भाग्य और कर्म
एक बहुत निर्धन ब्राह्मण था, उसका एक बेटा था वो भाग्य में ही उलझा रहता था और मानता था कि भाग्य ही सब कुछ हैं, ऐसा सोच कर वह कुछ मेहनत भी नहीं करता था और उसकी यह सोच थी कि जो भाग्य में होगा वह मिल जायेगा…
एक दिन अपने बेटे को मंदिर ले गया, वहां उसने मंदिर के पुजारी से पूछा कि भाग्य और कर्म का क्या रिश्ता है, वह मेरे पुत्र को आप समझाओ…
तो पुजारी ने उसके पिता जी से कहा कि आपके पुत्र का भाग्य तो बहुत अच्छा है, पर एक ग्रह गड़बड़ कर रहा है, यदि वह ग्रह ठीक हो जाये तो सब ठीक हो जायेगा, तो ब्राह्मण ने कहा उसके लिए क्या करना होगा…तो पुजारी कहते है कि इस गाँव में एक कुआँ खोद दो उससे गाँव वालों को पानी मिल जाएगा और आपसे एक नैक काम हो जायेगा, तो वो दोंनो बाप बेटा कुआँ खोदने लगे और कुछ दिनों बाद उसमें पानी आ गया और एक घड़ा भी निकल आया तो उस घड़े को पुजारी जी के पास लेकर गए, पुजारी ने घड़े पर से कपड़ा हटाया तो उसमें सोने की मुहरें थी, यह देखकर ब्राह्मण और उसका बेटा प्रसन्न हुआ…
तो पुजारी कहते है कि आप को समझ में आया, ब्राह्मण और उसका बेटे को कुछ भी समझ में नहीं आया, पुजारी कहते है कि कि भाग्य का दूसरा नाम ही कर्म है, आपने कर्म किया तो आपका भाग्य बना व्यक्ति कर्म नहीं करेगा तो भाग्य कैसे बनेगा…
हम जैसे कर्म करते है वहीं हमारा भाग्य बन जाता है, भाग्य तो संसार में रहने वाले हर एक जीव के साथ जुड़ा हुआ है, इस तरह अच्छे कर्म करते जाओ और भाग्य का फल चखते जाओ…
जय श्रीराम
कर्म प्रधान विश्व रच राखा