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मैनाक पर्वत

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मैनाक पर्वत

मैनाक पुराणानुसार भारतवर्ष के एक पर्वत का नाम है। जब श्रीराम के भक्त हनुमान माता सीता की खोज में बिना विश्राम किए आकाश मार्ग से जा रहे थे, तब समुद्र ने अपने भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से निवेदन किया था कि वह ऊपर उठकर हनुमान को अपनी चोटी पर विश्राम करने के लिए कहे

देवराज इंद्र ने पर्वतों के पर काट डाले थे, इससे डर कर मैनाक समुद्र के भीतर जाकर छिप गया था। मैनाक मेना के गर्भ से उत्पन्न हिमालय का पुत्र कहा जाता है और क्रौंच पर्वत इसका पुत्र है

श्राद्ध आदि कर्मों के लिए मैनाक पर्वत अति पवित्र समझा गया है।

सीता की खोज में जा रहे हनुमान को आकाश में बिना विश्राम लिए लगातार उड़ते देखकर समुद्र ने सोचा कि यह प्रभु श्रीराम का कार्य पूरा करने के लिए जा रहे हैं। किसी प्रकार थोड़ी देर के लिए विश्राम दिलाकर इनकी थकान दूर करनी चाहिए। अत: समुद्र ने अपने जल के भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से कहा- “मैनाक! तुम थोड़ी देर के लिए ऊपर उठकर अपनी चोटी पर हनुमान को बिठाकर उनकी थकान दूर करो।”

समुद्र का आदेश पाकर मैनाक प्रसन्न होकर हनुमान को विश्राम देने के लिए तुरन्त उनके पास आ पहुँचा। उसने उनसे अपनी सुंदर चोटी पर विश्राम के लिए निवेदन किया। उसकी बातें सुनकर हनुमान ने कहा- “मैनाक! तुम्हारा कहना ठीक है, लेकिन भगवान श्रीरामचंद्र जी का कार्य पूरा किए बिना मेरे लिए विश्राम करने का कोई प्रश्र ही नहीं उठता।” ऐसा कह कर उन्होंने मैनाक को हाथ से छूकर प्रणाम किया और आगे चल दिए।

सुंदरकांड में हनुमानजी जब लंका की ओर उड़ चले तो मार्ग में उनके समक्ष पहली बाधा मैनाक पर्वत के रूप में आई थी। बीच समुद्र में यह सोने का पर्वत प्रकट हुआ और उसने हनुमानजी से कहा – आप थक गए होंगे, मेरे ऊपर विश्राम कर लीजिए।

उस समय हनुमानजी ने उस पर्वत को उत्तर दिया – हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां बिश्राम।।

हनुमानजी ने उसे हाथ से छुआ, फिर प्रणाम करके कहा – भाई ! श्री रामचंद्र जी का काम किए बिना मुझे विश्राम कहां ?

यहां एक बड़ी सीख हनुमानजी हमें यह दे रहे हैं कि मैनाक पर्वत का अर्थ है सुख-सुविधा, भोग-विलास।

हनुमानजी ने उसे धन्यवाद दिया और कहा – मैं आपके ऊपर विश्राम नहीं कर सकता क्योंकि मुझे मेरा लक्ष्य याद है और वह है राम काज।

जब आप अपने कर्म की यात्रा पर निकलते हैं तो पहली बाधा यही आती है। उन्होंने हमें बताया है कि सुख- सुविधाओं का जीवन में उपयोग करना चाहिए,लेकिन उन्हीं पर टिक जाएं,यह ठीक नहीं।

आज के समय में सुख- सुविधाएं अथवा विलासिता की वस्तुएं मैनाक पर्वत के समान हैं।इनका सीमित उपयोग करें,लेकिन अपने लक्ष्य को न भूलें।

हनुमानजी सिखाते हैं कि अपने लक्ष्य पर सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए..!!

जय श्री राम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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