बाग़ का माली और बार-बार बदलती ज़मीन
एक गांव में एक माली था — बहुत ही मेहनती, बहुत ही श्रद्धालु।
उसने मन में ठान लिया कि उसे एक दिव्य वृक्ष उगाना है, ऐसा वृक्ष जो फल भी दे, छाया भी दे और जीवन में स्थायित्व भी लाए।
उसने एक सुंदर बीज खरीदा — बहुत ध्यान से, कई जगहों पर पूछताछ कर के, समझ-बूझ कर।
पहले दिन उसने वो बीज अपने आँगन में बोया।
दूसरे दिन उसे लगा कि शायद यह जगह ठीक नहीं।
तो उसने बीज को निकालकर बाग़ में बो दिया।
तीसरे दिन किसी और ज्ञानी ने कहा, “यह ज़मीन बहुत सूखी है, फल नहीं देगा।”
तो माली फिर बीज को खोदकर तीसरी जगह ले गया।
ऐसा करते-करते हफ़्तों बीत गए।
हर बार माली नई उम्मीद, नई सलाह, नई ज़मीन के चक्कर में बीज को उखाड़ता और नई जगह बोता।
महीनों बीत गए… पर बीज कभी अंकुरित नहीं हुआ।
थका-हारा माली एक दिन एक बुज़ुर्ग संत के पास पहुँचा और बोला,
“मैंने इतने अच्छे बीज लिए, इतनी मेहनत की, फिर भी कुछ उगा नहीं।”
संत मुस्कुराए और बोले,
“बेटा, बीज को सिर्फ अच्छी ज़मीन नहीं चाहिए — उसे स्थायित्व चाहिए।
हर बार ज़मीन बदलोगे तो वो कभी जड़ नहीं पकड़ेगा।
पानी, हवा, धूप सब मिल जाए — पर अगर ज़मीन हर दिन बदली जाए, तो बीज मर जाता है।”
“ठीक वैसे ही — भक्ति का बीज भी जब बोओ, तो मन एक ही जगह स्थिर करो।
हर बार नए स्थान, नए नियम, नए गुरु ढूंढते रहोगे — तो आत्मा की खेती कभी हरी नहीं होगी।”
माली की आँखों में आँसू आ गए।
उसे समझ आ गया कि भक्ति की राह में ‘वफादारी’ सबसे पहली खाद होती है।
निष्कर्ष
भक्ति कोई दौड़ नहीं, कोई प्रयोग नहीं।
यह आत्मा का घर है — जहाँ टिक कर बैठा जाता है, भागा नहीं जाता।
जिस राह से जुड़े हो, जब जुड़ जाओ — तो फिर उसी में डूबो।
तभी वो नाम आपके जीवन को रोशन करेगा।
जय श्रीराम
मैं आत्मा ज्योति बिंदु हूं और देह तथा देह के संबंधों को त्यागकर, परम पिता परम आत्मा को याद किया जाए तो जीवन में सुख शांति संपन्नता आ जाएगी