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मर्दानी

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मर्दानी

“ये तुम्हारी आवाज़ को क्या होता जा रहा है…एकदम मर्दानी आवाज़ हो गई है। सुबह सुबह दहाड़ना चालू हो जाता है। थोडा़ सा स्त्रियोचित व्यवहार भी कर लिया करो।” मोनिका पतिदेव का कमेंट सुनकर सन्न रह गई। धीरे से बोली, “क्या करूॅं…सर्दी में सब नौकर चाकरों के कान ठप्प हो जाते हैं। धीमे बोलने से कोई सुनता ही नहीं है, झक मार कर जोर से बोलना पड़ता है।”

“उफ़, तुम्हारे पास तो हर बात का रेडीमेड जवाब हाजिर है। ज़रा भी देर नहीं लगती। और किसी और काम का तो पता नहीं पर इस  काम में एक्सपर्ट हो।” वो खिसिया कर बाहर चली गई। थोड़ी देर बाद आवाज़ आई,”कहाॅं दुबक कर बैठी हो…मेरी काॅफ़ी अभी तक नहीं भेजी?”….

“मनोहर को कह दिया था। अभी तक नहीं ले गया।”

“सब मोटे टोपे और मफ़लर लपेटे हैं। सुनते ही नहीं है। तुम जाकर देखो।” वो जल्दी से काॅफ़ी बनवा कर लाई पर कमरे में घुसते ही मुॅंह से जोर से  डकार निकल गई। बस चिल्ला पड़े, “ये मर्दों की तरह डकारती रहती हो। तुम औरत तो रह ही नहीं गई हो।”

तभी पीछे से मनोहर गोभी आलू के पकोड़े ले आया। बस भड़क गए, “ये रोज रोज पकोड़े तलवा लेती हो। हम ह्रदयरोगी हैं…मधुमेह से पीड़ित हैं। इसका भी तुमको ख्याल नहीं है।”

सहम कर प्लेट हटाते हुए बोली, “आज बहुत कोहरा था। जाड़े में तो कभी कभी मन कर जाता है।वैसे भी ये पकोड़े आज बहुत दिनों बाद बने हैं।”….”पलटवार करना तो कोई तुमसे सीखें। मेरी हर बात पर पलट कर बोलने की आदत सी हो गई है।”

वो प्लेट लेकर बाहर निकल ही रही थी , चिल्ला पड़े, “अब बन ही गया है तो बर्बाद तो नहीं करेंगे। लाओ, खा लेते हैं पर मेरे लिए तो सीधा सादा भोजन बनवाया करो। ये पकोड़े सकोड़े तुम्हीं खाया करो।”

वो बहुत आहत होकर चिल्ला ही पड़ीं, “बाप रे, आप तो हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ जाते हैं। आज अम्मा जी के पास चल कर फैसला करवा लें।” दोनों उनके कमरे की ओर गए…वहाॅं खिलखिलाने की आवाज़ से दोनों बाहर रुक गए। अपनी घनिष्ठ सहेली मालती के साथ चाय पकोड़ों का आनंद लेती अम्मा जी कह रही थीं, “हमारी बहू तो पूरी मर्द हो गई है। घर बाहर का सारा बोझा अपने नाज़ुक कंधों पर उठाए रहती है। ईश्वर ऐसी बहू सबको दे।”

श्रीमान् जी का चेहरा आज गर्व से दमकने लगा था।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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