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शाप वरदान कथा : असुर राहू -केतु

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शाप वरदान कथा : असुर राहू -केतु

युगों पहले की बात है, जब देवताओं को अमृत नहीं मिला था तो उनके पास भी उतनी ही शक्तियां थीं जीतनी की असुरों के पास। सभी असुरों, दानवो, राक्षसों और देवताओं के माता- पिता एक ही थे- देवी दिति और ऋषि कश्यप। दक्ष की 13 पुत्रियों का विवाह ऋषि कश्यप के साथ हुआ था उन्ही में दो बहने दिति और अदिति भी थी। अदिति ने जहाँ देवताओं को जन्म दिया वहीँ दिति ने असुरों को जन्म दिया।

असुरों के वंश में सबसे बड़े असुर हिरण्याक्ष और हिरन्यक्श्यपू हुए। सिंघिका और होलिका उनकी की दो बहने थी। सिंघिका का विवाह असुर नायक विप्रसिद्ध से हुआ तो फिर उनसे एक पुत्र जन्मा जिसका नाम रखा गया स्वर भानु – स्वरभानु का शरीर जन्म से ही सिर असुर का और धड नाग का था जो दिखने में बहुत ही काला और डरवाना दिखता था। यही स्वरभानु आगे चलकर राहू कहलाया।

मगर राहू के जन्म लेते ही असुरों के गुरु शुक्रचार्य ने उसकी कुंडली देखकर ये घोषणा कर दी विप्रसिद्ध और सिंघाका के पुत्र को देव-पद की प्राप्ति होने वाली है। अभी तक असुरों में ऐसा कोई भी नहीं था जिसे देव पद की प्राप्ति हुई थी। जब ये बात देवताओं को पता चली तो देवताओं ने स्वरभानु को रास्ते से हटाने की योजना बनायी।

लेकिन राहू की माँ सिंघिका एक बहुत ही खतरनाक राक्षसी थी जो किसी की भी परछाई पकड़कर उसका शिकार कर लेती थी। सिंघिका दुश्मनों से अपने पुत्र की रक्षा करती रही. असुर और दानव वंशों में एक से बढ़कर राक्षस और दैत्य पैदा होते जा रहे थे जिससे असुर और दानव मज़बूत होने लगे।

जब देवताओं ने भगवान नारायण के सामने अपनी समस्या बतायी तो भगवान नारायण ने देवताओं को समृद्ध और शक्तिशाली होने का एक उपाय बताया और वो था- समुद्र मंथन मगर देवता अकेले मिलकर समुद्र मंथन नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने मजबूर होकर असुरों को भी अपने साथ मिला लिया।

समुद्र मंथन से जो भी चीज़ मिलती गयी उसे असुर और देवता आपस में बाँटते गए. मगर देवताओं ने ये कभी नहीं सोचा था कि समुद्र मंथन से अमृत भी निकलेगा वो अमृत जो उन्हें अमर बना देगा। अमृत हाथ लगते ही देवताओं का मन बदल गया। वो असुरों को अमृत नहीं देना चाहते थे मगर राहू को देवताओं के छल को समझते देर नहीं लगी और वो अमृत कलश लेकर भाग गया।

देवताओं ने जब फिर से नारायण से मदद मांगी तो विष्णु ने मोहिनी का रूप लिया और मोहनी अमृत का बंटवारा करने आ गयी। अमृत के बंटवारे के लिए असुर और देवताओं को अलग अलग पंक्ति में बिठाया गया। जब अमृत देवताओं में बंटना शुरू हुआ तो राहू ने फिर से चालाकी दिखाई और जाकर चुपचाप सूर्य और चन्द्र के बीच बैठ गया।

राहू ने आधा अमृत पीया ही था कि सूर्य और चन्द्र ने राहू को पहचान लिया जिसके परिणाम स्वरुप मोहिनी ने तुरंत विष्णु बनकर अपने सुदर्शन चक्र से राहू का गला काट दिया. राहू का धड केतु कहलाया. लेकिन राहू के साथ हुए इस अन्याय को न्याय में बदलने के लिए राहू- केतु को नौ ग्रहों में देव पद का स्थान दिया गया।

मगर देव पद का स्थान पाते ही राहू ने समय समय पर सूर्य को निगलकर अपना बदला लेना शुरू कर दिया। राहू का सूर्य को निगलना ही सूर्य ग्रहण कहलाता है। सूर्य ग्रहण लगते समय संसार की सारी चीजें दूषित हो जाती है। इस समय कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता। राहू एक ऐसा छाया ग्रह है जो बुरा भी करता है और भला भी।

राहू अगर ऊँच ग्रह पर हो तो वो किसी को भी धनवान बना देता है और अगर यही राहू नीच ग्रह पर स्थित हो जाए तो वो व्यक्ति को ना सिर्फ गरीब बल्कि चांडाल भी बना देता है।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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