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कोयल और कौवा पार्ट 1 -दुश्मनी

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कोयल और कौवा पार्ट 1 -दुश्मनी

एक बार कौवों ने एक सभा बुलाई थी। सभी कौवे बहुत क्रोधित थे कि क्यों उनकी तुलना एक कोयल से की जाती है। जिस बात से उन्हें हर जगह अपमानित होना पड़ता है। उस सभा में तब उन कौवों का मुखिया बोला कि यदि किसी भी तरह से धरती से इन कोयलों का काम तमाम हो जाए, तो फिर न हमारी इनसे तुलना होगी और न ही लोग हमें बुरा मानेंगे।

यह बात सुनते ही उनमे से कुछ युवा कौवे बहुत जोश में आकर बोले कि सही कहा मुखिया जी। चलिए हम सब सारी कोयलों को ढूंढ-ढूंढ़कर मार डालते हैं। तभी एक बुजुर्ग कौवे ने सबको शांत करवाया और कहा कि यदि किसी पेड़ को सुखाना हो तो उसके पत्तों या फिर उसकी डालियों को तोड़नें में मेहनत नहीं करनी चाहिए बल्कि,उसकी जड़ों को ही नष्ट कर देना उचित होता है।

तब बुजुर्ग कौवा ने उन सभी को यह योजना दी कि वो बेकार में मेहनत न करके उनके वंश को ही बढ़ने से रोक दे।यह कहते हुए बुज़ुर्ग कौवे ने सभी कौवे को आदेश दिया और कहा,जहां कहीं भी तुम्हे कोयल के अंडे दिखें उनको नष्ट कर दो।उस समय कोयलें अपने अंडे अपने ही घोसलों में देती थीं।कौवों द्वारा अपने अंडों को नष्ट होते देख कोयलों में फिर अफरातफरी हो गयी।सभी कोयलों ने मिलकर बहुत विचार विमर्श किया कि कोई ऐसी जगह खोजी जाए जहां ये कौवे हमारे अंडों को कोई हानि न पहुचा पाएं।

तब कहीं जाकर एक विद्वान कोयल ने कहा कि यदि अपना सामान चोर से बचाना हो तो,उस सामान को चोर के ही घर में छुपा देना चाहिए।क्यूंकि वो हर जगह ढूंढ सकता है,लेकिन खुद के घर में ही सामान होने की बात वो सोचे भी नहीं पायेगा।फिर क्या था उस दिन से कोयलें भी उन कौवों के घोसलों में ही अपने अंडे देने लगे।फिर जो हमारे बच्चों को मारना चाहते हैं वो ही स्वयं उनको प्यार से पालेंगे और बड़ा करेंगे..!!
जय श्रीराम

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Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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