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सच्ची जिंदगी

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सच्ची जिंदगी

पत्नी और पति में झगड़ा हो गया। पति और बच्चे खाना खाकर सो गए तो पत्नी घर से बाहर निकल गई, यह सोचकर कि अब वह अपने पति के साथ नहीं रह सकती। मोहल्ले की गलियों में इधर-उधर भटक रही थी कि तभी उसे एक घर से आवाज सुनाई दी, जहाँ एक स्त्री रोटी के लिए ईश्वर से अपने बच्चे के लिए प्रार्थनाएं कर रही थी।

वह थोड़ा और आगे बढ़ी तो एक और घर से आवाज आई, जहाँ एक स्त्री ईश्वर से अपने बेटे को हर परेशानी से बचाने की दुआ कर रही थी। एक और घर से आवाज आ रही थी जहाँ एक पति अपनी पत्नी से कह रहा था कि वह मकान मालिक से कुछ और दिन की मोहलत मांग लें और उससे हाथ जोड़कर अनुरोध करें कि रोज-रोज आकर उन्हें तंग न करें।

थोड़ा और आगे बढ़ी तो एक बुज़ुर्ग दादी अपने पोते से कह रही थी, “बेटा, कितने दिन हो गए तुम मेरे लिए दवाई नहीं लाए।” पोता रोटी खाते हुए कह रहा था, “दादी माँ, अब मेडिकल वाला भी दवा नहीं देता और मेरे पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि मैं आपके लिए दवाई ले आऊं।”

थोड़ा और आगे बढ़ी तो एक घर से स्त्री की आवाज आ रही थी जो अपने भूखे बच्चों को यह कह रही थी कि आज तुम्हारे बाबा तुम्हें खाने के लिए कुछ ना कुछ जरूर लाएंगे, तब तक तुम सो जाओ। जब तुम्हारे बाबा आएंगे तो मैं तुम्हें जगा दूंगी। वह औरत कुछ देर वहीं खड़ी रही और सोचते हुए अपने घर की ओर वापस लौट गई कि जो लोग हमारे सामने खुश और सुखी दिखाई देते हैं, उनके पास भी कोई ना कोई कहानी होती है।

फिर भी, यह सब अपने दुख और दर्द को छुपाकर जीते हैं। वह औरत अपने घर वापस लौट आई और ईश्वर का धन्यवाद करने लगी कि उसके पास अपना मकान, संतान और एक अच्छा पति है। हाँ, कभी-कभी पति से नोक-झोंक हो जाती है, लेकिन फिर भी वह उसका बहुत ख्याल रखता है। वह औरत सोच रही थी कि उसकी जिंदगी में कितने दुख हैं, मगर जब उसने लोगों की बातें सुनीं तो उसे यह एहसास हुआ कि लोगों के दुख तो उससे भी ज्यादा हैं।

शिक्षा:-जरूरी नहीं कि आपके सामने खुश और सुखी नजर आने वाले सभी लोगों का जीवन परफेक्ट हो। उनके जीवन में भी कोई न कोई परेशानी या तकलीफ होती है, लेकिन सभी अपनी परेशानी और तकलीफ को छुपाकर मुस्कुराते हैं। दूसरों की हंसी के पीछे भी दुख और मातम के आंसू छिपे होते हैं। कठिनाइयों और परीक्षणों के बावजूद जीना जीवन की वास्तविकता है, यही सच्ची जिंदगी है।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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