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पिता का कर्ज

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पिता का कर्ज

एक इलाके में एक भले आदमी का देहांत हो गया। लोग अर्थी  ले जाने को तैयार हुये और जब उठाकर श्मशान घाट ले जाने लगे तो एक आदमी आगे आया और अर्थी का एक पाया पकड़  लिया और बोला कि मरने वाले से मैंने 15 लाख लेने है, पहले मुझे पैसे दो फिर जाने दूंगा।

अब सभी लोग खड़े तमाशा देख रहे हैं, बेटों ने कहा के मरने वाले ने तो हमें कोई ऐसी बात नही की कि वह कर्जदार है, इसलिए हम नही दे सकते। मृतक के भाइयों ने कहा के जब बेटे जिम्मेदारी नही लेते तो हम क्यों दें।

अब सारे खड़े हैं और उसने अर्थी पकड़ी हुई है, जब काफ़ी समय हो गया तो बात घर की औरतों तक भी पहुंच गई। मरने वाले कि एकलौती बेटी ने जब बात सुनी तो फौरन अपना सारा ज़ेवर उतारा और उस आदमी के लिए भिजवा दिया और कहा कि भगवान  का वास्ता है ये जेवर बेच के उसकी रकम रखो और मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा को ना रोको। मैं मरने से पहले उनका सारा कर्ज़ अदा कर दूंगी और बाकी रकम का बंदोबस्त भी जल्दी कर दूंगी। अब वह अर्थी पकड़ने वाला आदमी खड़ा हुआ और सारे लोगों से बोला: असल बात तो ये है कि मरने वाले से मैंने 15 लाख लेना नही बल्कि उनका देना है और मैं उनके किसी वारिस को जानता नही था तो मैने ये तरीका अपनाया, अब मुझे पता चल चुका है कि उसकी वारिस एक बेटी ही है और उसका कोई बेटा या भाई नही है।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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