उज्जवल भविष्य की नींव
मेरे पति का जौनपुर में ट्रांसफर हुआ था। नया शहर, नए लोग। बेटे का जिस स्कूल में एडमिशन करवाया था, उसी स्कूल के एक विद्यार्थी राघव का घर हमारी कॉलोनी में था। संयोग से वह भी पाँचवीं क्लास में पढ़ता था। जान-पहचान बढ़ाने के उद्देश्य से एक दिन मैंने उनके घर की घंटी बजाई। दरवाजा खुला और राघव की मम्मी ने हमें देखा। उनकी नजरें थोड़ी अचकचाईं, जब उन्होंने एक अनजान महिला को बच्चे के साथ देखा। मैंने मुस्कुराते हुए परिचय दिया, “मेरा बेटा नमन और राघव एक ही स्कूल और एक ही क्लास में हैं, तो सोचा आपसे मिल लूं।”
“ओह, हाँ-हाँ…प्लीज अंदर आइए,” कहते हुए उन्होंने हमें अंदर बुलाया। उस वक्त शाम के चार बज रहे थे। राघव कहीं नहीं दिख रहा था, तो मैंने सोचा, शायद वह बाहर खेल रहा होगा। फिर भी मैंने पूछ लिया, “मिसेज़ चंद्रा, राघव कहाँ है? नमन उसके साथ खेलता, वह कहीं खेलने गया है क्या?”
“इस वक्त खेल! नहीं मिसेज़ गुप्ता, इस समय तो राघव अपनी पढ़ाई करता है। मैं राघव को बाहर खेलने कम ही भेजती हूँ। कितना समय बर्बाद होता है और फिर बाहर कितनी धूल है, बीमार पड़ गया तो…”उनके तर्क सुनकर मैं हैरान रह गई। पाँचवीं कक्षा के छोटे बच्चे पर इतना बोझ! मैंने कहा, “अच्छा, ठीक है, एक मिनट के लिए बुला दीजिए, हम उससे मिल तो लें।” बेमन से उन्होंने राघव को आवाज दी। उसके बिखरे बाल, उतरा चेहरा और तनाव देखकर मैं चकित रह गई। नमन की किसी बात का जवाब उसने सही से नहीं दिया। वह कुछ डरा-डरा हुआ भी था।
वहाँ से वापस आने पर मेरी आँखों के सामने मासूम राघव का उदास चेहरा घूमता रहा। नमन ने भी बताया कि स्कूल में भी लंच ब्रेक में राघव अकेले ही बैठा रहता है।
कुछ दिनों बाद नमन की क्लास में मैथ्स और हिंदी विषय के टेस्ट हुए। राघव का मैथ्स में नमन से एक नंबर कम आया तो मिसेज़ चंद्रा परेशान हो गईं। उन्होंने तुरंत मुझे फोन किया, “मिसेज़ गुप्ता, मेरा राघव दिनभर पढ़ता है और आपके नमन को हमने हमेशा खेलते ही देखा है, फिर उसके नंबर राघव से ज्यादा कैसे आ गए?” उनके स्वर में चिंता के साथ-साथ क्रोध का भी पुट था।
मैंने कहा, “मिसेज़ चंद्रा, शांत हो जाइए। एक अंक कम या अधिक होने से बच्चे की बुद्धिमत्ता में कोई फर्क नहीं पड़ता। रही बात खेलने की, तो इससे बच्चे के शरीर की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं। पसीने के साथ शरीर की आंतरिक गंदगी भी बाहर निकल जाती है। बच्चे आपस में मिलते हैं तो उनमें आपसी सहयोग की भावना विकसित होती है। विचारों के आदान-प्रदान से बच्चे नई-नई बातें सीखते हैं। खेलने से उनका मन प्रसन्न होता है, तब वे दोगुनी मेहनत से पढ़ाई करते हैं। हर वक्त पढ़ाई कहकर हमें उनका बचपन नहीं छीनना चाहिए। खेलने से बच्चे बर्बाद होते तो कपिल देव और सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी हमारे देश को कैसे मिलते।”
मैंने एक गहरी साँस ली और फिर उनसे कहा, “मिसेज़ चंद्रा, आपने महान वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन का नाम तो सुना ही होगा। खेल-खेल में ही उन्होंने कितने आविष्कार कर डाले थे। मैं तो कहती हूँ कि आप राघव को भी…”
“ठीक है-ठीक है…मैं समझ गई मिसेज़ गुप्ता,” उनके तीखे स्वर से मैं समझ गई कि मेरे भाषण से वह पक गई थीं। दो दिन बाद नमन ने मुझे बताया, “मम्मी, आज तो राघव भी हमारे साथ खेला था।” सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा।
अगले महीने फिर से नमन और राघव की परीक्षा हुई। रिजल्ट मिलने के बाद मिसेज़ चंद्रा मेरे घर आईं और मुझे मिठाई का डिब्बा थमाते हुए बोलीं, “थैंक यू मिसेज़ गुप्ता। आपकी वजह से राघव ने इस परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए हैं। वह खेलने के बाद बहुत खुश होकर पढ़ाई करता है, मुझसे और अपने पापा से हर बात शेयर भी करने लगा है। थैंक यू सो मच!” उनके चेहरे पर खुशी देखकर मुझे भी बहुत अच्छा लगा।
बच्चे वास्तव में नन्हीं-नन्हीं कलियाँ हैं जिन्हें खिलने और फूल बनने के लिए स्वच्छंद और प्रेमपूर्ण वातावरण की आवश्यकता होती है। यदि उन्हें बंद कमरे में रखा जाए तो वे खिलने से पहले ही कुम्हला जाते हैं। यह हमारे समाज और परिवार की जिम्मेदारी है कि हम उन्हें खुला वातावरण, प्यार और समर्थन प्रदान करें ताकि वे अपनी पूरी क्षमता से खिल सकें और जीवन में सफलता प्राप्त कर सकें। उनका सही पोषण, शिक्षा और देखभाल करना हमारा कर्तव्य है ताकि वे एक उज्जवल भविष्य की नींव रख सकें।
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जय श्रीराम
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