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दिखावे की दुनिया

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दिखावे की दुनिया

एक शहर में एक सेठ जी रहते थे, जिनका नाम था- लालचंद मगनलाल धन्नासेठ. वैसे तो उनके पास धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन सबसे बड़ी कमी थी उनके नाम में, उनका पूरा नाम इतना लंबा था कि जब वे अपना परिचय देते थे, तब तक सामने वाला उबासी ले लेता था!

पर लालचंद को लगता था कि नाम जितना लंबा होगा, सम्मान उतना ही बड़ा होगा. एक बार उन्होंने शहर के सबसे बड़े पंडित से सलाह ली. पंडित जी ने कहा, “सेठ जी, आपका नाम तो बहुत बड़ा है, लेकिन इसमें एक कमी है. इसमें कोई महानता नहीं झलकती. आपको अपने नाम के आगे कुछ ऐसा लगाना चाहिए, जिससे लोग सुनते ही सम्मान में सिर झुका लें.”

सेठ जी ने पूछा, “क्या लगाया जाए?”

पंडित जी ने सोचा और कहा, “आप अपने नाम के आगे ‘कला-प्रेमी’ लगा लीजिए. इससे आपकी छवि एक संस्कारी और कला-प्रेमी इंसान की बन जाएगी.”

सेठ जी को यह सलाह बहुत पसंद आई. अगले दिन से उनका नया नाम हो गया- ‘कला-प्रेमी’ लालचंद मगनलाल धन्नासेठ.

अब समस्या यह थी कि उन्हें कला के बारे में कुछ भी नहीं पता था. वे कभी किसी कला प्रदर्शनी में नहीं गए थे, न ही उन्हें संगीत की समझ थी.

एक दिन उन्होंने अपने घर में एक भव्य पेंटिंग प्रदर्शनी का आयोजन किया. शहर के सारे बड़े लोग आए. सेठ जी ने एक मशहूर पेंटर की पेंटिंग खरीदकर बीच में रखवा दी और उसके बगल में खड़े होकर सबको बताने लगे कि यह कितनी अद्भुत कला है.

एक सज्जन ने पास आकर कहा, “सेठ जी, यह तो उलटी पेंटिंग रखी है.”

सेठ जी चौंक गए. उन्होंने बिना कुछ सोचे-समझे कहा, “हाँ! यही तो इस कला की खासियत है. इसे उलटा करके देखना चाहिए, तभी इसका असली सौंदर्य नज़र आता है!”

यह सुनते ही सब लोगों ने तालियाँ बजानी शुरू कर दीं. किसी को समझ नहीं आया कि वे किस बात पर ताली बजा रहे थे, पर सब ने सोचा कि सेठ जी ज़रूर कोई गहरे राज़ की बात कर रहे होंगे.

कुछ दिनों बाद शहर में एक संगीत समारोह हुआ. ‘कला-प्रेमी’ सेठ जी को भी बुलाया गया. एक गायक बहुत ही सुरीले सुरों में गा रहा था, लेकिन सेठ जी को उसकी गायकी समझ नहीं आ रही थी.

गाने के अंत में जब सब लोग वाह-वाह कर रहे थे, सेठ जी ने अपनी विद्वत्ता दिखाने के लिए कहा, “गायक जी, आपकी गायकी बहुत ही अच्छी है, लेकिन इसमें थोड़ी और… ‘अहंकारी-मौनता’ होती तो और भी मज़ा आता.”

‘अहंकारी-मौनता’ का मतलब किसी को नहीं पता था, लेकिन सेठ जी की यह बात सुनकर सब लोगों ने सोचा कि यह कोई बहुत ही उच्च स्तर की संगीत की बात है. सबने एक-दूसरे को देखकर सिर हिलाया, मानो वे सब इस बात का गहरा मतलब समझ रहे हों.

सेठ जी को समझ आ गया था कि इस दुनिया में ज्ञान से ज्यादा ज़रूरी है, ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना, जिनका मतलब कोई न जानता हो.

और इस तरह, ‘कला-प्रेमी’ लालचंद की प्रसिद्धि पूरे शहर में फैल गई. वे हर जगह ज्ञान और कला के बारे में ऐसी बातें करते, जिनका कोई सिर-पैर नहीं होता, पर लोग उन्हें विद्वान मानकर ताली बजाते रहते.

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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