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किस्मत की दस्तक

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किस्मत की दस्तक

कुन्दनलाल सारा दिन धूप में इधर-उधर घूम-फिर कर टूटा-फूटा सामान और कबाड़ जमा करता और फिर शाम को उसे बड़े कबाड़ी की दुकान पर बेचकर पेट भरने लायक कमा लेता था।

एक दिन वह एक घर से पुराना सामान खरीद रहा था। घर के मालिक ने उसे एक पुराना पानदान भी दिया, जो उसने मोल -भाव करके एक रुपये में खरीद लिया। कुछ आगे बढ़ने पर एक और घर ने उसे कुछ कबाड़ बेचा, लेकिन घर के मालिक को वह पानदान पसन्द आ गया और उसने पांच रुपये में उसे खरीद लिया। लेकिन जब काफी कोशिश के बाद भी वह पानदान उससे नहीं खुला तो अगले दिन उसने उसे कुन्दनलाल को वापस करके अपने पांच रुपये ले लिए। शाम को बड़े कबाड़ी ने भी वह पानदान न खुलने के कारण उससे नहीं खरीदा। अगले दिन रविवार था। रविवार को बाजार के चौंक पर कुन्दनलाल पुराना सामान बेचता था। वहाँ उससे कोई ग्राहक पांच रुपये देकर वह पानदान ले गया। लेकिन अगले रविवार को वह ग्राहक वह पानदान उसे वापिस कर गया क्योंकि वह उससे भी नहीं खुला। बार-बार पानदान उसी के पास पहुँच जाने के कारण कुन्दनलाल को बहुत गुस्सा आया और उसने उसे जोर से जमीन पर पटककर मारा। अबकी पानदान खुल गया। पानदान के खुलते ही कुन्दनलाल की आँखें खुली-की-खुली रह गईं। उसमें से कई छोटे-छोटे बहुमूल्य हीरे छिटक कर जमीन पर बिखर गए थे।

अगले दिन प्रातः वह उसी घर में गया जहाँ से उसने पानदान खरीदा था। पता चला कि वे लोग मकान बेचकर किसी दूसरे शहर में चले गये हैं। कुन्दनलाल ने उनका पता लगाने की कोशिश भी की लेकिन नाकामयाब रहा। बाद में कुन्दनलाल उन हीरों को बेचकर संपन्न व्यापारी बन गया और सेठ कुन्दनलाल कहलाने लगा।

              शिक्षा:- समय से पहले भाग्य से ज्यादा किसी को नहीं मिलता। यही कुन्दनलाल के साथ हुआ। वह तो किसी तरह उस पानदान से छुटकारा पाना चाह रहा था, जो बार-बार लौटकर उसी के पास आ जाता था। किस्मत बार-बार उसके दरवाजे पर दस्तक दे रही थी, तभी तो वह पानदान उसे कबाड़ी से सेठ बना गया।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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