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भगवान श्री हरि विष्णु के चरणों का महत्व

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भगवान श्री हरि विष्णु के चरणों का महत्व

किसी ने बहुत सही कहा है कि भगवान के पांव में स्वर्ग समाया हुआ है। उनके चरणों जैसा पवित्र स्थान और कहीं नहीं है। यही कारण है कि लोग भगवान के चरणों का स्पर्श करके अपने जीवन को सफल बनाने की इच्छा रखते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान के चरणों का इतना महत्व क्यों है?……भगवान के चरणों की महिमा अत्यधिक अद्भुत और व्यापक है। भगवान विष्णु के चरणों की धूलि अगर इस मानव शरीर में लग जाए, तो उसे किसी भी प्रकार की सुगंधित वस्तु जैसे अगरू, चंदन आदि की आवश्यकता नहीं होती। भगवान के भक्तों की कीर्तिरूपी सुगंध स्वतः ही फैलने लगती है।

भगवान विष्णु, जो शेषनाग की शय्या पर शयन करते हैं और जिनके हाथ में शंख, चक्र, गदा और पद्म होते हैं, उनके चरण कमल भूदेवी (पृथ्वी) और श्रीदेवी (लक्ष्मी) के हृदय-मंदिर में सदैव स्थित रहते हैं। भगवान के चरणों से ही गंगा नदी का पानी निकलता है, जो दिन-रात लोगों के पापों को धोता है।

भगवान के चरणों की महिमा इतनी गहरी है कि जब किसी व्यक्ति के शरीर में भगवान के चरणों की धूलि लगती है, तो उसे किसी भी प्रकार की अन्य सुगंध की आवश्यकता नहीं रहती। भगवान के भक्त कीर्तन करते हुए भगवान के चरणों की दिव्य गंध का सेवन करते हैं, और भगवान अपने चरणों को उनके हृदयकमल में स्थापित कर लेते हैं।

भगवान के चरणों के स्पर्श से मनुष्य का मन चंचलता से मुक्त हो जाता है, उसके पापों का नाश होता है, और उसका जीवन शांतिपूर्ण हो जाता है। भगवान के चरणों में शंख का चिह्न है, जो विजय का प्रतीक है। जिनके हृदय में भगवान के चरण बसे होते हैं, वह हर क्षेत्र में विजयी होते हैं। उनके विरोधी-भाव शंख की ध्वनि से नष्ट हो जाते हैं।

भगवान के चरणों में ऊर्ध्वरेखा का चिह्न है, जो बताता है कि जिस व्यक्ति के चरणों में यह चिह्न हो, वह हमेशा ऊंचाई की ओर बढ़ता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति भगवान के चरणों का ध्यान करता है, उसकी गति हमेशा ऊर्ध्व हो जाती है।

गवान के चरणों में राजा बलि का चिह्न भी है। जब भगवान वामन रूप में राजा बलि के पास गए थे, तो उन्होंने उसे अपनी त्रिविक्रम रूप में तीन कदमों से नाप लिया। बलि ने जब भगवान के चरणों के सामने मस्तक झुका दिया, तो प्रभु ने उसका सम्मान किया और उसे अपना द्वारपाल बना लिया। यही भगवान की कृपा है।

भगवान के चरणों में दर्पण का चिह्न है। दर्पण का कार्य किसी छवि को न केवल दर्शाना, बल्कि उसे और भी सुंदर बनाना होता है। ठीक वैसे ही भगवान के चरणों में जो भी भाव लेकर आता है, भगवान उसी भाव में उसे और भी बढ़ाकर देते हैं। भगवान ने गीता में कहा है, “ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।” अर्थात, जो जिस भाव से भगवान की पूजा करता है, भगवान उसी भाव में उसका ध्यान रखते हैं।

भगवान के चरणों में सुमेरु पर्वत का चिह्न भी है। सुमेरु को भगवान ने हमेशा अपने चरणों में स्थान दिया है, क्योंकि यह पर्वत सारा संसार का केंद्र है। जिसे भगवान के चरणों का आशीर्वाद मिलता है, उसे संसार का सबसे बड़ा धन प्राप्त होता है।

भगवान के चरणों में घंटिका का चिह्न भी है, जो उनके प्रिय आयुधों में से एक है। यह घंटी क्लींके बीज मंत्र का उच्चारण करती है, जो श्री कृष्ण के प्रेम मंत्र के रूप में प्रसिद्ध है। यही कारण है कि पूजा में घंटी का प्रयोग अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

भगवान के चरणों में वीणा का चिह्न है, जो नारद जी को भगवान ने दी थी। यह वाद्य संगीत के प्रतीक के रूप में भगवान के चरणों में विराजित है। भगवान के चरणों में जो रहते हैं, उनके जीवन में हर जगह संगीत और आनंद की लहरें फैलती हैं।

भगवान के चरणों की भक्ति में ही जीवन की सार्थकता है। मुनि और ऋषि भी भगवान के चरणों में समर्पण करके अपना जीवन सफल मानते हैं। “बिनती करि मुनि नाइ सिरु कह कर जोरि बहोरि। चरण सरोरुह नाथ जनि कबहुँ तजै मति मोरि।” अर्थात्, मुनि भगवान के चरणों की वंदना करते हुए सिर झुकाते हैं और यही उनकी सर्वोत्तम भक्ति होती है।

जो व्यक्ति भगवान के चरणों में समर्पण करता है, उसके जीवन में शांति, सुख और समृद्धि का वास होता है। भगवान के चरणों की महिमा अनंत है, और उनका स्मरण करके हम अपने जीवन को परम आनंद और संतुष्टि की ओर अग्रसर कर सकते हैं।

जय श्री हरि हरे कृष्ण

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जय श्रीराम

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Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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