शक
सुधा अभी सब्जी खरीदकर घर की तरफ मुड़ी ही थी की मोहन के पीछे बाइक पर किसी और को बैठा देख कर ठिठक गई, एक सुंदर सी औरत चिपककर मोहन के पीछे बैठी थी और उसका एक हाथ मोहन के कंधे पर था। सुधा के तनबदन में आग लग गई वह नागिन की तरह फुफकारी -अच्छा,तो इस उम्र में ये गुल खिला रहे हो …
रोज पैदल चलकर सब्जी खरीदने वाली सुधा ने तुरंत आटो किया और आनन फानन में घर पहुंची मोहन अब तक घर नही पहुंचा था इंतजार करते शाम के सात बजे चुके थे इस टाइम से पहले तो रोज घर आ जाया करता था सुधा गुस्से मे बाहर गैलरी में चक्कर लगाने लगी और हांफने लगी।
क्या हुआ मम्मी,बड़ी बेटी आरध्या ने मां को इस तरह बैचेन देख कर पूछ लिया। कालेज से लौटी आराध्या के साथ उसकी कॉलेज की सहेली भी साथ थी । इस कारण सुधा ने कहा, कुछ नही, जरा जी घबराया, इस कारण टहल रही हूं।
घुमा करो मम्मी सुबह भी, कितनी मोटी हो गई हो,इतना कहकर आराध्या अपने कमरे में चली गई
“मोटी….
शब्द वैसे तो बच्चे बहुत बार सुधा के लिए इस्तेमाल कर लेते थे मगर आज ये शब्द भी सुधा को तीर जैसे चुभ रहे थे वह अंदर कमरे में जाकर आईने के सामने खड़ी हो गई खुद को आज बहुत गौर से देखने लगी और सोचने लगी “सचमुच वह बहुत मोटी हो गई है। कमर और पेट की चर्बी को दबा दबाकर देखने लगी फूलते हुए गालों में भागती हुई उम्र को तलाश करने लगी उसे अहसास हुआ कि 35 की उम्र में वो 50 की नजर आने लगी है वह सोचने लगी कितनी छरहरी थी जवानी में, मगर गृहस्थी और बच्चों को संभालते-संभालते सारा सौंदर्य खो गया।
ओह…. तो इसीलिए मोहन का मन भर गया तभी तो वो कलमुँही चिपक कर बैठी थी मोहन तो आज भी 40 की उम्र में हैंडसम है,फांस लिया उसने मेरे भोले भाले पति को,हे भगवान अब क्या करूँ। घबराहट में बीपी बढ़ने लगा तो जल्दी सी टेबलेट ली और अचानक ही कुछ कठोर निर्णय ले लिया सुधा ने और फिर उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव आ गए।
मोहन 8 बजे तक घर पहुंचा सुधा ने उसे आभास भी नही होने दिया कि वह गुस्से में है अगले दिन से तो घर के सभी मेम्बर आश्चर्य में पागल ही हो गए सुधा ने एक्सरसाइज शुरू कर दी थी। 7 बजे उठने वाली सुबह चार बजे उठ कर कपालभाति, प्राणायाम, सूर्यनमस्कार और भी वे सभी योगासन और एक्सरसाइज जो रात भर नेट पर खोज की थी सभी को बारी बारी से कर रही थी। घण्टे भर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद वह पलंग पर आकर पसर गई, हाथ पैर सहित पूरा शरीर दुखने लगा था कुछ देर मे बुखार ने ऐसा जोर पकडा की शरीर भी सूजने लगा, हालत गंभीर होते देख बडी बेटी आराध्या ने पिता मोहन को फोन किया और सुधा को लेकर परिवार वाले अस्पताल भागे। हालत खराब देखकर डाक्टरो ने तुरंत सुधा को एडमिट कर दिया घर के बडे,बच्चे सभी सुधा को डांट रहे थे की आखिर अचानक उसे इतनी एकसासाइज क्यो करनी थी अब भीगी आँखें लिए सुधा कहे भी तो क्या किसी से की उसका मोटापा… उसका वर्षों का प्यार उसकी खुशियां उसका पति मोहन उससे छीन रहा है ।
सभी घर वाले सुधा को डांट रहे थे कि क्या जरूरत थी एक साथ इतना सब करने की।
बेचारी सुधा अब कहे भी तो क्या कहे…. कैसे कहे कि मोहन बदल गया उसका प्यार …उसकी खुशी उसका संसार उसका पति अब किसी जवान स्लिम सी लडकी के साथ अफेयर …..कैसे बताए की इस घर मे उसकी सौतन आने वाली है उसी से इस घर को बचाने के लिए वो खुद को स्लिम कर रही थी ताकि उसका पति परमेश्वर मोहन उस चूडैल तो क्या किसी और की तरफ ना ताके…
इधर मोहन भी आँफिस से छुट्टी लेकर अस्पताल आ गया था लेकिन उसने सुधा को जरा भी नही डांटा सब घर के लोग धीरे धीरे वापस चले गए बस मोहन और सुधा ही बचे थे अस्पताल मे तब मोहर ने पूछा,परेशान दिख रही हो कल रात से ही,क्या बात है।
सुधा ने कोई जवाब नही दिया बस मुँह फेर लिया…
शरीर अब भी तवे की तरह तप रहा था सुधा का। मोहन ने कोई बहस नही की, वह ठंडी पट्टी बार बार उसके माथे पर रखता रहा यह सिलसिला रात भर चला इसके चलते एक पल भी नही सोया।
सुधा भी दर्द और बुखार में बेहोश सी रही पूरी रात।डॉक्टरों ने कहा कि इनका बीपी कंट्रोल नही हो रहा अगर यही हालत रही तो फेफड़ो और हार्ट को खतरा है…
फिर सुबह वह सुंदर औरत भी उससे मिलने आई उसे देख कर सुधा ने मुँह फेर लिया तब मोहन ने परिचय कराया -अरे सुधा, इधर देखो,ये सोनिया दीदी है इनका कई बार तुम्हारे सामने जिक्र भी कर चुका हूं , दो दिन पहले ही इनका ट्रांसफर मेरे ऑफिस में हुआ है ,कल दीदी ने ज्वाइंन किया। कल ही समान भी शिफ्ट किया हमारे पास वाली कालोनी मे। शाम को चाय पर बुलाया था दीदी ने हमें परिवार सहित, मगर तुमहारी तबीयत …
सुधा तो यह सुनकर शर्म के मारे जैसे धरती में समा गई , उफ्फ कितनी पागल और मूर्ख हूँ मैं, अपने देवता जैसे पति पर शक किया। उसने नजर झुकाए हुए ही सोनिया दीदी से नमस्कार किया, फिर चमत्कार हुआ अगले दस मिनिट में उसका बीपी नॉर्मल हो गया, बुखार उतर गया, दवाई जो मिल गई थी बस दर्द बचा था जो धीरे धीरे ठीक होने वाला था शाम तक सुधा को छुट्टी मिल गई वह घर आकर बार बार तुलसी के पौधे और देवी देवताओं से माफी मांगती रही, पगली कहीं की….
एक घरेलू भावनाओं से ओतप्रोत रचना…
जय श्रीराम