसे फिर टूटने नहीं देना चाहता था। दोस्तों, कहानी का सच बस इतना है। रिश्ते भाग्य से नहीं। हमारे व्यवहार से बनते हैं और जब हम सम्मान खो देते हैं तो प्यार भी टिक नहीं पाता। पद, वर्दी, शक्ति सब कम पड़ जाते हैं। जब साथ देने वाला हाथ छूट जाता है। क्योंकि इंसान सच में बड़ा पद से नहीं। दिल से होता है। अब आपसे एक सवाल अगर आप आरव की जगह होते तो क्या आप नेहा को दोबारा अपनाते या आप भी माफ करके आगे बढ़ जाते? कमेंट में अपना जवाब जरूर लिखिए। आपकी सोच किसी के दिल तकपहुंच सकती है। अगर कहानी ने दिल छुआ तो इस वीडियो को लाइक करें। स्टोरी बाय बीके को सब्सक्राइब करें और अगली कहानी का इंतजार कीजिए क्योंकि हर कहानी में छुपा होता है जिंदगी का एक नया सच। जय हिंद जय भारत।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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