lalittripathi@rediffmail.com
Stories

रिश्ते और चाय

43Views

रिश्ते और चाय

एक छोटे से कस्बे में रतन लाल नाम के बुज़ुर्ग रहते थे। उम्र ढल चुकी थी, कदम धीमे थे, पर दृष्टि बहुत साफ़ थी। लोग कहते थे कि उनकी आँखें कमज़ोर हो गई हैं, पर सच यह था कि अब वही चीज़ें साफ दिखती थीं जिन्हें देखने की समझ उम्र के साथ आती है।

रतन लाल रोज़ सुबह अपनी हवेली के बरामदे में बैठकर चाय पीते थे। उनके पड़ोस में रहने वाला युवा महेन्द्र अक्सर उनकी बातों से प्रेरित होता। एक दिन उसने पूछा, “बाबाजी , आप हर बात को चाय से क्यों जोड़ते हो?”

बाबाजी मुस्कुराए और बोले, “बेटा , रिश्ते भी चाय की तरह ही होते हैं। शकर कम हुई तो स्वाद नहीं, ज्यादा हुई तो मन भर जाता है। संतुलन सबसे बड़ी समझ है।”

महेन्द्र चुप रहा। वह अपने परिवार से अक्सर उलझा रहता था—कभी अहंकार, कभी नाराज़गी, कभी अपेक्षाएँ। उसके भीतर सवालों का तूफ़ान था—क्या हमेशा झुकना ही सही है? क्या हर बात पर समझौता करना सही है?

बाबा जी ने उसे देखा और धीरे से बोले, “अगर झुकने से रिश्ता गहरा हो, तो झुक जाना चाहिए। लेकिन बेटा, अगर हर बार सिर्फ़ तुम ही झुक रहे होतो रुक भी जाना चाहिए। रिश्ता दोनों तरफ़ से चलता है।

उस दिन बाबा जी ने उसे चाय बनाना सिखाया।

उन्होंने तीन कप सामने रखेएक में कम चीनी, एक में ज्यादा, एक बिल्कुल सही। देखो महेन्द्र, कम मीठी चाय जैसा रिश्ता फीका लगता है, ज्यादा मीठी चाय उबाऊ लेकिन संतुलित चाय मन को भी भाती है और दिल को भी। रिश्ते भी संतुलन मांगते हैं।

फिर बाबा जी बगीचे में ले गए। उन्होंने बर्फ को छुआ—ठंडक मिली।अग्नि के पास हाथ ले गए—गरमाहट मिली। गुलाब को सूंघा—खुशबू मिली।

और बोले, “कुछ चीजों के पास जाने पर बिना मांगे ही मिल जाती है जैसे बर्फ की शीतलता, आग की गर्मी, गुलाब की महकठीक वैसे ही भगवान भी। उनसे निकटता बनाओ, वो सब कुछ दे देंगेशांति भी, समझ भी, मार्ग भी।

उस दिन महेन्द्र ने समझा कि जीवन का असली स्वाद संतुलन, सजगता और स्नेह में छिपा है।

रिश्ते निभाना कठिन नहीं, कठिन है अपने अहंकार को कम करना और आदतों को सही दिशा देना।

अच्छी आदतें पहले कठिन लगती हैं, पर जीवन आसान बना देती हैं; बुरी आदतें आसान दिखती हैं, पर जीवन मुश्किल कर देती हैं।

कुछ महीनों में महेन्द्र का घर हंसी से भर गया…क्योंकि उसने चाय बनाना ही नहीं, रिश्तों को बनाना भी सीख लिया था। जीवन का असली स्वाद संतुलन, समर्पण और स्नेह में है। भगवान और रिश्तों से निकटता बनाओसब कुछ अपने आप मिलने लगता है।

कहानी अच्छी लगे तो Like और Comment जरुर करें। यदि पोस्ट पसन्द आये तो Follow & Share अवश्य करें ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply