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नौकर

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नौकर

रिक्शेवाले रामेश्वर ने अपनी सारी जिन्दगी इसी आस पर काट दी कि वो अगर नहीं पढ़ सका तो बच्चों को पढाए….. पत्नी की आकस्मिक मौत के बाद अपने दोनों बच्चों के लिए दूसरी शादी नही की जबकि गांव मे अनेकों रिश्तेदारों ने कहा भी और लड़कियों के रिश्ते भी लेकर आए मगर रामेश्वर ने साफ इंकार कर दिया।

दोनो बेटे पढाई मे होशियार थे रामेश्वर दिन भर रिक्शा चलता, शाम को सब्जी बेचता थक हार घर आता सबके लिए रोटी बनाता, रविवार को कपड़े धोता घर साफ करता, उसका एक ही सपना था दोनों बस बच्चे पढ जाए बुढापा आराम से बैठ कर खाऊंगा।

छोटा बेटा मोहन डिस्ट्रिक्ट में पहले नंबर पर आया, उसको वजीफा मिल गया उसका डाक्टर बनना आसान हो गया, जबकि बडा बेटा बैंक आफिसर बन गया। सबने पैसा कमाने मे बहुत मेहनत की थी ट्यूशन तक पढ़ाई बच्चों ने।

अब रामेश्वर का मन करता आराम करे। बूढ़ा और कमजोर हो गया था अब रिक्शा चलाते समय सांस फूलता था। आखिर उसने रिक्शा चलाना छोड़ दिया। दिन हंसी खुशी से बीतने लगे, छोटा बेटा मोहन रोग विशेषज्ञ बनने लंदन चला गया, वही बडा बेटा रोहन और रामेश्वर इकट्ठे रहते थे।

रोहन के रिश्ते की बात चली लडकी टीचर थी, दोनों सात पढे थे , बात आगे बढी और उसकी शादी हो गई। सब ठीक चलता रहा।

पापा,जरा सौदा लाना है…..पापा,  जरा दूध ले आना….

रामेश्वर खुशी खुशी भाग भाग कर काम करता। एक दिन की बात है रामेश्वर बहू की सहेलियों के लिए समोसे लेने गया था, रास्ते में सांस फूल गया फिर भी वो तेजी से समोसे लिए घर के दरवाजे तक पास पहुंचा कि तभी उसे बहू की आवाज़ सुनाई दी, भई, आजकल नौकर कहां मिलते है, यह तो अच्छा है ससुर जी सारा काम कर देते है वरना इतने पैसे मे तो मेरी जेब खाली हो जाएं।

क्यूं दोनो कमाते हो फिर भी रोती रहती है सहेली ने कहा।

हां कोठी बनवाना आसान काम नही है इतने पैसे कहां से आएगें।

तभी तो मै उनको काम के लिए बोलती हूँ मुझ पर जोर भी नही पडेगा, वैसे भी खाना मुफ्त का थोडे आता है जो मै बांटती फिरु।

अरी शर्म कर तेरे ससुर हैं…

तभी तो चुप हूं, नौकर होता तो चार गालियां भी सुना देती ढीलापन देखकर।

बस इतना सुनते ही रामेश्वर को चक्कर आ गए वो वहां से सीधा निकल गया,रास्ते मे एक जानकर को देखकर बोला यदि मेरा छोटा बेटा मोहन आए तो बता देना मै हरिद्वार जा रहा हूं महादेव के पास, बडे बेटे रोहन और उसकी पत्नी को मत बताना।

वो हरिद्वार तो चला गया मगर अब भी सदमे मे था, मै उसका पापा एक नौकर की जगह।

रोने के लिए आंसू चाहिए पर जो इंसान सदमे में हो रोए कैसे ?…..

कई महीने बीत गए वो हर शाम गोधूलि के समय आरती मे शामिल होता, चुपचाप देखता और एक मंदिर के बाहर सो जाता, आते-जाते दानी पुण्नी द्वारा भंडारे मे खाकर पेट भर लेता।

एक रात उसे ठंड लगी और तेज बुखार हो गया। पुजारी जी ने देखा और अस्पताल ले गए, वहां उसके टेस्ट हुए पता लगा उसे टी बी है। हास्पिटल मे दाखिल करवाया,बडे डाक्टर आगे बताएगे उनके बारे मे।

जब बडे डाक्टर साहब आए तो रामेश्वर गुमसुम बैठा था ना खुशी ना दुख।वो जब पास आए तो रामेश्वर को देख पैरो को हाथ लगाए। अरे यह क्या कर रहे हो डाक्टर बाबू, मुझे टी बी है।

पापा मै आ गया हूँ ना अब कुछ ही महीनों में बिल्कुल ठीक कर दूंगा, रामेश्वर ने ऊपर देखा और मोहन … मोहन बेटा, और फूट फूट कर रोने लगा।

मोहन ने रामेश्वर को सहारा दिया और अपने साथ घर ले गया। घर पर तमाम सुविधाओं और अच्छी देखभाल से रामेश्वर जल्द स्वस्थ  रहा था। कुछ महीनों बाद जब दुबारा टेस्ट हुए तो वो अब भला चंगा था।

मोहन, बेटा अब मै चलता हूं….

कहां पापा….

वापस….

मगर कयुं….

बेटा, कल तेरी शादी होगी फिर तेरी भी घरवाली मुझे नौकर बना कर रखेगी।

पापा मुझे पता है भैया भाभी का आपके साथ किया सलूक, मगर जरूरी नहीं हर बेटा और हर बहु ऐसी घिनौनी हरकत करे और पापा ऐसा सोचो भी मत मेरे लिए आप ही हो मेरा परिवार है।

 मै आपकी आराधना को बेकार नही जाने दूंगा, आप यहां मजे से रहेगे मेरे साथ और मे ऐसी लड़की से शादी करुंगा जिसे आप चुनेंगे, बिल्कुल मां जैसी, जो आपको सम्मान दे। आपकी अपने माता पिता की भांति सेवा करे,आप चाहे तो गांव की लड़की से।

सच बेटा….

हां पापा सच…

दोनो की आंखे भर आई। आखिर आज रामेश्वर की आराधना सफल जो हो गई थी।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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