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सदमा

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सदमा

माँ,कुंभ नहाने चलोगी? काफी दिन से कह रही थीं कि मुझे गंगा नहला ला, इस बार तुम्हें नहला लाता हूं. आज ट्रेन का टिकट करा लिया है.’’…..यह सुन कर गोमती चहक उठीं, ‘‘तू सच कह रहा है श्रवण, मुझे यकीन नहीं हो रहा’’…….‘‘यकीन करो मां, ये देखो टिकटें,’’ श्रवण ने जेब से टिकटें निकाल कर गोमती को दिखाईं और बोला, ‘‘अब जाने की तैयारी कर लेना, जो जो सामान चाहिए बता देना, अगले हफ्ते आज के ही दिन चलेंगे’’

‘‘कौन कौन चलेगा बेटा? सभी चल रहे हैं न?’’……

‘‘नहीं माँ, सब जा कर क्या करेंगे? कुंभ पर बहुत भीड़ रहती है. सब को संभालना मुश्किल होगा. बस, हम दोनों ही चलेंगे’’…..गोमती ने श्वेता की ओर देखा,उन के अकेले जाने से कहीं बहू नाराज न हो, उन्हें लगा कि इतनी उम्र में अकेली बेटे के साथ कैसे जाएंगी? श्रवण कैसे संभालेगा उन्हें,घर में तो जैसे तैसे अपना काम कर लेती हैं, बाहर कैसे उठेगी बैठेगी, घड़ी घड़ी श्रवण का सहारा मांगेंगी, फिर कहीं सब के सामने ही श्रवण झल्लाने लगा तो? दुविधा हुई उन्हें……..

‘‘अब क्या सोचने लगीं, मांजी? आप के बेटे कह रहे हैं तो घूम आइए, हम सब तो फिर कभी चले जाएंगे, इस के बाद पूरे 12 साल बाद ही कुंभ पडे़गा’’…..‘‘बहू, क्या श्रवण मुझे संभाल पाएगा?’’ गोमती ने अपना संशय सामने रखा तो श्रवण हंस पड़ा…..

‘‘माँ को अब अपने बेटे पर विश्वास नहीं है, जैसे आप बचपन में मेरा ध्यान रखती थीं वैसे ही रखूंगा, कहीं भी आप का हाथ नहीं छोडूंगा,खूब मेला घुमाऊंगा’’….श्रवण की बात पर गोमती प्रसन्न हो गईं, उन की चिरप्रतीक्षित अभिलाषा पूरी होने जा रही थी, कुंभ स्नान कर मोक्ष पाने की कामना वह कब से कर रही थी, कई बार श्रवण से कह चुकी थी कि मरने से पहले एक बार कुंभ स्नान करना चाहती हैं, कुंभ पर नहीं ले जा सकता तो ऐसे ही हरिद्वार ले चल, वक्त खिसकता रहा, बात टलती रही, अब जब श्रवण अपने आप कह रहा है तो उन का मन प्रसन्नता से नाचने लगा, उन्होंने बहू बेटे को आशीर्वाद से लाद दिया

1 रात 1 दिन का सफर तय कर माँ बेटा दोनो प्रयागराज पहुंचे, गोमती का तो सफर में ही बुरा हाल हो गया, ट्रेन के धड़धड़ के शोर और सीटी ने रात भर गोमती को सोने नहीं दिया, श्रवण का हाथ थामे वह बार बार टायलेट जाती रहीं, ट्रेन खिसकने लगती तो पांव डगमगाने लगते, गिरती पड़ती सीट तक पहुंचती………

‘‘अभी सफर शुरू हुआ है माँ , आगे कैसे करोगी? संभालो स्वयं को’’…..‘‘संभाल रही हूं बेटा, पर इस बुढ़ापे में हाथ पांव झूलर बने रहते हैं, पकड़ ढीली पड़ जाती है, इस का इलाज मुझ पर नहीं है,’’ वह बेबस सी हो जातीं….‘‘कोई बात नही,मैं हूं न, सब संभाल लूंगा,’’ श्रवण उन की बेबसी को समझता

खैर, सोते जागते गोमती का सफर पूरा हुआ, गाड़ी प्रयागराज स्टेशन पर रुकी तो प्लेटफार्म की चहल पहल और भीड़ देख कर वह हैरान रह गईं, श्रवण ने अपने कंधे पर बैग टांग लिया और एक हाथ से माँ का हाथ पकड़ कर स्टेशन से बाहर आ गया……शहर आ कर श्रवण ने देखा कि आकाश में घटाएं घुमड़ रही थी, यह सोच कर कि क्या पता कब बादल बरसने लगें, उस ने थोड़ी देर स्टेशन पर ही रुकने का फैसला किया, माँ के साथ वह वेटिंग रूम में जा कर बैठ गया, थोड़ी देर बाद माँ से बोला, ‘‘माँ, नित्यकर्म से यहीं निबट लो,जब तक बारिश रुकती है हम आराम से यहीं रुकेंगे. पहले आप चली जाओ,’’ और उस ने इशारे से माँ को बता दिया कि कहां जाना है, थोड़ी देर में गोमती लौट आई,फिर श्रवण चला गया,श्रवण जब लौटा तो उस के हाथ में गरमागरम चाय के 2 कुल्हड़ और एक थैली में समोसे थे, माँ बेटे ने चाय पी और समोसे खाए, थोड़ा आराम मिला तो गोमती की आंखें झपकने लगी, पूरी रात आंखों में कटी थी,वहीं सोफे की टेक ले कर आंखें मूंद ली

करीब घंटे भर बाद सूरज फिर से झांकने लगा,वर्षा के कारण स्टेशन पर भीड़ बढ़ गई थी. अब धीरे धीरे छंटने लगी,गोमती और श्रवण ने भी आटो रिक्शा पकड़ कर गंगाघाट तक पहुंचने का मन बनाया….आटोरिक्शा ने मेलाक्षेत्र शुरू होते ही उन्हें उतार दिया, करीब 1 किलोमीटर पैदल चल कर वे गंगाघाट तक पहुंचे गिरते पड़ते बड़ी मुश्किल से एक डेरे में थोड़ा सा स्थान मिला, दोनों ने चादर बिछा कर अपना सामान जमाया और नहाने चल दिए….

गोमती ने अपने अब तक के जीवन में इतनी भीड़ नहीं देखी थी,कहीं लाउडस्पीकरों का शोर, कहीं भजन गाती टोलियां, कहीं साधु संतों के प्रवचन, कहीं रामायण पाठ, खिलौने वाले, झूले वाले, पूरी कचौरी, चाट व मिठाई की दुकानें, धार्मिक किताबों, तस्वीरों , मालाओं व सिंदूर की दुकानें, हर जाति धर्म के लोगों को देखदेख कर गोमती चकित थी,लगता था किसी दूसरे लोक में आ गई है, वह श्रवण का हाथ कस कर थामे थी….भीड़ में रास्ता बनाता श्रवण उन्हें गंगा किनारे तक ले आया,यहां भी खूब भीड़ और धक्कम धक्का था,श्रवण ने हाथ पकड़ कर मां को स्नान कराया, फिर स्वयं किया, गोमती ने फूल बताशे गंगा में चढ़ाए,जाने कब से मन में पली साध पूरी हुई थी, हर्षातिरेक में आंसू निकल पडे़, हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि हे गंगा मैया, श्रवण सा बेटा हर मां को देना,आज उसी के कारण तुम्हारे दर्शन कर सकी हूँ

श्रवण ने माँ को मेला घुमाया. खूब खिलाया पिलाया…..‘‘थक गई हूँ,अब नहीं चला जाता, श्रवण,’’ गोमती के कहने पर श्रवण उन्हें डेरे पर ले आया…..‘‘मां, तुम आराम करो, मैं घूम कर अभी आया, थोड़े रुपए अपने पास रख लो,’’ उस ने मां को रुपए थमाए

‘‘मैं इन रुपयों का क्या करूंगी? तू है तो मेरे पास,फिर 5-10 रुपए हैं मेरे पास,’’ गोमती ने मना किया…..‘‘वक्त बेवक्त काम आएंगे. तुम्हारा ही कुछ लेने का मन हो या कहीं मेले में मेरी जेब ही कट जाए तो…’’ श्रवण के समझाने पर गोमती ने रुपए ले लिए, गोमती ने रुपए संभाल कर रख लिए, उन्हें ध्यान आया कि ऐसे मेलों में चोर- उचक्के खूब घूमते है,लोगों को बेवकूफ बना कर हाथ की सफाई दिखा कर खूब ठगते है…

श्रवण चला गया और गोमती थैला सिर के नीचे लगा बिछी चादर पर लेट गई,उन का मन आह्लादित था,श्रवण ने खूब ध्यान रखा है,लेटे लेटे आंखें झपक गई,जब खुलीं तो देखा कि सूरज ढलने जा रहा है और श्रवण अभी लौटा नही है….उन्हें चिंता हो आई,अनजान जगह, अजनबी लोग, श्रवण के बारे में किस से पूछें? अपना थैला टटोल कर देखा, सब- कुछ यथा स्थान सुरक्षित था, कुछ रुपए एक रूमाल में बांध कर चुपचाप कपड़ों के साथ थैले में डाल लाई थी, सोचा था पता नहीं परदेश में कहां जरूरत पड़ जाए, उसी रूमाल में श्रवण के दिए रुपए भी रख लिए….

वह डेरे से बाहर आ कर इधर उधर देखने लगी,आदमियों का रेला एक तरफ तेजी से भागने लगा,वह कुछ समझ पातीं कि चीख पुकार मच गई, पता लगा कि मेले में हाथी बिगड़ जाने से भगदड़ मच गई है,काफी लोग भगदड़ में गिरने के कारण कुचल कर मर गए है…..सुन कर गोमती का कलेजा मुंह को आने लगा,कहीं उन का श्रवण भी…क्या इसी कारण अभी तक नहीं आया है? उन्होंने एक यात्री के पास जा कर पूछा, ‘‘भैया, यह किस समय की बात है?’’….‘‘मांजी, शाम 4 बजे नागा साधु हाथियों पर बैठ कर स्नान करने जा रहे थे और पैसे फेंकते जा रहे थे, उन के फेंके पैसों को लूटने के कारण यह कांड हुआ, जो जख्मी हैं उन्हें अस्पताल पहुंचाया जा रहा है और जो मर गए हैं उन्हें सरकारी गाड़ी से वहां से हटाया जा रहा है,आप का भी कोई है?’’

‘‘भैया, मेरा बेटा 2 बजे घूमने निकला था और अभी तक नहीं लौटा है’’…..‘‘उस का कोई फोटो है, मांजी?’’ यात्री ने पूछा….‘‘फोटो तो नहीं है. अब क्या करूं?’’ गोमती रोने लगी

‘‘मांजी, आप रोओ मत,देखो, सामने पुलिस चौकी है. आप वहां जा कर पता करो’’…गोमती ने चादर समेट कर थैले में रखी और पुलिस चौकी पहुंच कर रोने लगी,लाउडस्पीकर से कई बार एनाउंस कराया गया,फिर एक सहृदय सिपाही अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर गोमती को वहां ले गया जहां मृतकों को एक साथ रखा गया था, 1-2 अस्थायी बने अस्पतालों में भी ले गया, जहां जख्मी पड़े लोग कराह रहे थे और डाक्टर उन की मरहमपट्टी करने में जुटे थे, श्रवण का वहां कहीं भी पता न था,तभी गोमती को ध्यान आया कि कहीं श्रवण डेरे पर लौट न आया हो और उन का इंतजार कर रहा हो या उन्हें डेरे पर न पा कर वह भी उन्हीं की तरह तलाश कर रहा हो….हालांकि पुलिस चौकी पर वह अपने बेटे का हुलिया बता आई थीं और लौटने तक रोके रखने को भी कह आई थी

गोमती ने आ कर मालूम किया तो पता चला कि उन्हें पूछने कोई नहीं आया था,वह डेरे पर गई,वहां भी नही, आधी रात कभी डेरे में, कभी पुलिस चौकी पर कटी,जब रात के 12 बज गए तो पुलिस वालों ने कहा, ‘‘मांजी, आप डेरे पर जा कर आराम करो,आप का बेटा यहां पूछने आया तो आप के पास भेज देंगे’’…..पुत्र के लिए व्याकुल गोमती उसे खोजते हुए डेरे पर लौट आई,चादर बिछा कर लेट गईं लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी,कहां चला गया श्रवण? इस कुंभ नगरी में कहां कहां ढूंढ़ेंगी? यहां उन का अपना है कौन? यदि श्रवण न लौटा तो अकेली घर कैसे लौटेंगी? बहू का सामना कैसे करेंगी? खुद को ही कोसने लगीं, व्यर्थ ही कुंभ नहाने की जिद कर बैठी…..टिकट ही तो लाया था श्रवण, यदि मना कर देती तो टिकट वापस भी हो जाते,ऐसी फजीहत तो न होती….

फिर गोमती को ख्याल आया कि कोई श्रवण को बहला फुसला कर तो नहीं ले गया,वह है भी सीधा,आसानी से दूसरों की बातों में आ जाता है, किसी ने कुछ सुंघा कर बेहोश ही कर दिया हो और सारे पैसे व घड़ीअंगूठी छीन ली हो,मन में उठने वाली शंका कुशंकाओं का अंत न था…..दिन निकला. वह नहाना धोना सब भूल कर, सीधी पुलिस चौकी पहुंच गई,एक ही दिन में पुलिस चौकी वाले उन्हें पहचान गए थे. देखते ही बोले, ‘‘मांजी, तुम्हारा बेटा नहीं लौटा’’

रोने लगीं गोमती, ‘‘कहां ढूंढू़ं, तुम्हीं बताओ,किसी ने मारकाट कर कहीं डाल दिया हो तो,तुम्हीं ढूंढ़ कर लाओ,’’ गोमती का रोते रोते बुरा हाल हो गया….‘‘अम्मां, धीरज धरो, हम जरूर कुछ करेंगे.,सभी डेरों पर एनाउंस कराएंगे, आप का बेटा मेले में कहीं भी होगा, जरूर आप तक पहुंचेगा,आप अपना नाम और पता लिखा दो और अब जाओ, स्नानध्यान करो,’’ पुलिस वालों को भी गोमती से हमदर्दी हो गई थी….

गोमती डेरे पर लौट आई, गिरती पड़ती गंगा भी नहा लीं और मन ही मन प्रार्थना की कि हे गंगा मैया, मेरा श्रवण जहां कहीं भी हो कुशल से हो, और वहीं घाट पर बैठ कर हर आने जाने वाले को गौर से देखने लगी, उन की निगाहें दूर दूर तक आने जाने वालों का पीछा करतीं,कहीं श्रवण आता दिख जाए, गंगाघाट पर बैठे सुबह से दोपहर हो गई, कल शाम से पेट में पानी की बूंद भी न गई थी, ऐंठन सी होने लगी,उन्हें ध्यान आया, यदि यहां स्वयं ही बीमार पड़ गईं तो अपने श्रवण को कैसे ढूंढ़ेंगी? उसे ढूंढ़ना है तो स्वयं को ठीक रखना होगा. यहां कौन है जो उन्हें मनुहार कर खिलाएगा….

गोमती ने आलू की सब्जी के साथ 4 पूरियां खाई,गंगाजल पिया तो थोड़ी शांति मिली,4 पूरियां शाम के लिए यह सोच कर बंधवा लीं कि यहां तक न आ सकीं तो डेरे में ही खा लेंगी या भूखा श्रवण लौटेगा तो उसे खिला देंगी…. श्रवण का ध्यान आते ही उन्होंने कुछ केले भी खरीद लिए,ढूंढ़ती ढूंढ़ती अपने डेरे पर पहुंच गई, पुलिस चौकी में भी झांक आई….देखते ही देखते 8 दिन निकल गए. मेला उखड़ने लगा, श्रवण भी नहीं लौटा,अब पुलिस वालों ने सलाह दी, ‘‘अम्मां, अपने घर लौट जाओ,लगता है आप का बेटा अब नहीं लौटेगा’’…

‘‘मैं इतनी दूर अपने घर कैसे जाऊंगी. मैं तो अकेली कहीं आई गई नहीं,’’ वह फिर रोने लगी….‘‘अच्छा अम्मां, अपने घर का फोन नंबर बताओ. घर से कोई आ कर ले जाएगा,’’ पुलिस वालों ने पूछा…..‘‘घर से मुझे लेने कौन आएगा? अकेली बहू, बच्चों को छोड़ कर कैसे आएगी’’????….

‘‘बहू किसी नाते रिश्तेदार को भेज कर बुलवा लेगी. आप किसी का भी नंबर बताओ’’….गोमती ने अपने दिमाग पर लाख जोर दिया, लेकिन हड़बड़ाहट में किसी का नंबर याद नहीं आया. दुख और परेशानी के चलते दिमाग में सभी गड्डमड्ड हो गए, वह अपनी बेबसी पर फिर रोेने लगी,बुढ़ापे में याददाश्त भी कमजोर हो जाती है….

पुलिस चौकी में उन्हें रोता देख राह चलता एक यात्री ठिठका और पुलिस वालों से उन के रोने का कारण पूछने लगा, पुलिस वालों से सारी बात सुन कर वह यात्री बोला, ‘‘आप इस वृद्धा को मेरे साथ भेज दीजिए, मैं भी उधर का ही रहने वाला हूं. आज शाम 4 बजे ट्रेन से जाऊंगा, इन्हें ट्रेन से उतार बस में बिठा दूंगा, यह आराम से अपने गांव पीपला पहुंच जाएंगी’’….

सिपाहियों ने गोमती को उस अनजान व्यक्ति के साथ कर दिया,उस का पता और फोन नंबर अपनी डायरी में लिख लिया,गोमती उस के साथ चल तो रही थीं पर मन ही मन डर भी रही थीं कि कहीं यह कोई ठग न हो, पर कहीं न कहीं किसी पर तो भरोसा करना ही पड़ेगा, वरना इस निर्जन में वह कब तक रहेंगी….‘‘मांजी, आप डरें नहीं, मेरा नाम बिट्ठन लाल है, लोग मुझे बिट्ठू कह कर पुकारते हैं,राजकोट में बिट्ठन लाल हलवाई के नाम से मेरी दुकान है,आप अपने गांव पहुंच कर किसी से भी पूछ लेना,भरोसा रखो आप मुझ पर, यदि आप कहेंगी तो घर तक छोड़ आऊंगा यह संसार एक दूसरे का हाथ पकड़ कर ही तो चल रहा है’’

अब मुंह खोला गोमती ने, ‘‘भैया, विश्वास के सहारे ही तो तुम्हारे साथ आई हूँ, इतना उपकार ही क्या कम है कि तुम मुझे अपने साथ लाए हो, तुम मुझे बस में बिठा दोगे तो पीपला पहुंच जाऊंगी,पर बेटे के न मिलने का गम मुझे खाए जा रहा है’’….

अगले दिन लगभग 1 बजे गोमती बस से अपने गांव के स्टैंड पर उतरीं और पैदल ही अपने घर की ओर चल दी,उन के पैर मनमन भर के हो रहे थे उन्हें यह समझ में न आ रहा था कि बहू से कैसे मिलेंगी, इसी सोच विचार में वह अपने घर के द्वार तक पहुंच गई, वहां खूब चहलपहल थी, घर के आगे कनात लगी थीं और खाना चल रहा था,एक बार तो उन्हें लगा कि वह गलत जगह आ गई है,तभी पोते तन्मय की नजर उन पर पड़ी और वह आश्चर्य और खुशी से चिल्लाया, ‘‘पापा, दादी मां लौट आईं. दादी मां जिंदा है’’

उस के चिल्लाने की आवाज सुन कर सब दौड़ कर बाहर आए, शोर मच गया, ‘अम्मां आ गईं,’ ‘गोमती आ गई’ श्रवण भी दौड़ कर आ गया और माँ से लिपट कर बोला, ‘‘तुम कहां चली गई थीं, माँ,मैं तुम्हें ढूंढ़ कर थक गया’’…..बहू श्वेता भी दौड़ कर गोमती से लिपट गई और बोली, ‘‘हाय, हम ने सोचा था कि मांजी…’‘‘नहीं रहीं. यही न बहू,’’ गोमती के जैसे ज्ञान चक्षु खुल गए, ‘‘इसीलिए आज अपनी सास की तेरहवीं कर रही हो और तू श्रवण, मुझे छोड़ कर यहां चला आया, मैं तो पगला गई थी, घाट घाट तुझे ढूंढ़ती रही, तू सकुशल है… तुझे देख कर मेरी जान लौट आई’’

मां बेटे दोनों की निगाहें टकराईं और नीचे झुक गई…..‘‘अब यह दावत माँ के लौट आने की खुशी के उपलक्ष्य में है,सब खुशी खुशी खाओ,मेरी माँ वापस आ गई हैं,’’ खुशी से नाचने लगा श्रवण….औरतों में कानाफूसी होने लगी, लेकिन फिर भी सब श्वेता और श्रवण को बधाई देने लगे….वे सभी रिश्तेदार जो गोमती की गमी में शामिल होने आए थे, गोमती के पांव छूने लगे,कोई बाजे वालों को बुला लाया,बाजे बजने लगे, बच्चे नाचने कूदने लगे,माहौल एकदम बदल गया,श्रवण को देख कर गोमती सब भूल गई….

शाम होते होते सारे रिश्तेदार खा पीकर विदा हो गए, रात को थक कर सब अपने अपने कमरों में जा कर सो गए, गोमती को भी काफी दिन बाद निश्चितता की नींद आई….अचानक रात में माँ जी की आंखें खुल गईं, वह पानी पीने उठी,श्रवण के कमरे की बत्ती जल रही थी और धीरे धीरे बोलने की आवाज आ रही थी. बातों के बीच ‘माँ’ सुन कर वह सट कर श्रवण के कमरे के बाहर कान लगा कर सुनने लगीं. श्वेता कह रही थी, ‘तुम तो माँ को मोक्ष दिलाने गए थे, माँ तो वापस आ गई

मैं तो माँ को डेरे में छोड़ कर आ गया था,मुझे क्या पता कि माँ लौट आएंगी. माँ का हाथ गंगा में छोड़ नहीं पाया, पिछले 8 दिन से मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही थी, मैने माँ को मारने या त्यागने का पाप किया था,मैं सारा दिन यही सोचता कि भूखी प्यासी मेरी माँ पता नहीं कहां कहां भटक रही होगी माँ ने मुझ पर विश्वास किया और मैने माँ के साथ विश्वासघात किया, माँ को इस प्रकार गंगा घाट पर छोड़ कर आने का अपराध जीवन भर दुख पहुंचाता रहेगा, अच्छा हुआ कि माँ लौट आईं और मैं माँ की मृत्यु का कारण बनते बनते बच गया….बेटे की बातें सुन कर गोमती के पैरों तले जमीन कांपने लगी.,सारा दृश्य उन की आंखों के आगे सजीव हो उठा, वह इन 8 दिनों में लगभग सारा मेला क्षेत्र घूम ली, उन्होंने बेटे के नाम की जगह- जगह घोषणा कराई पर अपने नाम की घोषणा कही नहीं सुनी,इतना बड़ा झूठ बोला श्रवण ने मुझ से? मुझ से मुक्त होने के लिए ही मुझे प्रयागराज ले कर गया था, मैं इतना भार बन गई हूं कि मेरे अपने ही मुझे जीते जी मारना चाहते हैं….

वह खुद को संभाल पाती कि धड़ाम से वही गिर पड़ी,सब झेल गईं पर यह सदमा न झेल सकी…

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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