दो कप और एक सवाल
बाइक को उसके घर के बाहर साइड में लगा कर वो घर के कैंची गेट को खोल कर अंदर घुसा, ये क्या?….घर के मुख्य दरवाजे पर ताला लटका रहा था, उसने मोबाइल निकाल कर टाइम देखा,अब तक तो मित्रा को घर आ जाना चाहिए था, वो तो तय समय पर ही पहुंचा था। वही खड़े खड़े उसने मित्रा को फोन लगाया,उसके हैलो बोलने से पहले ही उधर से उतावली सी मित्रा की आवाज आई -“अरे..मैं आफिस से निकल ही रही थी,कि बॉस ने बुला लिया,कल की मीटिंग के पॉइंट्स डिसकस करने लगे…अभी फ्री हुई हूँ,निकल रही हूं…तुम ऐसा करो,इधर गुलाब के गमले के नीचे चाबी है,तुम चल कर अंदर बैठो ,मैं 10 मिनट में पहुंच रही हूं”
“ओके ओके.. ईजी ईजी…आराम से आओ,मैं अंदर बैठता हूँ”-उसने कहा और फोन काट दिया।
गमले के नीचे से उसने चाबी बरामद की,दरवाजा खोल कर वो बाहर वाले कमरे में आया, पंखा ऑन किया..और सोफे का एक कोना पकड़ कर उस पर बैठा ही था कि सेंटर टेबल पर नजर पड़ी। एक प्लेट में दो बिस्कुट पड़े हुए थे..दो चाय के खाली कप,इस तरह से पड़े थे कि चाय पीने वाले दो व्यक्ति आमने सामने बैठे होंगे।
मित्रा तो अकेली रहती है, अभी इस शहर में उसकी किसी से ज्यादा वाकफियत नही है…तो कौन सुबह सुबह आया होगा, जिस के साथ चाय पी गई?….बेफजूल सा शक उसके जेहन में कूदने लगा, उसने इस ख्याल को दिमाग से रुख़सत करने का यत्न किया…लेकिन …!
“अरे..कोई भी हो सकता है,कोई आस-पड़ोस से महिला आई होगी, यहाँ ऑफिस जाने से पहले उसकी कोई कुलीग इधर आ गई होगी..” वो खुद को समझाने की कोशिश करने लगा….उसने मोबाइल में खुद को खपाने की कोशिश की,लेकिन बार बार उसकी नजर दो कपो पर जा कर अटक रही थी…कौन होगा दूसरा।
स्त्री के चरित्र को कोई नही जान सकता था,ये कही पढा हुआ वाक्य बार बार उसको याद आने लगा। 10 मिनट उसे बड़े भारी लग रहे थे। तभी बाहर स्कूटरी रुकने की आवाज आई,फिर कैंची गेट खड़का।चंद क्षणों में मित्रा ने कमरे में कदम रखा,वो हांफ रही थी, लगता है भागती हुई सी आई है,जून की भयंकर गर्मी ने रास्ते मे उसे बेहाल कर दिया था। उसने धम्म से खुद को सोफे पर पटका और एसी की तरफ देखा-“अरे यार, एसी क्यों नही चलाया?..”
वो उठा उसने एसी ऑन किया, मित्रा को देख कर जो सुकून, खुशी , आनन्द उसके चेहरे पर हमेशा आ जाता था,आज वो गायब था। ये बात तुरंत ही मित्रा ने नोट कर ली।
‘क्या हुआ? कुछ अपसेट लग रहे हो”-मित्रा ने पूछा.
“नही,ऐसी कोई बात नही”, उसने खुद को संभालते हुए कहा।
“रहने दो इस छुपाने की कोशिश को, इतना तो अब समझ आने लगे हो कि पता चल जाता है तुम्हारे मूड का…चलो, जल्दी से बताओ क्या बात है”,-मित्रा ने थोड़ा शोख होते हुए कहा।
“कुछ नही ,छोड़ो…,पानी लाऊं तुम्हारे लिये? या चाय ही बना लाऊं?”।
“पांच मिनट दो मुझे, जरा सांस ले लूं, फिर मैं ही चाय बनाकर लाती हूँ, मेरे हाथ की चाय पीने ही तो आये हो तुम”-मित्रा चंचलता से बोली।
उसकी तरफ से इस चंचलता का कोई रिएक्शन ना देख कर मित्रा जरा सी विचलित हो गई, उठकर उसके पास आई ,उसके पास बैठते हुई बोली “क्या चल रहा तुम्हारे मन मे?”
अब उस से रहा नही गया, उसने टेबल पर पड़े हुए दो कपो की तरफ इशारा करते हुए कहा-“कौन आया था सुबह ?”….
मित्रा को झटका सा लगा, उसने बौखलाते हुए,उसकी तरफ हैरानी से देखा, झटके से खड़ी हुई, उसने कुछ पल के लिए उसे ऐसे देखा, जैसे यकीन न हो रहा हो — फिर धीरे से मुस्कराई।
“अच्छा किया जो पूछ लिया… पर सुनो ज़रा ध्यान से।”
वो अब सेंटर टेबल की ओर बढ़ी। “ये जो दो कप देख रहे हो, इनमें से एक तुम्हारे लिए ही था।” उसने कप उठाया, और हल्के से थपथपाते हुए बोली —”कल रात जब बात हो रही थी न फोन पर… और आज शाम की मुलाकात तय हुई थी,तो उसके बाद मैं तुम्हारे बारे सोच रही थी,इसी बेध्यानी में चाय बनाने किचन में चली गई, और चाय दो कप बन गई… मैं दो कप डाल कर ले आई और तुम्हे यहाँ हाजिर नाजिर मान कर दोनों कप पी गई, रात देर तक नींद नही आई फिर, सुबह लेट उठी ,बहुत लेट..नाश्ता भी नही बना पाई, सेब खाकर ही जाना पड़ा और घर भी यूँ अस्त व्यस्त पड़ा रहा, ये कप भी…!
वो कुछ बोल नहीं पाया।
मित्रा अब उसके करीब आ चुकी थी। उसका हाथ अपने हाथों में लेकर,आँखों मे आंखे डालते हुए बोली- “शक बहुत सस्ता होता है, और रिश्ता बड़ा कीमती,शक की रेखा इतनी बारीक होती है कि अगर वक्त रहते मिटा न दी जाए, तो दरार बन जाती है। शुक्र है तुमने पूछ लिया,अगर मन मे रखे रखते तो नासूर बन जाता”
उसने मुस्कराकर उसकी उंगलियाँ थाम लीं —”अब चलो, तुम्हारे लिए नए कप में चाय बनाऊं?”
मित्रा की आँखों में अब संकोच नहीं, सुकून था। और वो भी सारी दुविधाओं से निकल आया था।
टेबल पर कप अब भी रखे थे — मगर अब वे अपराधी नहीं थे, बल्कि गवाह थे उनके रिश्ते की मजबूती के।और दोनों की आँखों में अब एक नया विश्वास का स्वाद उतर आया था… शायद चाय से भी ज़्यादा गर्म।
शिक्षा:- हमेशा पहले सच्चाई को जानें, फिर धारणा बनाएं। बोलने में नहीं, छुपाने में रिश्ते मरते हैं।अक्सर हम छोटी-छोटी बातों को बड़ा बना लेते हैं। लेकिन यदि दिल साफ़ हो और इरादे नेक हों, तो हर छोटी बात सुलझाई जा सकती है।
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जय श्रीराम