अभिमान की दशा
अभिमान न क्षमा माँगने देता है और न क्षमा करने देता है। यह मनुष्य को पल-पल प्रतिशोध की अग्नि में जलाता रहता है। क्षमा कर दो या या क्षमा मांग लो, जीवन की बहुत सारी समस्याएं स्वतः ही हल हो जायेंगी।
किसी को उसकी गलती के लिए क्षमा कर देना भी एक साहसिक एवं दैवीय गुण है। हमारी अहमता ही जीवन में प्रतिद्वंदिता और प्रतिशोध का कारण बन जाती है।
परिवार में, मैत्री में या समाज में संबंधों को मधुर बनाने हेतु किसी भी व्यक्ति के अंदर इन दोनों गुणों में से एक गुण की प्रमुखता अवश्य होनी चाहिए।
महाभारत की नींव ही इस सूत्र के आधार पर पड़ी कि किसी के द्वारा क्षमा नहीं किया गया तो किसी के द्वारा क्षमा नहीं मांगी गई। हमारा जीवन एक नए महाभारत से बचकर आनंदमय व्यतीत हो इसके लिए “क्षमा-कर दो अथवा क्षमा माँग लो” प्रण करें..इस सूत्र को जीवन में स्थान अवश्य देंगे।
जय श्रीराम