मदद
मोहन अपनी पत्नी सुधा के साथ मंदिर भगवान के दर्शनों के लिए आया था दर्शनों के बाद वापसी में मंदिर की सीढियों से उतरते समय अचानक दोनो पति पत्नी को भिखारियों की भीड ने घेर लिया …. सुधा ने पर्स खोलकर उन्हें पैसे देने शुरू ही किए थे कि मोहन गुस्सा होने लगा उफ्फ सुधा…… तुम्हें पता है ना मुझे ये सब पसंद नहीं फिर भी ….. यार इन्हीं वजहों से मंदिर आना मुझे अजीब सा लगता है ….।
मोहन जी!…..ईश्वर की कृपा से हमारे पास सबकुछ है एक बडी एक्सपोर्ट की फैक्ट्री तो एक बुटीक …. इतना कमाते हैं तो कुछ दान भी तो करना चाहिए ना …?
यार मुझे दान देने से कोई परेशानी नहीं …. परेशानी इन हट्टे कट्टे लोगों को देखकर होती है जो स्वयं काम धंधा करके कमा खा सकते है मगर ….बैठे बैठे तुम जैसे लोगों की वजह से ये काम धंधा नहीं करते ….।
अरे …तो आप क्या चाहते है कोई इन्हें कुछ ना दे ….और यदि कहीं कोई काम नहीं मिले तो ये भूखे सोए ये तो गलत है ना ….।
उफ्फ ….तुम्हें कौन समझाए अब ….कहकर मोहन वहीं एक थडे पर बैठ गया ….।
अचानक उसकी नजर एक बुजुर्ग दंपति पर पडी जो बहुत सुंदर सुंदर कपडो के बैग लिए बैठे थे ….आप दोनो क्यों नहीं मांगते ….आपकी तो उम्र भी है ….मोहन ने कुछ तीखे तेवर से दोनो को कहा….बेटा ….हमें अच्छा नहीं लगता ….हम मेहनत करके खाने में विश्वास रखते है ना कि मांगकर खाने में ….।
मोहन को कुछ हैरानी हुई ….फिर वह बोला … तो बाबा आप इन्हें क्यों नहीं समझाते …. बेटा… ये देखो ….हम दोनो पति पत्नी पूरे दिन में दो या तीन बैग बेच पाते है जैसे तैसे गुजर बसर करते है ऐसे में इन्हें कहे भी तो क्या….लोगों को एक्सपीरियंस वाले लोग ही चाहिए होते है फैक्ट्री मे या दूसरी जगहों पर ….तो कौन रखेगा हमें भला ….बस यही कारण है कोई भी मेहनत करके नहीं खाना चाहता….बाबा ये बैग बडे सुंदर है कहा से लाते हो ….मुझे भी बताइए मुझे थोक के भाव मे चाहिए …बेटा ….ये ….ये तो हम खुद बनाते हैं।
क्या ? इतने सुंदर.. कैसे..
बेटा वहां एक दो दर्जियों की दुकानें है बाजार में ….बस वही से कतरनें ले आते हैं और घर बैठकर बैग बना लेते है कितने मे देते हो बाबा पचास रु मे…अच्छा… मोहन कुछ सोचने लगा तब तक सुधा भी वहां आ गई … मोहन जी… नाराज हो गए ….अरे बाबा इतनी तकलीफ होती है तो कुछ कीजिए ना इन लोगों के लिए ….
सुधा ….वही सोच रहा हूं बाबा ….अगर आपको ये कतरनें मिल जाए तो आप मुझे ये बैग कितने बनाकर दे सकते है। बेटा….कतरे हो तो…. दिन मे पांच छ….और यदि आपको कुछ सहायता करनेवाले मिल जाए तो….तब तो दस पंद्रह ….और उससे अधिक भी हो सकते है।
हूं तो ठीक है आप मेरे साथ मेरी फैक्ट्री चलिए ….वहीं सर्वेट क्वाटर्स मे रहिए ….मेरी एक्सपोर्ट की फैक्ट्री है दुनिया भर की कतरे मिल जाएगी आपको …. सच बेटा….जी बिल्कुल सच ….बस काम ईमानदारी से कीजिएगा और हां बैग की कीमत पचास रु के हिसाब से दूंगा क्या ….. नहीं बेटा तब तो चालीस भी नहीं पचास रु….
सुधा…. मगर मोहनजी आप इतने सारे बैग्स का करेंगे क्या तुम्हारे बुटीक मे जो हम बैग्स लाते हैं पेपर्स के उनके बदले मे हम इन्हें यूज करेंगे…मगर लोग अधिक पैसे देगे क्या?उसकी परवाह नहीं ….देखो ऐसा करने से बाबा सहित यहां के अनेक लोगों को काम मिल जाएगा और हुनर के जरिए अपनी पहचान
सुधा हम नफा नुकसान नहीं बल्कि इन्हें आत्मनिर्भरता सीखाने पर ध्यान देना चाहिए …. बाबा आप इन सबको भी तैयार कीजिए ….हम आज से ही अपना ये काम शुरु करेंगे….सुधा सहित दोनो बुजुर्ग दंपति के चेहरों पर सुकून देने वाली मुस्कुराहट थी….।
दोस्तों ….अगर ऐसे ही मददगार बनेंगे से हम अपने देश अपने शहर को खूबसूरत बना सकते है ….।
जय श्रीराम