lalittripathi@rediffmail.com
Stories

कांच की बरनी और दो कप चाय

121Views

कांच की बरनी और दो कप चाय

एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं …उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें  टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक और गेंद समाने की जगह नहीं बची …

उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ?

हाँ … आवाज आई …फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे – छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये धीरे – धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई , छात्रों ने एक बार फ़िर जोर से हाँ … कहा

अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली उठाई और हौले – हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँस रहे थे … फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी तरह भर गई ना ?

हाँ  .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. अब प्रोफ़ेसर साहब ने टेबल के नीचे से दो कप चाय निकालकर कपों वाली चाय जार में डाल दी, चाय भी रेत ने सोख ली… !!

फिर प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो …. टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं , छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और रेत का मतलब और भी छोटी – छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ हैं ..

अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या  कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी … ठीक यही बात जीवन पर भी लागू होती है …

यदि तुम छोटी – छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा …

मन के सुख के लिये क्या जरूरी है?…ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , घर के काम में हाथ बंटाओ, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक – अप करवाओ …

टेबल टेनिस की गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है … पहले तय करो कि क्या जरूरी है … बाकी सब तो रेत है ..

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक छात्र ने पूछा , सर लेकिन आपने यह तो बताया ही नहीं कि “चाय के दो कप” क्या हैं ?

प्रोफ़ेसर साहब मुस्कुराये और बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया …

 इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिए। 

अगर पोस्ट अच्छी लगे तो अपने ख़ास मित्रों और निकटजनों को यह विचार तत्काल भेजें….

कहानी अच्छी लगे तो Like और Comment जरुर करें। यदि पोस्ट पसन्द आये तो Follow & Share अवश्य करें ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply