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प्रभु ही पालनहार हैँ

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प्रभु ही पालनहार है

जो सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार करनेवाले हैं, उन्हीं परमात्मा के हम अंश हैं। हम भले ही भगवान को भूल गये हों, पर वे हमें नहीं भूले हैं, हम कैसे ही क्यों न हों, भगवान् हमारा पूरा ख्याल रखते हैं जो भगवान को यादतक नहीं करते, उनका भी भगवान् प्रेमपूर्वक पालन करते हैं, सब तरह का प्रबन्ध करते हैं।

एक बार रुक्मिणीजी ने विचार किया कि मैं देखू, भगवान् इतने जीवों का कैसे पालन करते हैं? उन्होंने एक डिब्बी लेकर उसमें एक कीड़ी को बन्द करके रख दिया। दूसरे दिन उन्होंने भगवान से पूछा कि महाराज, आपने सबको भोजन पहुँचा दिया, सबके भोजन का ठीक-ठीक प्रबन्ध कर दिया? भगवान् बोले कि हाँ, सबको भोजन पहुँचा दिया।
रुक्मिणीजी ने जाकर डिब्बी को खोला तो देखा कि कीड़ी के मुख में चावल है। रुक्मिणीजी को बड़ा आश्चर्य हुआ! बात यह हुई कि डिब्बी को बन्द करते समय रुक्मिणीजी के तिलक पर लगा एक चावल डिब्बी में गिर गया इसका रुक्मिणीजी को पता ही नहीं लगा। रुक्मिणीजी ने डिब्बी को पीछे बन्द किया, पर भगवान ने प्रबन्ध पहले ही कर दिया ! इस प्रकार भगवान् किसका कैसे प्रबन्ध करते हैं, कैसे रक्षा करते हैं, इस बातको हम जान नहीं सकते।

यह हमारी बुद्धि से बाहर की बात है। हमारे एक मित्र थे। उन्होंने विचार किया कि देखें, भगवान् कैसे पालन करते हैं! उन्होंने निश्चय किया कि मैं एक जगह रहूँगा नहीं, भिक्षा लेने जाऊँगा नहीं, किसी से मिलूंगा नहीं, कोई पूछे तो बोलूँगा नहीं, किसीसे कुछ माँगूंगा नहीं। फिर देखू, भगवान् कैसे देते हैं, किस तरह से देते हैं? उन्होंने एक कमण्डलु और पानी निकालने के लिये एक रस्सी ले ली और वहाँ से चल दिये। चलते-चलते कोई गाँव दिखायी देता तो रास्ता बदलकर दूसरी तरफ, जंगल की ओर चल देते। ऐसा करते हुए दो-तीन दिन हो गये। एक दिन शाम के समय उन्हें एक गाँव के पास कोई भेड़ चराने वाला मिल गया। उसने प्रणाम किया और बातें पूछने लगा, पर महाराज कुछ बोले नहीं और दूसरे रास्ते चल दिये। वह रास्ता खेत की तरफ जाता था। रात हो चुकी थी। उन्होंने खेत के कुएँ से जल निकालकर हाथ-मुँह धोया, जल पिया और वहीं सो गये। अचानक ‘महाराज! महाराज!’ आवाज सुनकर उनकी नींद खुल गयी। देखा तो वह भेड़ चरानेवाला हाथ में लोटा लिये खड़ा था। वह बोला कि ‘महाराज, मैं आपके लिये दूध गरम करके लेकर आया हूँ, और गायका दूध लाया हूँ, बकरी का नहीं।

इस तरह भगवान् सबका पालन करते हैं। कोई भजन करता है कि नहीं करता है, भगवान को याद करता है कि नहीं करता है, इसकी भगवान को कोई परवाह नहीं। एक सज्जन एकादशी का व्रत किया करते थे। व्रत के दूसरे दिन वे किसी साधु को, ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर खुद भोजन किया करते। एक दिन उन्होंने एकादशी-व्रत रखा तो व्रत के दूसरे दिन वर्षा होने के कारण भोजन करने कोई आया नहीं। वे ढूँढ़नेके लिये बाहर गये तो उनको एक वृद्ध, सफेद दाढ़ीवाला साधु मिला। उससे पूछा कि भोजन करोगे, तो वह बोला कि हाँ, करूँगा। वे उस साधु को घर ले आये। उनको बैठाकर भोजन परोसा तो वे पाने लग गये। वे सज्जन बोले कि ‘महाराज, सन्तलोग तो पहले भगवान को भोग लगाते हैं, फिर प्रसाद पाया करते हैं। वह साधु बोला कि भगवान क्या होते हैं? यह सब पाखण्डियों का, ठगों का काम है, आदि-आदि। इस प्रकार जब वह भगवान की निन्दा करने लगा तो उस सज्जन ने भोजन की पत्तल खींच ली और बोले कि ‘यदि भगवान कुछ नहीं, सब पाखण्ड है, तो मैं किसके नाते आपको भोजन करा रहा हूँ? भगवान के नाते ही तो मैं आपको भोजन करा रहा हूँ।’ इतने में आकाशवाणी हुई कि यह तो बचपन से ही ऐसा था और इस तरह मेरी निन्दा करता आया है, मेरा भजन कभी किया ही नहीं, फिर भी मैंने इतने दिन इसका पालन किया, पालन करते इसकी सफेद दाढ़ी हो गयी, तू इसको एक समय भी भोजन नहीं दे सका! अगर तेरी तरह मैं विचार करता तो क्या यह इतने दिन जीता?’ इस तरह कोई भजन करे या निन्दा,भगवान सबका पालन करते हैं। जैसे सृष्टि-रचना करना ब्रह्माजी का और संहार करना शंकर का काम है, ऐसे पालन करना विष्णु का काम है। ये अपना काम पूरी तत्परता से करते हैं। अब कोई कैसा है, भजन करता है कि नहीं करता है, आस्तिक है कि नास्तिक है, इसकी तरफ ख्याल ही नहीं करते और सबका पालन-पोषण करते हैं। उनकी कृपा से ही सब जी रहे हैं। हम अपनी ताकत से अपना पालन, अपनी रक्षा कर नहीं सकते। ऐसे भगवान का स्मरणमात्र करने से वे राजी हो जाते हैं। इससे सुगम और क्या साधन होगा!
जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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