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संयम

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संयम

एक युवती ट्रेन में चढ़ी और उसने अपनी सीट पर एक आदमी को बैठे देखा। उसने विनम्रता से अपना टिकट चेक किया और कहा, “सर, मुझे लगता है कि आप मेरी सीट पर हैं।”

उस आदमी ने अपना टिकट निकाला और चिल्लाया, “ध्यान से देखो! यह मेरी सीट है! क्या तुम अंधे हो?!”

लड़की ने ध्यान से उसका टिकट चेक किया और बहस करना बंद कर दिया। वह चुपचाप उसके पास खड़ी हो गई।

ट्रेन चलने के बाद, लड़की झुकी और धीरे से बोली, “सर, आप गलत सीट पर नहीं हैं, लेकिन आप गलत ट्रेन में हैं। यह बीकानेर जा रही है, और आपका टिकट जयपुर के लिए है।”

एक तरह का संयम होता है जो लोगों को उनके किए पर पछतावा कराता है। अगर चिल्लाने से सब कुछ हल हो जाता, तो गधे बहुत पहले ही दुनिया पर राज कर चुके होते….!☺️

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

1 Comment

  • Yes, संयम बहुत बड़ी चीज हैं पर लोगों में कम होता हैं

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