lalittripathi@rediffmail.com
Quotes

कुबेर का अहंकार

63Views

कुबेर का अहंकार

     यह एक पौराणिक कथा है। कुबेर तीनों लोकों में सबसे धनी थे। एक दिन उन्होंने सोचा कि हमारे पास इतनी संपत्ति है, लेकिन कम ही लोगों को इसकी जानकारी है।  इसलिए उन्होंने अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए एक भव्य भोज का आयोजन करने की बात सोची। उस में तीनों लोकों के सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया।

 भगवान शिव उनके इष्ट देवता थे, इसलिए उनका आशीर्वाद लेने वह कैलाश पहुंचे और कहा, “प्रभो! आज मैं तीनों लोकों में सबसे धनवान हूँ,यह सब आपकी कृपा का फल है। मैं अपने निवास पर एक भोज का आयोजन करने जा रहा हूँ, कृपया आप परिवार सहित भोज में पधारने की कृपा करें।”

भगवान शिव कुबेर के मन का अहंकार ताड़ गए, बोले, “वत्स! मैं बूढ़ा हो चला हूँ, कहीं बाहर नहीं जाता।” कुबेर गिड़गिड़ाने लगे, भगवन! आपके बगैर तो मेरा सारा आयोजन बेकार चला जाएगा।” तब शिव जी ने कहा, “एक उपाय है। मैं अपने छोटे बेटे गणपति को तुम्हारे भोज में जाने को कह दूंगा।” कुबेर संतुष्ट होकर लौट आए।

नियत समय पर कुबेर ने भव्य भोज का आयोजन किया। तीनों लोकों के देवता पहुंच चुके थे। अंत में गणपति आए और आते ही कहा, “मुझको बहुत तेज भूख लगी है। भोजन कहां है।” कुबेर उन्हें भोजन से सजे कमरे में ले गए। सोने की थाली में भोजन परोसा गया। क्षण भर में ही परोसा गया सारा भोजन खत्म हो गया। दोबारा खाना परोसा गया, उसे भी खा गए। बार -बार खाना परोसा जाता और क्षण भर में गणेश जी उसे चट कर जाते।

थोड़ी ही देर में हजारों लोगों के लिए बना भोजन खत्म हो गया, लेकिन गणपति का पेट नहीं भरा। वे रसोईघर में पहुंचे और वहां रखा सारा कच्चा सामान भी खा गए, तब भी भूख नहीं मिटी। जब सब कुछ खत्म हो गया, तो गणपति ने कुबेर से कहा, “जब तुम्हारे पास मुझे खिलाने के लिए कुछ था ही नहीं तो तुमने मुझे न्योता क्यों दिया था?”

 यह सुनकर कुबेर का अहंकार चूर-चूर हो गया।

कहानी अच्छी लगे तो Like और Comment जरुर करें। यदि पोस्ट पसन्द आये तो Follow & Share अवश्य करें ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply