सुलोचना को श्राप
एक बार लक्ष्मी माता ने शेषनाग को कसकर श्री हरि की कलाई पर बांध दिया , जिससे उनके नेत्र से दो अश्रु निकल पड़े और उन दो आंसू की बूंदों से दो सुंदर कन्याएं उत्पन्न हुई। उनमें पहली कन्या का नाम सुनयना और दूसरी कन्या का नाम सुलोचना रखा गया।
सुनयना का विवाह मिथिला राज्य के राजा जनक से किया गया। सुलोचना का विवाह देवराज इन्द्र के पुत्र जयंत से निश्चित हुआ। लेकिन जब सुलोचना को पता चला कि असुरों के सम्राट रावण के पुत्र मेघनाद ने इन्द्र और उनके पुत्र जयंत को हरा दिया है तो सुलोचना को मन ही मन मेघनाद से प्रेम हो गया और मेघनाद भी सुलोचना के सौंदर्य पर मुग्ध हो गया और दोनों ने विवाह कर लिया।
जब नागराज शेषनाग को ये बात पता चली तो उन्होंने सुलोचना को क्रोधित होकर ये श्राप दिया कि “तुमने जिस अधर्मी को अपना पति चुना है उसका वध त्रेतायुग में मेरे ही हाथों होगा”। इसी श्राप के कारण मेघनाद का वध शेषनाग ने लक्ष्मण का रूप धरकर किया। शूर्पणखा की नाक शेषनाग के अवतार लक्ष्मण जी द्वारा काटी गई जिससे उसके भाई रावण ने भगवान राम की पत्नी सीता का हरण कर लिया।
सीता माता को छुड़ाने के लिये प्रभु राम लंका पहुंचे और वहाँ युद्ध छिड़ गया। इसी दौरान लक्ष्मण जी के द्वारा रावण पुत्र मेघनाद का वध हो गया। वध के पश्चात मेघनाद का हाथ सुलोचना के समक्ष आकर गिरा। सुलोचना ने सोचा कि पता नहीं यह उसके पति की भुजा है भी या नहीं ! अतः उसने कहा – “अगर तुम मेरे पति की भुजा हो तो लेखनी से युद्ध का सारा वृत्तांत लिखो।
हाथ ने लिखा “प्रिये ! हाँ यह मेरा ही हाथ है। मेरी परम् गति प्रभु राम के अनुज महा तेजस्वी तथा दैवीय शक्तियों के धनी श्री लक्ष्मण के हाथों हो गई है। मेरा शीश श्रीराम के पास सुरक्षित है। मेरा शीश पवनपुत्र हनुमान जी ने रामचंद्र के चरणों पर रखकर मुझे सद्गति प्रदान कर दी है। वृतांत पढ़ कर वह प्रभु श्री राम के पास गई और उनकी प्रार्थना करने लगी।
श्रीराम जी उन्हें देखकर उनके समक्ष गए और कहा – “हे देवी ! आपसे मैं प्रसन्न हूँ , आप बड़ी ही पतिव्रता हैं , जिसके कारण ही आपका पति पराक्रमवान था। आप कृपया अपना उपलक्ष्य कहें।” सुलोचना ने कहा – “राघवेंद्र ! आप तो हर बात से अवगत हैं। मैं अपने पति के साथ सती होना चाहती हूँ और आपसे उनका शीश देने का आग्रह कर रही हूँ।” रामचंद्र जी ने मेघनाद का शीश उन्हें सौप दिया।
सुलोचना ने लक्ष्मण को कहा “भ्राता ! आप यह मत समझना कि आपने मेरे पति को मारा है। उनका वध करने का पराक्रम किसी में नहीं। यह तो आपकी पत्नी के सतीत्व की शक्ति है। अंतर मात्र इतना है कि मेरे स्वामी ने असत्य का साथ दिया।” वानरगणों ने पूछा कि आपको यह किसने बताया कि मेघनाद का शीश हमारे पास है ? सुलोचना ने कहा – “मुझे स्वामी के हाथ ने बताया।”
इस बात पर वानर हँसने लगे और कहा कि ऐसे में तो यह कटा सर भी बात करेगा। सुलोचना ने प्रार्थना की कि अगर उसका पतिव्रत धर्म बना हुआ हो तो वह सर हँसने लगे और मेघनाद का सर हँसने लगा। ऐसे दृश्य को देख सबने सुलोचना के पतिव्रत का सम्मान किया। सुलोचना ने चंदन की शैया पर अपने पति के शीश को गोद में रखकर अपनी आहुति दे दी।
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जय श्रीराम