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भंडारा, धर्म और हम

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भण्डारा, धर्म और हम

ज्यादातर लोगों की आदत होती है जहां कहीं भंडारा देखा, तुरंत ही प्रसाद समझकर लेकर खाने लगते है। बल्कि इतना ही नहीं कुछ लोग तो पॉलीथिन में रखकर भंडारे का प्रसाद घर भी ले जाते हैं, लेकिन शास्रों और विद्वानों की मानें तो भंडारे का प्रसाद ग्रहण करना हर किसी के लिए उचित नहीं होता है…

धार्मिक मान्यता के अनुसार भण्डारा का आयोजन उन गरीब लोगों के लिए किया जाता है, जिन्हें एक वक्त का भोजन भी ठीक से नसीब नहीं हो पाता है। ऐसे में जो लोग आर्थिक रूप से पूरी तरह सक्षम है, वो अगर भण्डारा का खाना खाते हैं तो उन पर पाप चढ़ता है, क्योंकि ऐसा करके वो किसी न किसी गरीब का हक मार रहे होते हैं। जिस खाने को आप खा रहे हैं वह किसी गरीब की एक वक्त की भूख मिटा सकता है। लेकिन आपके लालच की वजह से खाना उसको नहीं मिल पाता है। मान्यता है कि ऐसा करने वालों पर पाप चढ़ता है…

सबसे बड़ी बात तो ये है कि उस भंडारे में आपके जाने या खाने का क्या औचित्य है…??? जिस भण्डारे में आपने कोई भी आर्थिक या भौतिक योगदान नहीं दिया हो, यहाँ तक कि आयोजन कर्ता आपके घर कुनबे (कुटुंब), रिश्तेदारी या मित्रता के सर्किल से नहीं आता हो..

कमाल की बात तो ये है कि जब कुछ लोग भंडारों पर बुला बुला कर क्विंटलों साग पूड़ी बांट रहे होते हैं तो शहर के बहुत सारे अनाथालय, कुष्ठ आश्रम और गुरुकुल में रहने वाले, पतली पानी सी दाल या सब्जी चावल खाकर ही संतोष से रह रहे होते हैं…

साथ ही इन भंडारों में जो लोग खाते है उनमें से 50% से ज्यादा लोगो के घर मे उनका खाना बना ही होता है जो बाद में कूड़ेदान या जानवरों को डालना पड़ता है…

भण्डारे जरूरतमंद लोगों के लिए होने चाहिए, भण्डारे का प्रसाद आप जरूरतमंद है तभी ग्रहण करें, बिना योगदान के भण्डारा खाना एक तरह का कर्ज ही है।

मजबूरी में भंडारा खाना पड़े तो क्या करें?

क्यों न खाएं भंडारे का खाना?

अगर आपको मजबूरी में भंडारे का खाना ग्रहण करना पड़ रहा है तो आपको वहां पर दान पुण्य किए बगैर नहीं आना चाहिए। अगर आपके पास पैसा उपलब्ध न हो तो आप वहां सेवा करें। गरीबों को खाना खिलाने में मदद करें और उनके बर्तनों को उठाकर सही जगह पर रखें। अपनी क्षमता के हिसाब से दान पुण्य कर आप भी लंगर में सहयोग करें, जिससे पुण्य फल मिलता है।

मान्यता है कि अगर आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति लंगर का खाना खाता है तो उसके जीवन में परेशानियां आने लगती हैं। कामकाज में असफलता हाथ लगती है। दूसरों के हक का खाना खाने से लगने वाला दोष आपकी आर्थिक स्थिति पर प्रभाव डालता है। घर में न सिर्फ अन्न की कमी हो जाती है बल्कि माता लक्ष्मी भी रूठ जाती हैं। इसीलिए सक्षम लोगों को भंडारे का खाना खाने से बचना चाहिए। जब भगवान कृष्ण के हिस्से के चने मित्र सुदामा ने खा लिए थे तो उनको गरीबी का जीवन जीना पड़ा था, क्योंकि उन्होंने किसी और का हक मारा था। हाालांकि उनके ये गलती बालकपन में हुई थी, लेकिन तब भी उनको इसका बुरा फल भुगतना पड़ा था। इसी तरह से किसी अन्य मनुष्य के हिस्से का खाना खाना अपराध है, इससे पाप चढ़ता है। इसीलिए भूलकर भी ऐसी गलती न करें।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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