महान कार्य– छत्रपति संभाजी महाराज का बदला
यह कहानी आपको रोमांच से भर देगी और आपके रोंगटे खड़े कर देगी! जानिए इतिहास का एक ऐसा पहलू, जो आज भी दिलों में जोश भरता है। जब औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज को 40 दिनों तक भयंकर यातनाएं दीं और शहीद कर दिया, तो पूरे मराठा साम्राज्य में एक आग सी लग गई। औरंगजेब के सेनापति जुल्फिकार खान ने रायगढ़ किले पर कब्जा कर लिया और छत्रपति संभाजी की पत्नी येसु बाई और उनके छोटे बेटे को बंदी बना लिया। मगर मराठों का मनोबल टूटा नहीं; एक नये नेता के रूप में राजाराम महाराज ने मोर्चा संभाला और सभी मराठों का एक ही लक्ष्य था – औरंगजेब का विनाश!
संगमेश्वर के किले में जब छत्रपति संभाजी महाराज अपने 200 वीर सैनिकों के साथ मुगलों से लड़ रहे थे, तो उनके साथ था एक और महान योद्धा – माल्होजी घोरपड़े। वह पूरी तरह से संकल्पित थे कि औरंगजेब को मुगलों के खात्मे का अहसास कराना है। लेकिन दुर्भाग्यवश, इस जंग में माल्होजी घोरपड़े वीरगति को प्राप्त हो गए। उनका पुत्र, संताजी घोरपड़े, उनके खून का बदला लेने की शपथ लेकर निकला।
संताजी घोरपड़े ने मराठों को फिर से एकजुट किया और धना जी जाधव के साथ मिलकर मुगलों को कड़ी टक्कर दी। औरंगजेब ने सोचा था कि छत्रपति संभाजी की हत्या के बाद मराठों का मनोबल टूट जाएगा, लेकिन संताजी और धना जी ने उसे गलत साबित किया। 1689 में तुलापुर की जंग में संताजी ने औरंगजेब की लाखों सैनिकों से भरी सेना को चुरमा बना दिया।
औरंगजेब तब तौबा करने लगा था और उसने अपने सैनिकों से कहा, “या अल्लाह, ये मराठे किस मिट्टी से बने हैं, ये ना थकते हैं, ना झुकते हैं, न पीछे हटते हैं। इनसे लड़ते-लड़ते कहीं हम न मिट जाएं!” संताजी और धना जी की बहादुरी से मुगलों की छावनी में तबाही मच गई और औरंगजेब भागने पर मजबूर हो गया। मराठों ने दो सोने के कलश औरंगजेब के शिविर से लूटे और उन्हें लेकर सिंहगढ़ किले पर लौट आए।
संताजी की जीतें यहीं नहीं रुकीं। अब बारी थी उन मुगलों के खात्मे की, जिन्होंने छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या की थी। सबसे पहले, जुल्फिकार खान को निशाना बनाया गया। वह वही मुग़ल सरदार था जिसने संभाजी की पत्नी और बेटे को बंदी बना लिया था। संताजी ने उसे पूरी तरह से हराया और मुगलों के खजाने, घोड़ों, और हाथियों को लूट लिया।
उसके बाद, मुकर्रम खान था, जिसने छत्रपति संभाजी महाराज को धोखे से पकड़ा था। दिसंबर 1689 में संताजी ने मुकर्रम खान की 50,000 सैनिकों से भरी सेना को चारों ओर से घेर लिया। एक भयंकर युद्ध के बाद, संताजी ने मुकर्रम खान को मार डाला, और मुगलों को यह संदेश दे दिया कि मराठों की न्याय की खोज कभी खत्म नहीं होती।
संताजी घोरपड़े को उनकी वीरता और साहस के लिए 1691 में मराठा साम्राज्य का सरसेनापति नियुक्त किया गया। उन्होंने अपनी सेनाओं के साथ कर्नाटका और कृष्णा नदी पार मुगलों की सेना पर हमला बोला और हर जगह मराठों का विजय ध्वज लहराया। उनकी गतिविधियों से औरंगजेब इतना घबराया हुआ था कि वह सह्याद्री पर्वतों में इधर से उधर भागता फिरता था। 27 साल तक औरंगजेब को मराठों ने खौफ में रखा, और अंततः वह मराठों के हाथों हो रही निरंतर हार से तड़प-तड़प कर महाराष्ट्र में मरा।
इस प्रकार, संताजी घोरपड़े और उनके साथी युद्ध नायकोंने औरंगजेब की ताकत को इतना कमजोर किया कि वह न केवल मुगलों के साम्राज्य को दरकने में कामयाब रहे, बल्कि इतिहास में उसे एक भगोड़े के रूप में स्थापित भी कर दिया।
यह कहानी इस बात का जीवंत उदाहरण है कि मराठा साहस और संघर्ष की भावना कभी खत्म नहीं होती। छत्रपति संभाजी की शहादत का बदला लेने के लिए संताजी और उनके साथियों ने जो युद्ध लड़ा, वह आज भी हम सभी को प्रेरणा देता है कि अगर सही इरादे और साहस हो तो किसी भी ताकत का सामना किया जा सकता है!
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जय श्रीराम
