मुक्ति
एक दिन एक राजा ने राजपंडित को बुलाया और उसे बहुत सख्ती से आदेश दिया की,राजा परीक्षित ने सुखदेव से भगवत गीता सुनकर मोक्ष प्राप्त किया था।उन्हें केवल सात दिन लगे। मैं आपको सभी बंधनों से मुझे मुक्त कराने के लिए एक महीने का समय दे रहा हूँ ताकि मैं मोक्ष प्राप्त कर सकूँ। यदि आप ऐसा नहीं कर पाए तो मैं आपकी सारी संपत्ति जब्त कर लूँगा, और आप को मृत्यु दण्ड दूँगा।
इस आदेश ने राजपंडित को अत्यधिक चिंतित कर दिया और वह इस चिंता में अब न तो खा सकता था और न ही सो सकता था। उसका तनाव दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा था। एक दिन संयोग से जब वह अपने परिवार के साथ भोजन कर रहा था तो उसका बेटा, जो आमतौर पर अपना भोजन अलग से करता था और जो अपने पिता से यदा-कदा ही मिलता था, उस दिन बेटे ने गौर किया कि उसके पिता बहुत उदास दिख रहे थे। उसने अपने पिता से उदासी का कारण पूछा।राजपंडित उत्तर देने के लिए अनिच्छुक थे क्योंकि उन्हें अपने बेटे से कुछ उम्मीद नहीं। हालांकि उसकी माँ ने उसे परेशानी का पूरा कारण बता दिया। पुत्र बिल्कुल भी विचलित नहीं हुआ और उसने शांति से अपने पिता से कहा, “पिताजी, आप चिंता न करें और राजा से कहें के मुझे अपना गुरु स्वीकार करे और मेरे निर्देशों का अक्षरशः पालन करने के लिये कहें।”
पिता ने सोचा कि बेटा शायद उन्हें बचाने के लिए कोई तरकीब सोच रहा होगा, इसलिए वह उसे राजा के पास लेे गया और राजा को अपने बेटे के प्रस्ताव के बारे में बताया। राजा मान गया और अगले दिन राजपंडित अपने पुत्र के साथ दरबार में आया।
सभी बंधनों से मुक्त होने के लिए, राजा ने राजपंडित के पुत्र को अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया और निर्देशों की प्रतीक्षा में उसके चरणों में बैठ गया। दरबार में भीड़ थी और सभी की निगाहें राजा और उनके गुरु पर टिकी थीं। सभी को आश्चर्य हुआ जब राजपंडित के पुत्र ने राजा से एक बहुत मजबूत रस्सी लाने को कहा।
राजपंडित यह सोचकर बहुत परेशान हो गया कि उसका बेटा भला यह क्या मूर्खता कर रहा है। वह डर गया, और सोचा कि क्या उसका बेटा किसी को रस्सी से बांधेगा, या कहीं वो स्वयं राजा को ही तो नहीं बांध देगा?…
तभी पुत्र ने आज्ञा दी, “राजा को उस खम्भे से बान्ध दिया जाए।” राजा वचन से बंधा था इसलिए वह खंभे से बंधने के लिए सहमत हो गया। इसके बाद पुत्र ने अपने पिता को दूसरे खम्भे से बाँधने का आदेश दिया। तो अब स्वयं राजपंडित भी बंधा हुआ था।
अब तो राजपंडित बहुत उत्तेजित हो गया। वह अपने बेटे को मन ही मन कोस रहा था और उसे दंडित करने की सोच रहा था। तभी उसके बेटे ने उसे निर्देश दिया, “अब, पिताजी आप राजा को खोल दीजिए।”
राजपंडित क्रोधित हो गया और क्रोध में चिल्लाया, “अरे मूर्ख! क्या तुम देख नहीं सकते कि मैं स्वयं बंधा हुआ हूं? क्या एक आदमी जो खुद बंधा हुआ है, दूसरे आदमी के बंधन को खोल सकता है? क्या तुम नहीं समझते कि यह एक असंभव कार्य है?
राजा ने अपने युवा गुरु को संबोधित करते हुए एक शांत और सम्मानजनक स्वर में कहा, “मैं समझ गया मेरे गुरु। जो स्वयं सांसारिक मामलों में बंधा हुआ है, ‘माया’ से बंधा हुआ है, वह संभवतः दूसरे व्यक्ति को मुक्त नहीं कर सकता है। जो संसार का त्याग कर माया के संसार से परे चले गए हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है, वे ही दूसरे मनुष्य को मुक्त कर सकते हैं। वे ही दूसरों के बंधनों को तोड़ सकते हैं।”
शिक्षा:- आप सभी अगर अपनी समस्याओं से मुक्ति चाहते है तो ऐसे गुरु की तलाश करे जो स्वयं को समस्याओं से स्वंय को मुक्त कर चुका हो।
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जय श्रीराम
Only Supreme God is liberator and no one else can liberate man from his sufferings