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परमानेंट एड्रेस

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परमानेंट एड्रेस

आज मुझे एक हक़ीक़त की कहानी ने पूरी तरह हिला कर रख दिया जो हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हमसे टेम्प्रेरी लाइफ़ में परमानेन्ट एड्रेस पूछा जाता है।
लाखों घर आज सूने और उजड़े पड़े हैं, जिनमें कभी बहुत सारे लोग रहते थे। जहाँ नीम, पीपल, गुलमोहर, गुलाब, चमेली और मोगरे के फूलों से पूरा घर महकता था ।
जहाँ सुबह सवेरे पेड़ों पर चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देती थी, फूलों पर तितलियाँ और भँवरे मंडराते थे । बच्चों की किलकारियाँ गूंजती थीं और लड़कियों की खिलखिलाहट से पूरा माहौल ख़ुशनुमा लगता था
क्या हो गया ; इन घरों की रौनक कहाँ ग़ायब हो गई ? कहाँ चले गए लोग, जिनका ये परमानेन्ट ऐड्रेस हुआ करता था !!!
आज जब किसी फ़ॉर्म में हमसे हमारा परमानेन्ट ऐड्रेस पूछा जाता है तो दिल में एक टीस सी उठती है कि क्या लिखें !!
कभी हुआ करता था हमारा भी परमानेन्ट ऐड्रेस !!
ज़िन्दगी टेम्प्रेरी है, जिसमें परमानेन्ट जैसा कुछ भी तो नहीं !! काम और नौकरी ने हमें दर-ब-दर कर दिया । भाइयों को जुदा कर दिया , घरों के बंटवारे के चक्कर में परमानेन्ट घर बिक गए और सब कुछ टेम्प्रेरी रह गया !!!
जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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