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सासू माँ या माँ

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सासू माँ या माँ

मां के गुजर जाने के बाद अदिति की छोटी बहन उसके साथ रहने आ गई थी। यह निर्णय अदिति की सास ने लिया था, ताकि अदिति अपनी बहन की चिंता से मुक्त होकर अपने परिवार की जिम्मेदारियां निभा सके। धीरे-धीरे छोटी बहन भी सास के लिए बेटी जैसी हो गई थी। सास ने खुद आगे बढ़कर अदिति की प्रिंसिपल से बात की और उसकी बहन को उसी स्कूल में केजी की नौकरी दिलवाई थी। जहां रिश्तेदार थोड़े समय के लिए उसे रखने को तैयार थे, वहीं अदिति की सास ने उसे स्थायी रूप से अपना लिया।

एक दिन सास ने अदिति को प्यार से समझाते हुए कहा, “जवान लड़की है, बहू। कोई हमेशा अपने पास क्यों रखेगा? तुम उसकी बड़ी बहन हो, मां जैसी जिम्मेदारी तुम्हें ही निभानी होगी।” उनकी ममता और समझदारी ने अदिति का सिर श्रद्धा से झुका दिया। आमतौर पर ससुराल में बेटे की साली का रहना असहज माना जाता है, लेकिन अदिति की सास ने उसे सच्चे दिल से अपनाया। छोटी बहन, जो पहले से ही बहुत संवेदनशील और शांत स्वभाव की थी, माँ को खोने के बाद टूट सी गई थी। लेकिन सास के स्नेह और नौकरी के अनुभव ने उसमें आत्मविश्वास भर दिया।

एक दिन जब अदिति स्कूल से लौटी, सास ने उसके सामने छोटी के रिश्ते की बात रखी। अदिति अभी आर्थिक रूप से तैयार नहीं थी, लेकिन सास ने समझाया, “जवान बेटी को कब तक घर में रखोगी? शादी की उम्र हो गई है, जिम्मेदारी अब तुम्हारी है।” सास के दृढ़ शब्दों ने अदिति को निर्णय लेने की ताकत दी और उसने छोटी की शादी के लिए हामी भर दी।

शादी की तैयारियों के बीच जब खर्चों का सवाल उठा, तो अधिकतर रिश्तेदार दूरी बनाने लगे। अदिति ने सास की सलाह मानकर मायके की पैतृक जमीन बेचने का निर्णय लिया। भाइयों और मंझली बहन ने मिलकर शादी की तैयारियों को अंजाम दिया। गहनों से लेकर दहेज तक का इंतजाम उसी पैसे से हुआ। एक रिश्तेदार ने पलंग और ड्रेसिंग टेबल देने की पेशकश की थी, लेकिन छोटा भाई उसे बदलकर बेहतर सामान ले आया।

शादी लड़के वालों के शहर के एक होटल में तय हुई थी। कुछ रिश्तेदार इस इंतजाम का मजाक बनाने की तैयारी में आए थे, लेकिन शादी की भव्यता और व्यवस्थित कार्यक्रम देखकर सब चुप रह गए। समारोह के दौरान कुछ रिश्तेदारों ने औपचारिक सहानुभूति जताते हुए सास से कहा, “इतने खर्च की क्या जरूरत थी? घर से भी शादी हो सकती थी।”

सास ने मुस्कुराते हुए बड़ी शालीनता से जवाब दिया, “यह सुझाव मेरा था। अगर घर से शादी होती, तो सारा बोझ अदिति पर पड़ता। अब जब दादा की पैतृक संपत्ति से शादी हो रही है, तो चिंता की क्या बात? आप बस बेटी को आशीर्वाद दीजिए। वैसे भी मैं तो केवल लड़की की दीदी की सास हूं, सगा रिश्ता तो है नहीं।”

उनकी सादगी और गहरी बातों ने सभी को निरुत्तर कर दिया। शादी भव्यता और गरिमा के साथ सम्पन्न हुई, और अगले दिन सारे रिश्तेदार चुपचाप विदा हो गए।

इस पूरी घटना ने साबित कर दिया कि सास का रिश्ता केवल औपचारिक नहीं होता, वह मां की भूमिका भी निभा सकती है। अदिति की सास ने ममता, जिम्मेदारी और समझदारी की जो मिसाल कायम की, वह हर परिवार के लिए प्रेरणा बन गई।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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