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पश्चाताप   

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पश्चाताप   

                                                                                                                                                                 एक गांव में एक पुत्र अपने पिता और पत्नी के साथ रहता था। पिता बूढ़े हो चुके थे। इस वजह से उनकी बीमारी बढ़ गई । पत्नी को ससुर की बीमारी की वजह से काफी काम करना पड़ता था। 1 दिन पत्नी ने अपने पति से कहा कि आप अपने पिता को वृद्ध आश्रम छोड़ आओ। सेवा नहीं कर सकती। आप उनके लिए ऐसी व्यवस्था कर देना कि वह त्योहारों पर भी घर ना आए।

पति ने अपनी पत्नी की बात मानी और अपने पिता को अनाथ आश्रम में छोड़ आया। तभी बेटे को ख्याल आया कि अनाथ आश्रम के अधिकारी को यह बात भी कहनी है कि त्योहारों पर भी पिताजी अनाथ आश्रम में ही रहेंगे। इस बात को कहने के लिए वह फिर से अनाथ आश्रम गया।

जब बेटा फिर से वृद्ध आश्रम पहुंचा तो उसने देखा कि उसके पिता और अनाथालय के वृद्ध अधिकारी बहुत ही प्रेम के साथ एक दूसरे से गले मिल रहे हैं और वे दोनों काफी खुश हैं। बेटे को देखकर काफी हैरानी हुई कि यह दोनों इतनी जल्दी कैसे घुल मिल गए।

थोड़ी देर बाद ही पिता अपने कमरे में चले गए और बेटे ने अनाथ आश्रम के अधिकारी से बातचीत की। उसने पूछा कि मेरे पिताजी को कब से जानते हैं। अधिकारी ने बताया कि मैं पिछले 30 सालों से जानता हूं क्योंकि 30 सालों पहले उन्होंने एक बच्चे को अनाथ आश्रम से गोद लिया।

यह सुनते ही बेटे को समझ आ गया कि वह कोई और नहीं बल्कि मैं था। उन्होंने मेरे खुशी के लिए अपना सब कुछ मुझ को ही समर्पित कर दिया। मेरी खुशी के लिए अनाथ आश्रम चले गए। बेटे को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह सोचने लगा कि मैंने महान इंसान के साथ बहुत गलत किया।

उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपने पिता से माफी मांगी और अपने पिता को घर ले आया और अपनी पत्नी को भी समझा दिया कि अब तुम ही अपनी ससुर की सेवा करोगी।

कहानी की सीख:- इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि माता-पिता अपने बच्चों के लिए सभी सुख-सुविधाओं का त्याग कर देते हैं। लेकिन माता-पिता जब बूढ़े हो जाते हैं तो बच्चे अपनी जिम्मेदारी भूल जाते हैं।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

1 Comment

  • यह एक बात तय है कि अगर हम अपने मां बाप की सेवा नहीं करते तो जीवित पितरों के आशीर्वाद से वंचित होते है साथ ही बुढ़ापे में भी हमारी दुर्गति तय है।

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